MP Gotmar Mela: फिर खेला गया खूनी खेल...कई घायल, पुलिस नहीं कर पाई कार्रवाई! जानिए वजह
MP Gotmar Mela: मध्यप्रदेश पांढुर्णा जिले में जाम नदी के किनारे आयोजित होने वाला गोटमार मेला शनिवार सुबह 10 बजे शुरू हुआ और दोपहर तक 337 लोग घायल हो चुके थे. दो गांवों पांढुर्णा और सावरगांव के बीच सैकड़ों साल पुरानी परंपरा के तहत हुई पत्थरबाजी में एक बार फिर खून बहा.
MP Gotmar Mela: मध्य प्रदेश पांढुर्णा जिले से इस बार फिर वही भयावह तस्वीरें सामने आईं, जो हर साल पोला पर्व के अगले दिन दोहराई जाती हैं. जाम नदी के किनारे आयोजित होने वाला गोटमार मेला शनिवार सुबह 10 बजे शुरू हुआ और दोपहर तक 337 लोग घायल हो चुके थे. दो गांवों पांढुर्णा और सावरगांव के बीच सैकड़ों साल पुरानी परंपरा के तहत हुई पत्थरबाजी में एक बार फिर खून बहा.
इस खतरनाक आयोजन के लिए प्रशासन ने तमाम इंतज़ाम किए थे. छह अस्थायी स्वास्थ्य केंद्र, 58 डॉक्टर, 200 से अधिक मेडिकल स्टाफ, और 600 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी. बावजूद इसके, सैकड़ों लोग घायल हुए परंपरा के नाम पर खून की होली खेलना कोई नहीं रोक सका.
तीन सदियों से जारी है यह परंपरा
गोटमार मेले की शुरुआत जाम नदी में चंडी माता की पूजा के बाद होती है. सावरगांव के लोग नदी के बीच एक खास पलाश के पेड़ को गाड़ते हैं, जिसे वे प्रतीकात्मक रूप से लड़की मानकर उसकी रक्षा करते हैं. वहीं, पांढुर्णा के लोग उस पेड़ को अपनी दुल्हन मानते हुए कब्जे में लेने की कोशिश करते हैं. इसी विवाद के चलते दोनों पक्ष एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. जब पांढुर्णा के लोग झंडे को तोड़ लेते हैं, तब जाकर यह परंपरा समाप्त होती है और दोनों गांव चंडी माता की संयुक्त पूजा करते हैं.
कई लोगों को हुआ है नुकसान
1955 से अब तक इस मेले में 13 लोगों की जान जा चुकी है, दर्जनों ने आंखें, हाथ-पैर गंवाए हैं. कई परिवार ऐसे भी हैं जो इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं, लेकिन इसके बावजूद थाने में कोई केस दर्ज नहीं हुआ . पांढुर्णा थाना प्रभारी अजय मरकाम के अनुसार, किसी ने शिकायत तक नहीं की.
प्रेम कहानी से जन्मी थी परंपरा
लोककथाओं के अनुसार, यह परंपरा एक दुखद प्रेम कथा से जुड़ी है. सावरगांव की एक लड़की और पांढुर्णा के एक लड़के ने चुपके से शादी कर ली थी. जब वे भाग रहे थे, तो सावरगांव वालों ने हमला कर दिया. जवाबी हमले में दोनों की मौत हो गई. बाद में पछतावे के तौर पर यह प्रतीकात्मक संघर्ष हर साल दोहराया जाने लगा. 2001 में छिंदवाड़ा प्रशासन ने इस परंपरा को सुरक्षित रूप देने की कोशिश की थी. पत्थरों की जगह प्लास्टिक बॉल से खेल आयोजित कराया गया, लेकिन ग्रामीणों ने इसे ठुकरा दिया और दोबारा पत्थर उठाए.
खेल में हाथ से पत्थर फेंके जाते हैं, साथ ही कई लोग गोफन यानी पत्थर फेंकने की रस्सी का इस्तेमाल करते हैं, जिससे चोटें और भी गंभीर हो जाती हैं. गोटमार मेला जहां एक ओर लोक संस्कृति का प्रतीक बताया जाता है, वहीं दूसरी ओर यह हर साल जानलेवा साबित हो रहा है.