OBC आरक्षण पर दिल्ली में बड़ी बैठक: क्या अटका रहेगा लाखों युवाओं का भविष्य? या निकलेगा कोई हल; SC में इस दिन होगी सुनवाई
मध्य प्रदेश के बहुचर्चित ओबीसी आरक्षण विवाद ने अब तूल पकड़ लिया है। अब इस मामले पर 24 को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई होनी बाकी है, जिसे लेकर आज दिल्ली में बड़ी बैठक की जा रही है।
MP OBC Reservation Case (NPG FILE PHOTO)
भोपाल। मध्य प्रदेश का बहुचर्चित ओबीसी आरक्षण विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। इस मामले पर अब 22 सितंबर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरु होने जा रहीं है। जिससे लाखों युवाओं की उम्मीदें बंध गई हैं। वहीं, अब इस मामले को लेकर आज दिल्ली में एक बड़ी बैठक आयोजित की गई है, जिसमें दिल्ली में वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन और मध्यप्रदेश सरकार के विधि अधिकारियों के बीच कोर्ट में पेश की जाने वाली रणनीति पर चर्चा हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण की सुनवाई
फिलहाल, मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग को सिर्फ 13 फीसदी आरक्षण मिल रहा है, जबकि सरकार इसे 27 फीसदी करना चाहती है। लेकिन हाईकोर्ट की रोक के चलते यह फैसला अटका हुआ है। अब सुप्रीम कोर्ट में 22 सितंबर से इस पर रोजाना सुनवाई होगी। सरकार की ओर से उपसचिव अजय कटसेरिया को कोर्ट और वकीलों के बीच समन्वय की जिम्मेदारी दी गई है। वे दस्तावेज तैयार करने से लेकर कोर्ट के आदेशों की जानकारी सरकार तक पहुंचाएंगे।
क्यों है यह मामला इतना अहम?
आपको बता दें कि, मध्य प्रदेश में इस आरक्षण विवाद की वजह से करीब 9000 सरकारी पदों पर नियुक्तियां रुकी हुई हैं। PSC और कर्मचारी चयन मंडल ने इन पदों के लिए परीक्षाएं तो करवाईं, लेकिन 13 फीसदी पदों के रिजल्ट होल्ड कर दिए गए। इससे करीब 80 हजार अभ्यर्थी प्रभावित हुए हैं, जिनमें से कई तो उम्र की सीमा पार कर चुके हैं।
कहां-कहां पद होल्ड हैं?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस ओबीसी आरक्षण विवाद की वजह से कई बड़ी परीक्षाओं के हजारों पद होल्ड पर हैं। राज्य सेवा परीक्षा के 247, सहायक प्राध्यापक भर्ती के 250, सहायक अभियंता के 58, आईटीआई प्राचार्य के 29, एडीपीओ के 33, आरक्षक भर्ती के 965, स्टाफ नर्स और एएनएम के 600, वनरक्षक और जेल प्रहरी के 250, सहायक ग्रेड और स्टेनो के 300, उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती के 1425, शिक्षक भर्ती वर्ग दो के 573, वर्ग तीन के 882, कृषि विस्तार अधिकारी के 241, माध्यमिक शिक्षक भर्ती के 823 और प्राथमिक शिक्षक चयन परीक्षा के 1011 पदों पर नियुक्तियां रुकी हुई हैं। इन पदों पर लाखों युवाओं ने परीक्षा दी थी और अब सभी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
युवाओं की परेशानी
इन पदों पर भर्ती के लिए लाखों युवाओं ने परीक्षाएं दी थीं। जिन परीक्षाओं में साक्षात्कार होता है, वहां तीन गुना अभ्यर्थी बुलाए जाते हैं। यानी 9000 पदों के लिए करीब 27 हजार युवाओं की उम्मीदें अटकी हैं। अगर अनारक्षित और ओबीसी दोनों वर्गों को जोड़ें तो यह संख्या 50 हजार से ज्यादा हो जाती है। कई युवा ओवरएज हो चुके हैं और अब नौकरी की उम्मीद भी धुंधली होती जा रही है।
सियासत भी गरम
ओबीसी आरक्षण का मुद्दा भाजपा और कांग्रेस के बीच बड़ा राजनीतिक हथियार बन चुका है। 2019 में कमलनाथ सरकार ने आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी किया था, लेकिन 2020 में हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है, जबकि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है।
अब तक क्या-क्या हुआ?
मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर मामला कई सालों से उलझा हुआ है। मार्च 2019 में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था, लेकिन मार्च 2020 में हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।
फिर सितंबर 2021 में सरकार ने कुछ विभागों में 27% आरक्षण लागू किया। अगस्त 2023 में हाईकोर्ट ने 87:13 का फार्मूला लागू कर दिया, जिसमें 13% पदों को होल्ड पर रखा गया। जनवरी 2025 में हाईकोर्ट ने इस फार्मूले को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं और फरवरी 2025 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जिसपर अभी भी सुनवाई जारी है।