KULESHWAR MAHADEV : माता सीता ने यहां शिवलिंग बनाकर की थी पूजा... मामा-भांजा एक साथ नहीं बैठते नाव पर, जाने क्यों

KULESHWAR MAHADEV : छत्तीसगढ़ को भगवान राम के वनवास काल के पथगमन मार्ग के रूप में चिह्नित किया गया है और इस तथ्य को प्रमाणित करते हुए कई अवशेष यहां मौजूद हैं।

Update: 2024-08-01 15:19 GMT

KULESHWAR MAHADEV RAJIM :  महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित राजिम के कुलेश्वर महादेव मंदिर में कभी वनवास काल के दौरान मां सीता ने शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी. आज जो मंदिर यहां मौजूद है उसका निर्मांण आठवीं शताब्दी में हुआ था।

छत्तीसगढ़ को भगवान राम के वनवास काल के पथगमन मार्ग के रूप में चिह्नित किया गया है और इस तथ्य को प्रमाणित करते हुए कई अवशेष यहां मौजूद हैं। इन्हीं में से ये मंदिर एक प्रतीक है. मंदिर का दर्शन करने देशभर से लोग यहां पहुंचते हैं।

राजिम में नदी के एक किनारे पर भगवान राजीवलोचन का मंदिर है और बीच में कुलेश्वर महादेव का मंदिर। किनारे पर एक  और महादेव मंदिर है, जिसे मामा का मंदिर कहा जाता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर को भांजे का मंदिर कहते हैं। किंवदंती है कि बाढ़ में जब कुलेश्वर महादेव का मंदिर डूबता था तो वहां से मामा बचाओ आवाज आती है।



 इसी मान्यता के कारण यहां आज भी नाव पर मामा-भांजे को एक साथ सवार नहीं होने दिया जाता है। नदी किनारे बने मामा के मंदिर के शिवलिंग को जैसे ही नदी का जल छूता है उसके बाद बाढ़ उतरनी शुरू हो जाती है।

कहा जाता है कि नदियों के संगम पर मौजूद इस मंदिर के अंदर एक गुप्त गुफा मौजूद है जो नजदीक ही स्थित लोमस ऋषि के आश्रम तक जाती है।


स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना, हैरान कर देती है नींव की मजबूती

राजिम के त्रिवेणी संगम के बीच में वर्षों से टिका कुलेश्वर महादेव मंदिर स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। करीब 1200 साल पहले बना यह मंदिर प्राचीन भवन निर्माण तकनीक का अनोखा उदाहरण है। तीन नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण यहां बारिश के दिनों में नदियां पूरी तरह आवेग में होती हैं। इसके बीच अपनी मजबूत नींव के साथ मंदिर सदियों से टिका हुआ है।


तराशे गए पत्थरों से बना है विशाल मंदिर

मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊंचाई 4.8 मीटर है मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से चिनाई की गई है। इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढ़ियां बनी हैं। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है। चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। मंदिर निर्माण के लिए लगभग 2 किलोमीटर चौड़ी नदी में उस समय निर्माताओं ने ठोस चट्टानों का भूतल ढूंढ निकाला था। यह मंदिर और राजिम अब कुंभ के रूप में प्रसिद्ध हो चला है। अब यहां देशभर के साधु-संत इकठ्ठा होते हैं।

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