Maa Chandrahasini Devi Ka Itihas: छत्तीसगढ़ का पावन शक्तिपीठ जहां चढ़ती है रोज 300 बकरे की बलि, जानिए माँ चंद्रहासिनी मंदिर का इतिहास

Maa Chandrahasini Devi Ka Itihas: छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर-चांपा जिले के चंद्रपुर क्षेत्र में स्थित माँ चंद्रहासिनी मंदिर एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जिसे भक्त अत्यंत श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजते हैं। यह मंदिर महानदी के तट पर स्थित है और इसे मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता सती की बायां कपाल महानदी के पास स्थित पहाड़ी में गिरा था। मंदिर की मूर्ति चंद्रमा आकार की होने के कारण चंद्रहासिनी या चंद्रसेनी दाई कहा जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है, और इसलिए यह क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।

Update: 2025-09-15 11:57 GMT

Maa Chandrahasini Devi Ka Itihas: छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर-चांपा जिले के चंद्रपुर क्षेत्र में स्थित माँ चंद्रहासिनी मंदिर एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जिसे भक्त अत्यंत श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजते हैं। यह मंदिर महानदी के तट पर स्थित है और इसे मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता सती की बायां कपाल महानदी के पास स्थित पहाड़ी में गिरा था। मंदिर की मूर्ति चंद्रमा आकार की होने के कारण चंद्रहासिनी या चंद्रसेनी दाई कहा जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है, और इसलिए यह क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।

मंदिर से जुड़ी एक प्रसिद्ध लोककथा

माँ चंद्रहासिनी मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक प्रसिद्ध लोककथा है। कहा जाता है कि एक निर्दयी पुलिसवाले ने अपने छोटे बच्चे को चंद्रपुर के पुल से महानदी में फेंक दिया था। लेकिन माँ चंद्रहासिनी और उनकी छोटी बहन नाथलदाई ने उस मासूम को अपने आंचल में समेट लिया और उसकी जान बचा ली। इस चमत्कार के बाद से माँ चंद्रहासिनी और उनके आशीर्वाद के प्रति भक्तों का विश्वास और भी गहरा हो गया। यह कथा आज भी श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है और मंदिर के महत्व को बढ़ाती है।

मंदिर का धार्मिक महत्व

माँ चंद्रहासिनी मंदिर न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि आसपास के राज्यों जैसे ओडिशा और मध्य प्रदेश से आने वाले भक्तों के लिए भी एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान भव्य पूजा-अर्चना होती है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के समय भक्तों की भारी भीड़ मंदिर में उमड़ती है, और पूजा के दौरान विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। यह समय मंदिर के लिए सबसे व्यस्त और पवित्र माना जाता है। नवरात्रि पर्व के दौरान 108 दीपों के साथ महाआरती की जाती है।

मंदिर की विशेषताएँ

मंदिर परिसर में भक्तों और पर्यटकों के लिए कई विशेष संरचनाएँ हैं। इसमें एक गुफा है, जो भक्तों के लिए आध्यात्मिक अनुभव को और समृद्ध बनाती है। इसके अतिरिक्त चलित मूर्तियाँ और मंदिर परिसर में छोटी-छोटी संरचनाएँ जैसे हॉरर हाउस भी हैं, 100 फीट विशालकाय महादेव पार्वती की मूर्ति, जो मंदिर को न केवल धार्मिक बल्कि पर्यटन दृष्टि से भी आकर्षक बनाती हैं। मंदिर का वातावरण शांत और प्राकृतिक है, जो आने वाले श्रद्धालुओं को आस्था और शांति का अनुभव कराता है।

मंदिर का ऐतिहासिक अनुष्ठान

मंदिर में बलि प्रथा वर्षों से चली आ रही थी। बताया जाता है कि भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर बकरों और मुर्गियों की बलि चढ़ाते थे। प्रत्येक वर्ष लगभग 1000 से 1500 बकरों की बलि दी जाती थी। शारदीय नवरात्रि में रोजाना 200 से 300 बकरे की बलि दी जाती थी। हालाँकि, समाज में बढ़ती जागरूकता और भक्तों की मांग पर मंदिर ट्रस्ट ने 2024 के शारदीय नवरात्रि के बाद इस प्रथा पर पूरी तरह रोक लगा दी। अब मंदिर परिसर में बोर्ड लगाकर श्रद्धालुओं को सूचित किया गया है कि बलि प्रथा अब स्वीकार नहीं की जाएगी। यह कदम धार्मिक परंपराओं और आधुनिक सामाजिक मूल्यों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास है।

मंदिर पहुँच मार्ग

डभरा तहसील से मंदिर की दूरी लगभग 22 किलोमीटर है, और सड़क मार्ग द्वारा आसानी से यहाँ पहुँचा जा सकता है। मंदिर महानदी के तट पर स्थित होने के कारण प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए धार्मिक आस्था के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य का भी अनुभव प्रदान करता है।

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