High Court News: हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में वीआईपी दर्शन विवाद पर पीआईएल खारिज, कहा- प्रशासनिक...
High Court News: उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में वीआईपी प्रवेश को लेकर दायर जनहित याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
High Court News: जबलपुर। उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में वीआईपी प्रवेश को लेकर दायर जनहित याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। पीआईएल में आरोप लगाया था, मंदिर में केवल वीआईपी VIP को ही गर्भगृह में पूजा अर्चना के लिए प्रवेश दिया जाता है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने जनहित याचिका की सुनवाई के बाद पीआईएल को खारिज कर दिया है। पीआईएल में आरोप लगाया था कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में वीआईपी को ही गर्भगृह में पूजा अर्चना के लिए प्रवेश दिया जाता है। आम भक्तों को इस अधिकार से वंचित किया जाता है।
जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की डिवीजन बेंच ने पीआईएल की सुनवाई करते हुए कहा कि इस तरह की व्यवस्था ना तो किसी अधिनियम,नियम या फिर मंदिर प्रबंधन समिति ने इस तरह की व्यवस्था की है। प्रबंधन कमेटी के प्रोटोकाल में भी वीआईपी की परिभाषा नहीं दी गई है। बेंच ने कहा कि समिति के नियमों से यह स्पष्ट है कि गर्भगृह में प्रवेश को लेकर कोई स्थाई पाबंदी नहीं है। कलेक्टर व प्रबंध समिति के प्रशासक की अनुमति से किसी भी व्यक्ति को गर्भगृह में प्रवेश की व्यवस्था रखी गई है।
डिवीजन बेंच ने कहा कि किसी विशेष दिन मंदिर परिसर में दर्शन करने आने वाले भक्तों की स्थिति को देखते हुए कलेक्टर उसे वीआईपी मानकर गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति दे सकता है। यह निर्णय पूरी तरह से सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर निर्भर है। इस संबंध में कोई स्थायी सूची या प्रोटोकॉल नहीं है। प्रबंध समिति की व्यवस्था का हवाला देते हुए डिवीजन बेंच ने पीआईएल को खारिज कर दिया है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए बताया कि वीआईपी व्यवस्था भेदभाव अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में वीआईपी दर्शन को लेकर जानकारी भी दी है। याचिका में लिखा है कि जुलाई, 2024 में भारतीय जनता पार्टी BJP प्रदेश संगठन प्रभारी महेन्द्र सिंह, अगस्त 2024 में विधायक अनिल जैन कालूहेड़ा और बाद में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री सहित उनके परिवार व स्टाफ को गर्भगृह प्रवेश दिया गया। हाई कोर्ट ने इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि कौन वीआईपी है, यह तय करना न्यायालय का विषय नहीं, बल्कि प्रशासनिक विवेक का प्रश्न है।