भोपाल का '90 डिग्री' पुल इतने डिग्री का निकला! अदालत में पेश हुई चौंकाने वाली रिपोर्ट, जानिये HC ने क्या कहा?

90 डिग्री को लेकर चर्चा में आए भोपाल के ऐशबाग स्थित रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) की तकनीकी जांच रिपोर्ट मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में पेश की गई।

Update: 2025-09-12 07:55 GMT

(NPG file photo)

भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के ऐशबाग में 18 करोड़ की लागत से बना रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) पिछले कुछ समय से '90 डिग्री' के अनोखे मोड़ को लेकर सुर्खियों में था। पुल को लेकर लोक निर्माण विभाग (PWD) के इंजीनियरों की देशभर में किरकिरी हुई थी, और लोगों ने विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए थे।

आपको बता दें कि, अब यह मामला इतना बढ़ गया था कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने खुद इसका संज्ञान लिया और जिम्मेदार अधिकारियों को निलंबित कर दिया। वहीं, पुल का ठेका लेने वाली कंपनी मेसर्स पुनी चड्ढा को भी ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था।

लेकिन अब इस पूरे मामले में एक नया मोड़ आया है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में मैनिट (मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी) के एक प्रोफेसर की तकनीकी जांच रिपोर्ट पेश की गई है, जिसने सबको चौंका दिया है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पुल 90 डिग्री का नहीं, बल्कि 118 से 119 डिग्री के बीच का है।

अदालत में पेश हुई चौंकाने वाली रिपोर्ट

पुल के विवाद के बाद हाई कोर्ट ने पिछली सुनवाई में मैनिट के प्रोफेसर से इसकी तकनीकी जांच कराने का निर्देश दिया था। अब इस जांच की रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी गई है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि, पुल का डिजाइन पीडब्ल्यूडी ने खुद बनाया था और ठेकेदार ने उसी डिजाइन के अनुसार पुल का निर्माण किया है। यानी, पुल में जो मोड़ है, वह ठेकेदार की गलती नहीं, बल्कि PWD के अधिकारियों द्वारा जारी की गई ड्राइंग का नतीजा है।

इस रिपोर्ट के बाद, चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की पीठ ने मेसर्स पुनी चड्ढा को ब्लैकलिस्ट करने की कार्रवाई पर पहले लगाई गई रोक को बरकरार रखा है। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब ठेकेदार ने विभाग के निर्देशों के अनुसार ही काम किया, तो उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों की गई?

PWD मंत्री ने भी मानी तालमेल की कमी

इस पूरे मामले पर पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह ने भी अपना पक्ष रखा है। उन्होंने कहा कि दुनिया में ऐसे कई पुल हैं जो भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार 90 डिग्री के कोण पर बनाए जाते हैं। उनके मुताबिक, भोपाल के इस मामले में 90 डिग्री की दिक्कत नहीं थी, बल्कि विभाग और ठेकेदार के बीच बेहतर तालमेल न होने की वजह से समस्या पैदा हुई। उन्होंने कहा कि जल्द ही विभाग की तरफ से कोर्ट में जवाब पेश किया जाएगा, जिसमें सभी बातों का जिक्र होगा।

ठेकेदार ने भी यही कहा था

दरअसल, याचिकाकर्ता मेसर्स पुनी चड्ढा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि उनकी कोई गलती नहीं है। उनके वकीलों, सिद्धार्थ कुमार शर्मा और प्रवीण दुबे ने दलील दी कि मैनिट की रिपोर्ट से भी यह साफ हो गया है कि ठेकेदार ने पीडब्ल्यूडी की ओर से दी गई जनरल अरेंजमेंट ड्राइंग के हिसाब से ही पुल का एंगल 118 से 119 डिग्री के बीच रखा था।

अब क्या होगा आगे?

मैनिट की रिपोर्ट के आधार पर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार और PWD से जवाब मांगा है। राज्य सरकार के वकील ने रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए कोर्ट से मोहलत मांगी है, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 23 सितंबर को होगी।

यह पूरा मामला PWD के कामकाज पर कई सवाल खड़े करता है। अगर पुल की डिजाइन ही गलत थी, तो विभाग के अधिकारियों ने ठेकेदार पर कार्रवाई क्यों की? और अब जब सच्चाई सामने आ गई है, तो क्या उन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई होगी जिन्होंने गलत डिजाइन को मंजूरी दी और बेवजह ठेकेदार को परेशानी में डाला? अब यागे यह देखना दिलचस्प होगा की सरकार मामले में आगे क्या कार्रवाई करती है।

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