Chaiturgarh Chhattisgarh Ka Kashmir: इस समर वेकेशन को खास और यादगार बनाये छत्तीसगढ़ के कश्मीर "चैतुरगढ़" संग
Chaiturgadh : ठंडी जलवायु, घने जंगल, ऊंचे पहाड़, ऐतिहासिक किला, धार्मिक स्थल और खूबसूरत झरने चैतुरगढ़ को एक अद्भुत पर्यटन स्थल बनाते हैं.
Chaiturgarh Chhattisgarh Ka Kashmir: स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां बस होने ही वाली है. छुट्टी लगी नहीं की बच्चोँ की एक ही जिद होती है... बहुत हुआ पढाई चलो ना पापा-मम्मी कही घूमने जाते हैं. और ये ही वक्त ऐसा होता है जो साल भर नौकरी और बच्चों की पढाई के बाद साथ में क़्वालिटी टाइम बिताने का. ऐसे में हर पेरेंट्स महंगे ट्रिप्स अफोर्ट नहीं पाते हैं. मगर आप परेशान ना हो आज एनपीजी न्यूज़ आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहा है जो किसी हील स्टेशन और कश्मीर से कम नहीं। यहाँ जाने लिए ना ज्यादा छुट्टियां लेनी पड़ेगी ना हजारों खर्च करने पड़ेंगे और आपका-बच्चों का क़्वालिटी टाइम भी यादगार हो जायेगा।
ये एक ऐसी जगह है जहां आपको घूमने के साथ-साथ इतिहास, धार्मिक आस्था और रोमांच का एक अनोखा संगम देखने को मिलेगा। हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ में चैतुरगढ़ की, जो किसी पहचान की मोहताज नहीं। इस जगह को छत्तीसगढ़ का हील स्टेशन, कश्मीर और ना जाने कई नामों से नवाजा जाता है. यहां की ठंडी जलवायु, घने जंगल, ऊंचे पहाड़, ऐतिहासिक किला, धार्मिक स्थल और खूबसूरत झरने इसे एक अद्भुत पर्यटन स्थल बनाते हैं।

चैतुरगढ़ न केवल एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल है, बल्कि यह इतिहास, धार्मिक आस्था और रोमांच का एक अनोखा संगम भी है। यह दुर्गम स्थल अलौकिक और प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। यह धार्मिक स्थल के साथ-साथ पिकनिक का बड़ा स्पाट बन चुका है।
तापमान कभी भी 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं
चैतुरगढ़ की सबसे खास बात यहां का मौसम है। यह स्थान समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर स्थित है, जिससे यहां का तापमान कभी भी 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं जाता। यहां की हरी-भरी वादियां, ऊंचे पहाड़ और शांत वातावरण इसे गर्मियों में भी ठंडा बनाए रखते हैं। सुबह-सुबह यहां की घाटियों में तैरते बादल और ठंडी हवा का अहसास आपको कश्मीर की याद दिला सकता है।

3,060 मीटर की ऊंचाई पर है चैतुरगढ़ किला
चैतुरगढ़ किला 3,060 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ पर बसा हुआ है। कोरबा जिले से यह 70 किलोमीटर की दूरी पर है। वहीं इस किले में महिषासुर मर्दिनी मंदिर है। इसके साथ ही यह जगह अलग-अलग प्रकार की जड़ी-बूटियों, औषधियों और वन्य जीव-जंतुओं से भरी हुई है। किले का सफर रोमांचमयी है।
चैतुरगढ़ किले को राजा पृथ्वी देव ने बनवाया था। किले का निर्माण कल्चुरी संवत 821 यानी 1069 ईस्वी में हुआ। किले के अंदर जाने के लिए तीन द्वार यानी रास्ते हैं, मेनका, हुमकारा और सिम्हाद्वार।
चैतुरगढ़ किला में हैं प्राकृतिक दीवारें
हैरानी करने वाली बात यह है कि किले के ज़्यादातर भागों की दीवारें प्राकृतिक हैं यानी प्राकृतिक तौर पर निर्मित है। वहीं किले के अंदर कुछ ही दीवारों का निर्माण किया गया है।
चैतुरगढ़ किले में पांच तालाब है। यह तालाब किले के ऊपर हैं। पांच तालाबों में से तीन तलाब हमेशा सदाबहार रहते हैं यानी इन तालाबों में हमेशा पानी भरा रहता है। यह किले की खासियत को और भी बढ़ाने का काम करते हैं।
- गर्गज तालाब
- सूखी तालाब
- केकड़ा तालाब
- भूखी डबरी
- सिंघी तालाब
गर्गज तालाब, सूखी तालाब और केकड़ा तालाब, ऐसे तालाब हैं जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है। बता दें, गर्गज तालाब, गर्गज पहाड़ के नीचे बसा हुआ है जहां आप घूम भी सकते हैं।
चैतुरगढ़ पहाड़ों से निकलने वाले झरने
चैतुरगढ़ पहाड़ों से चामादरहा, तिनधारी और श्रंगी झरना बहता है। बता दें, हसदेव नदी की सहायक नदी जटाशंकरी नदी का उद्गम मैकाल पर्वत श्रेणी के चैतुरगढ़ के पहाड़ो से हुआ है। यहां का ये नज़ारा अगर एक बार आँखे देख ले तो वह भी मंत्रमुग्ध हो जाती है।
चैतुरगढ़ किले की वास्तुकला
चैतुरगढ़ किले की दीवारे एक जैसी न होने की वजह से कई जगह छोटी तो कई जगह मोटी दिखाई देती है। किले के प्रवेश द्वार को वास्तुकला की दृष्टि से बड़ी ही बखूबी और तरीके से बनाया गया है। इसमें कई सारे स्तंभ और मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं। साथ ही यहां पर एक बहुत बड़ी गुंबद है जो मज़बूत स्तंभों पर बनायी गयी हैं। इस गुंबद को पांच खंभों के सहारे बनाया गया है।
महिषासुर मर्दिनी मंदिर में होती है ठंड
महिषासुर मर्दिनी मंदिर समुद्र तल से 3,060 फ़ीट ( लगभग 1,100 मीटर) की ऊंचाई पर है। महिषासुर मर्दिनी मंदिर की ख़ास बात यह है कि भीषण गर्मी में यहां का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस रहता है। इस वजह से इस जगह को कश्मीर से कम नहीं समझा जाता।
चैतुरगढ़ किले में सबसे ज़्यादा महिषासुर मर्दिनी मंदिर ही मशहूर है। पुरातत्वविद (archaeologists) के अनुसार, इस मंदिर को कल्चुरी शासन काल के दौरान राजा पृथ्वीदेव द्वारा सन् 1069 ईस्वीं में बनवाया गया था।
नागर शैली में बना है महिषासुर मर्दिनी मंदिर
महिषासुर मर्दिनी माता मंदिर को नागर शैली में बनाया गया है। नागर शैली की दो सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे विशिष्ट योजना और विमान की तरह बनाया जाता है। इसकी मुख्य भूमि आयताकार (square) होती है जिसमें बीच के दोनों ओर क्रमिक विमान होते हैं। इस वजह से इसका पूरा आकार तिकोना हो जाता है। बता दें, मंदिर के सबसे ऊपर शिखर होता है जिसे रेखा शिखर भी कहते हैं।
नागर शैली में बने महिषासुर मर्दनी माता मंदिर के गर्भ ग्रह में माता की 12 हाथों वाली मूर्ति रखी हुई है। वहीं इस मंदिर के आस-पास हनुमान, कालभैरव और शनिदेव आदि की मूर्तियां भी रखी हुई हैं। महिषासुर मर्दिनी मंदिर की एक और ख़ास बात यह है कि मंदिर के पास बेहद ही सुंदर शंकर गुफा है जो लगभग 25 फीट लंबी है। गुफा का प्रवेश द्वार छोटा है।
चैतुरगढ़ किला इस तरह पहुंचे
हवाई जहाज द्वारा : आप स्वामी विवेकानन्द अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचकर किले तक आ सकते हैं। राज्य की राजधानी रायपुर से किले की दूरी 200 किलोमीटर है।
ट्रेन द्वारा : चैतुरगढ़ कोरबा रेलवे स्टेशन से लगभग 50 किलोमीटर और बिलासपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर है।
सड़क द्वारा : चैतुरगढ़ कोरबा बस स्टैंड से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर और बिलासपुर बस स्टैंड से करीबन 55 किमी की दूरी पर स्थित है।
कुछ प्रमुख शहरों से चैतुरगढ़ किले की दूरी :-
- बिलासपुर – 73 Km
- कोरबा – 80 Km
- रतनपुर – 48 Km
- कटघोरा – 56 Km
- रायपुर – 191 Km
कहाँ ठहरें
चैतुरगढ़ पहाड़ के ऊपर वन विभाग ने पर्यटकों के रुकने के लिए कॉटेज का निर्माण कराया है। वहीं एसईसीएल ने यहां आने वाले पर्यटकों के लिए विश्राम घर का निर्माण करवाया है। मंदिर के ट्रस्ट ने भी पर्यटकों के लिए कुछ कमरे बनवाए हैं।