Vaisakh Mah Poornina-Amavsya : वैशाख माह की पूर्णिमा और अमावस्या महत्वपूर्ण, आइए जानें तिथि और पूजा विधि...मिलेगी सारे कष्टों से मुक्ति

कृष्णपक्ष की पंद्रहवी तिथि को अमावस्या और शुक्लपक्ष की पंद्रहवी तिथि को पूर्णिमा तिथि कहा जाता है. ये दोनों ही तिथियां धर्म-कर्म और स्नान-दान की दृष्टि से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण मानी गई हैं.

Update: 2024-05-02 08:00 GMT

सनातन परंपरा में प्रत्येक मास का अपना एक अलग महत्व है. लेकिन वैशाख मास को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है. ऐसे तो हर मास के अमावस्या और पूर्णिमा का भी विशेष महत्त्व  होता है लेकिन वैशाख मास के पूर्णिमा और अमावस्या का कुछ ज्यादा ही धार्मिक महत्व बताया गया है.

कृष्णपक्ष की पंद्रहवी तिथि को अमावस्या और शुक्लपक्ष की पंद्रहवी तिथि को पूर्णिमा तिथि कहा जाता है. ये दोनों ही तिथियां धर्म-कर्म और स्नान-दान की दृष्टि से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण मानी गई हैं.

वैदिक पंचांग के अनुसार, बुद्धि पूर्णिमा 23 मई 2024 दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। इस साल भगवान बुद्धि की 2586 वीं जयंती मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने का विधान होता है। 

वैशाख अमावस्या की सही तारीख क्या है? 7 मई को या 8 मई को? यह सवाल इसलिए है क्योंकि वैशाख माह की अमावस्या तिथि दिन के समय में दो दिन है. अब आम जनमानस के लिए समस्या है कि किस दिन वैशाख अमावस्या मनाई जाए. वैशाख अमावस्या बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि उस दिन पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान आदि किया जाता है. वैसे भी वैशाख माह में देवी और देवताओं का वास होता है. इस माह में जल का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.  ऐसे में इस साल वैशाख अमावस्या की तिथि 7 मई को 11:40 एएम पर लग रही है और 08 मई को सुबह 08:51 एएम तक मान्य है. ऐसे में सूर्योदय के समय अमावस्या तिथि 8 मई को प्राप्त हो रही है, इसलिए वैशाख अमावस्या 8 मई को है. 7 मई को वैशाख की दर्श अमावस्या होगी.


वैशाख अमावस्या का धार्मिक महत्व



हिंदू मान्यता के अनुसार वैशाख मास की अमावस्या पर पितरों के निमित्त पूजा और श्राद्ध करने पर कुंडली में स्थित पितृदोष दूर होता है. इस पावन तिथि पर कालसर्प दोष की पूजा करने पर भी लाभ मिलता है. सनातन परंपरा में वैशाख मास की आमवस्या को सतुवाई अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि हिंदी कैलेंडर के अनुसार पहले मास में पड़ने वाली अमावस्या पर सत्तू दान करने पर साधक को पुण्यफल की प्राप्ति होती है.

वैशाख अमावस्या की पूजा विधि

हिंदू मान्यता के अनुसार वैशाख मास की अमावस्या के दिन व्यक्ति बजाय देर तक सोने के प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठना चाहिए. सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद सूर्य की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए. पितरों का आशीर्वाद आप पर हमेशा बरसता रहे, इसके लिए आपको वैशाख अमावस्या के दिन अपने पितरों की विशेष रूप से पूजा जरूर करनी चाहिए. वैशाख अमावस्या का पुण्यफल पाने के लिए इस दिन किसी जल तीर्थ पर जाकर स्नान-दान करने अपने आराध्य देवी-देवता का मंत्र जप जरूर करना चाहिए.

वैशाख मास की अमावस्या का उपाय

कुंडली के शनि दोष को दूर करने उससे जुड़ी पीड़ाओं से मुक्ति पाने के लिए वैशाख मास की अमावस्या पर शाम के समय पीपल के नीचे सरसों के तेल वाला दीया जरूर जलाना चाहिए. वैशाख अमावस्या के दिन जरूरतमंद व्यक्ति को काले रंग के कपड़े, जूते, आदि का दान करना चाहिए.

हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि पर गंगा स्नान, दान-पुण्य और पूजा-पाठ का खास महत्व होता है। इस साल वैशाख पूर्णिमा पर कई वर्षों के बाद दुर्लभ संयोग बन रहा है। इस दिन बुद्ध पूर्णिमा के दिन साल का पहला चंद्रग्रहण लगने जा रहा है। 


वैशाख पूर्णिमा का महत्व



वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख मा​ह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ति​थि 22 मई बुधवार को शाम 06 बजकर 47 मिनट पर शुरू होगी और यह तिथि 23 मई गुरुवार के दिन शाम को 07 बजकर 22 मिनट पर खत्म होगी. ऐसे में उदयातिथि के आधार पर वैशाख पूर्णिमा 23 मई को है, इसलिए बुद्ध पूर्णिमा का पावन पर्व 23 मई को मनाया जाएगा.

वैशाख पूर्णिमा पर स्नान और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन पीपल के पेड़ की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इसके अलावा वैशाख पूर्णिमा पर सत्य विनायक व्रत रखने का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन सत्य विनायक व्रत रखने से व्रती की सारी दरिद्रता दूर हो जाती है। मान्यता है कि अपने पास मदद के लिये आये भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र सुदामा (ब्राह्मण सुदामा) को भी इसी व्रत का विधान बताया था जिसके पश्चात उनकी गरीबी दूर हुई। वैशाख पूर्णिमा को धर्मराज की पूजा करने का विधान है मान्यता है कि धर्मराज सत्यविनायक व्रत से प्रसन्न होते हैं। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्रती को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता ऐसी मान्यता है। वैशाख पूर्णिमा पर तीर्थ स्थलों पर स्नान का तो महत्व है ही साथ ही इस दिन सत्यविनायक का व्रत भी रखा जाता है जिससे धर्मराज प्रसन्न होते हैं। इस दिन व्रती को जल से भरे घड़े सहित पकवान आदि भी किसी जरूरतमंद को दान करने चाहिये। स्वर्णदान का भी इस दिन काफी महत्व माना जाता है। व्रती को पूर्णिमा के दिन प्रात:काल उठकर स्नानादि से निवृत हो स्वच्छ होना चाहिए। तत्पश्चात व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। रात्रि के समय दीप, धूप, पुष्प, अन्न, गुड़ आदि से पूर्ण चंद्रमा की पूजा करनी चाहिये और जल अर्पित करना चाहिए। तत्पश्चात किसी योग्य ब्राह्मण को जल से भरा घड़ा दान करना चाहिए।

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