AIIMS Survey School Students Drugs : 11 साल की उम्र में ड्रग्स, आपके बच्चे की क्लास तक पहुंच रहा नशा, AIIMS सर्वे ने खोली पोल, हर 7वां स्कूली बच्चा नशेड़ी? पढ़े दिमाग हिला देने वाली पूरी स्टोरी
AIIMS Survey School Students Drugs : देश की युवा पीढ़ी को अपनी गिरफ्त में लेती ड्रग्स और नशे की समस्या अब एक सामाजिक महामारी का रूप ले चुकी है।
AIIMS Survey School Students Drugs : 11 साल की उम्र में ड्रग्स, आपके बच्चे की क्लास तक पहुंच रहा नशा, AIIMS सर्वे ने खोली पोल, हर 7वां स्कूली बच्चा नशेड़ी? पढ़े दिमाग हिला देने वाली पूरी स्टोरी
AIIMS Survey School Students Drugs : नई दिल्ली : देश की युवा पीढ़ी को अपनी गिरफ्त में लेती ड्रग्स और नशे की समस्या अब एक सामाजिक महामारी का रूप ले चुकी है। मेट्रो शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक, कम उम्र के बच्चों में नशाखोरी की बढ़ती दर ने माता-पिता, शिक्षकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। देश के 10 प्रमुख शहरों, जिसमें दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, लखनऊ और इंफाल शामिल हैं, के स्कूलों में किए गए एक व्यापक सर्वे से पता चला है कि न केवल नशे की लत तेजी से बढ़ रही है, बल्कि इसकी शुरुआत की औसत आयु गिरकर महज 12.9 वर्ष रह गई है। कुछ मामलों में तो बच्चे 11 वर्ष की कच्ची उम्र में ही ड्रग्स का सेवन शुरू कर चुके थे। यह आंकड़े देश के भविष्य के लिए एक 'खतरे की घंटी' हैं।
AIIMS Survey School Students Drugs : नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित इस गहन शोध रिपोर्ट ने चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। अध्ययन के अनुसार, लगभग हर सात में से एक स्कूली छात्र अपने जीवन में कम से कम एक बार किसी न किसी प्रकार के साइकोएक्टिव पदार्थ (नशा) का सेवन कर चुका है। यह आंकड़ा पिछले एक साल में 10.3% और पिछले महीने में 7.2% रहा है, जो यह दर्शाता है कि नशे की प्रवृत्ति लगातार और तेजी से सक्रिय है।
वास्तविक और भी भयावह
इस सर्वे का सबसे चिंताजनक पहलू यह रहा कि आधे से अधिक छात्रों ने खुलकर यह स्वीकार किया कि यदि उनसे नशे के बारे में सीधे पूछा जाता, तो वे जानबूझकर जानकारी छिपा देते या झूठ बोलते। यह स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि सर्वेक्षण में सामने आए 15.1% के आंकड़े वास्तविक समस्या की केवल एक छोटी झलक हैं। वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक भयावह और गहरे संकट की ओर इशारा करती है, क्योंकि बच्चे सामाजिक भय या सजा के डर से अपने व्यवहार को छिपा रहे हैं।
एम्स (AIIMS) के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर की प्रमुख डॉ. अंजू धवन के नेतृत्व में किए गए इस मल्टी-सिटी अध्ययन में 5,920 छात्रों को शामिल किया गया था। शोध में यह भी पाया गया कि कक्षा 11-12 के छात्रों में नशे का सेवन करने की संभावना कक्षा 8 के छात्रों की तुलना में लगभग दोगुनी थी, जो बताता है कि उच्च शिक्षा के वर्षों में यह लत तेजी से पकड़ बनाती है।
नशे का बदलता पैटर्न : तंबाकू नहीं, अब ओपिओइड और इनहेलेंट
परंपरागत रूप से तंबाकू और शराब प्रमुख नशे के पदार्थ माने जाते थे, लेकिन इस सर्वे में एक नया और घातक पैटर्न देखने को मिला। तंबाकू (4%) और शराब (3.8%) के बाद सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थ ओपिओइड (2.8%), भांग (2%) और इनहेलेंट (1.9%) पाए गए। यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि अधिकांश ओपिओइड का सेवन बिना डॉक्टर की पर्ची वाली फार्मास्यूटिकल दवाइयों के रूप में किया जा रहा था। यह दिखाता है कि नशा आसानी से मेडिकल स्टोर्स या सामान्य घरेलू स्रोतों से उपलब्ध हो रहा है।
लिंग के आधार पर भी नशे के पैटर्न में अंतर देखा गया। लड़कों में तंबाकू और भांग का उपयोग अधिक पाया गया, जबकि लड़कियाँ इनहेलेंट और फार्मास्यूटिकल ओपिओइड के उपयोग में आगे थीं। इनहेलेंट का उपयोग बेहद कम उम्र में शुरू होता है और यह मस्तिष्क को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है।
भावनात्मक परेशानी और नशे का गहरा संबंध
सर्वेक्षण ने नशे और मानसिक स्वास्थ्य के बीच एक सीधा और गहरा संबंध स्थापित किया है। पिछले साल ड्रग्स का इस्तेमाल करने वाले 31% छात्रों ने मनोवैज्ञानिक परेशानियों (Psychological Distress) से जूझने की बात स्वीकार की, जबकि ड्रग्स न लेने वाले छात्रों में यह प्रतिशत 25% था। नशे का इस्तेमाल करने वाले समूह में व्यवहार संबंधी समस्याएं,अतिसक्रियता (Hyperactivity) और भावनात्मक लक्षणों में भी स्पष्ट अंतर देखा गया। यह आंकड़े बताते हैं कि नशा केवल एक लत नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का एक लक्षण भी है, जिसे तत्काल मनोवैज्ञानिक सहायता की आवश्यकता है।
इस सर्वे ने भारतीय शिक्षा प्रणाली और अभिभावकों के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है क्या हम अपने बच्चों को तनाव और भावनात्मक समस्याओं से बचाने के लिए पर्याप्त सुरक्षा कवच दे पा रहे हैं? विशेषज्ञों का मानना है कि इस ड्रग्स सुनामी से निपटने के लिए स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रमों, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और माता-पिता की सक्रिय भागीदारी के साथ एक बड़ी और सटीक रणनीति की तत्काल आवश्यकता है।