Chhath Pooja 2024: 36 घंटे का निर्जला उपवासः दुनिया का सबसे कठिनतम व्रत है छठ, डूबते सूर्य की पूजा सिर्फ छठ महापर्व में...

Chhath Pooja 2024: बिहार और पूर्वांचल का मशहूर महापर्व छठ अब इन दोनों राज्यों की सीमाओं से बाहर निकल कर देश-दुनिया में मनाया जाने लगा है। छठ हिन्दू धर्म का सबसे कठिनतम व्रत है, जिसमें छठव्रती दो चरणों में 36 घंटे से अधिक का निर्जला उपवास करते हैं।

Update: 2024-11-04 16:05 GMT

Chhath Pooja 2024: रायपुर। सूर्य उपासना का छठ बिहार और यूपी के पूर्वांचल का सबसे मशहूर पर्व है। सम्मान से इसे महापर्व भी कहा जाता है। छठ की महत्ता का आप इससे अंदाज लगा सकते हैं कि बिहार और पूर्वांचल में छठ के आगे दिवाली की रौनक कमजोर पड़ जाती है।

मगर छठ महापर्व अब बिहार और यूपी से निकलकर पूरे देश में मनाया जाने लगा है। देश भर में फैले बिहार, यूपी के लोग अपनी तीज-त्यौहार की परंपरा को जीवित रखते श्रद्धापूर्वक छठ पर्व मनाते हैं। यही वजह है कि देश का कोई भी शहर और कस्बा ऐसा नहीं होगा, जहां छठ नहीं मनाया जाता होगा।

छठ की महत्ता को जान अब दूसरे प्रांतों के लोग भी बढ़-चढ़कर छठ पर्व को मना रहे हैं। जो लोग इस पर्व को नहीं मनाते उनमें इतनी उत्सुकता अवश्य होती है कि घाटों पर जाकर छठी मैया का आर्शीवाद ग्रहण करना चाहते हैं।

सबसे कठिन व्रत

किसी भी धर्म में छठ इतना कठिन उपवास वाला व्रत नहीं है। बिलासपुर जिले के रतनपुर महामाया मंदिर के पुजारी पं0 संतोष शर्मा का कहना है कि 36 घंटे का उपवास वाले इस यह व्रत किसी तपस्या से कम नहीं। जाहिर है, कार्तिक के महीने में सूर्योदय से कई घंटे पहले व्रती नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य भगवान के प्रगट होने की प्रतीक्षा करते हैं।

दो चरणों में 36 घंटे का उपवास

हिन्दू धर्म में चार दिन चलने वाला कोई व्रत नहीं है। छठ नहाय खाए से प्रारंभ होकर चौथे दिन सूर्य भगवान को अर्ग याने अद्धर्य देने के बाद समाप्त होता है। मसलन, छठ-2024 में 5 नवंबर को नहाय खाए है। नहाय खाए से छठ व्रत प्रारंभ होता है।

नहाय खाए क्या होता है?

छठ व्रत नहाय खाए से प्रारंभ हो जाता है। इसका नाम नहाय खाए इसलिए रखा गया कि उपवास के साथ ही पूजा-पाठ के लिए इस दिन से विशेष सर्तकता रखनी शुरू हो जाती है। नहाय खाए को आमतौर पर छठ व्रती चावल और लौकी की सब्जी खाते हैं। जानकारों का कहना है कि चावल और लौकी की सब्जी सेवन करने का नियम इसलिए बनाया गया होगा कि उपवास के पहले पेट उसके लिए तैयार रहे। मसालेदार हेवी भोजन से तबियत बिगड़ने की आशंका रहती है।

खरना से उपवास प्रारंभ

छठ व्रत खरना से प्रारंभ होता है। इस दिन छठ व्रती दिन भर निर्जला उपवास करके शाम को सूर्य भगवान की उपासना कर रोटी और गुड़ के खीर का प्रसाद बनाते हैं। नहाय खाय के रात में छठ व्रती पानी पीते हैं, उसके बाद खरना की देर शाम प्रसाद के साथ ही पानी ग्रहण करते हैं। याने खरना का उपवास भी 12 घंटे से अधिक का हो जाता है। छठ-2024 में 6 नवंबर को खरना है। खरना की रात के बाद फिर करीब 24 घंटे का कठिन उपवास शुरू होता है।

12 प्लस 24 घंटे याने 36 घंटे का उपवास

खरना के 12 घंटे के उपवास के बाद फिर छठ का 24 घंटे का उपवास प्रारंभ होता है। इस पर 7 नवंबर को पहला अर्ग है। दिन में छठ व्रती ठुकेआ का प्रसाद बनाती हैं। और शाम को डूबते सूर्य को दो हाथ में दौरा याने प्रसाद भरी टोकनी लेकर उन्हें अर्ग देती हैं। अस्त होते सूर्य को अर्ग देने के समय विहंगम दृश्य होता है। इसके लिए छठ व्रती महिला और पुरूष दोपहर बाद से छठ घाट पहुंच जाते हैं। सूर्य अस्त होने के घंटे भर पहले घूटने भर पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य के अस्त होने के बाद ही पानी से बाहर निकलती हैं।

रात में कोशी की पूजा

पहले दिन का अर्ग देने के बाद छठ व्रती घर पहुंचकर कोसी की पूजा करती है। कोसी याने मिट्टी के हाथी और उस पर कलश रखा जाता है। फिर पांच-सात गन्ने को बांधकर कोशी के चारों तरफ उसे फैला दिया जाता है। साथ में दियों की रोशनी। इस दौरान महिलाएं छठ की गीत गाती रहती हैं।

कोसी का विसर्जन

अगले दिन सूर्योदय से घंटे भर पहले घाट पर जाकर पहले कोशी की उसी तरह पूजा की जाती है, जैसा कि घर में की गई। इसके बाद कोशी को नदी में विसर्जित किया जाता है। फिर छठ व्रत समापन की तरफ बढ़ने लगता है।

सूर्य भगवान को आखिरी अर्ग

24 घंटे से निर्जला उपवास कर रही छठ व्रती महिलाएं सूर्योदय से घंटे भर पहले हाथ जोड़कर पानी में खड़ी होती हैं। जैसे ही सूर्य की लालिमा दिखाई पड़ती है...फिर अर्ग देने का सिलसिला प्रारंभ होता है। अर्ग देने के बाद फिर प्रसाद वितरण होता है। इसके बाद छठ व्रती घर जाकर अपना व्रत तोड़ते हैं। उसके बाद सफल व्रत करने के उपलक्ष्य में देवी की पूजा की जाती है। वो इसके लिए होता है कि देवी ने छठ जैसे कठिनतम व्रत करने के लिए उन्हें शक्ति दी।

डूबते सूर्य को अर्ग

दुनिया में मुहावरा है कि डूबते सूर्य की तरफ कोई देखता नहीं। डूबते का मतलब ये होता है कि अब अंधियारा पसरने वाला है फिर सूर्य तरफ देखने का क्या मतलब? इस मुहावरे को जनसामान्य से जोड़ा गया है...जिसके सितारे गर्दिश में होते हैं, उनके तरफ कोई देखता नहीं। हर आदमी उगते सूर्य को नमन करता है। मगर दुनिया में सिर्फ छठ व्रत ही ऐसी पूजा है, जिसमें सबसे पहले डूबते सूर्य की उपासना की जाती है। इसके अगले दिन फिर उगते सूर्य की। इसका तात्पर्य है कि जिस आदमी का समय खराब चल रहा है, इसका ये मतलब नहीं कि उसका फिर उदय नहीं होगा।

Tags:    

Similar News