Chandrahasini Devi, Chandrapur: मां चंद्रहासिनी के दर्शन मात्र से पूरी हो जाती है मनोकामनाएं
Chandrahasini Devi, Chandrapur: रायपुर। शारदीय नवरात्र चल रहा है। छत्तीसगढ़ के शक्तिपीठ मां चंद्रहासिनी का मंदिर भक्तों के जयकारे से गूंज रहा है। मां के दिव्य दर्शन और अनुपम आशीर्वाद के लिए हर रोज हजारों की संख्या में भक्त चंद्रपुर पहुंच रहे हैं। छत्तीसगढ़ ही नहीं ओडिशा से बड़ी संख्या में भक्त चंद्रपुर पहुंच रहे हैं। यहां नवरात्रि के दौरान 108 दीपों के साथ होने वाली महाआरती सबसे अलौकिक है, जिसमें हर कोई शामिल होना चाहता है। कहते हैं कि सर्वसिद्धिदात्री मां चंद्रहासिनी की पूजा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्रि उत्सव के दौरान भक्त नंगे पांव मां के दरबार में पहुंच रहे हैं और कर नापकर मां की विशेष कृपा अर्जित कर रहे हैं। मां चंद्रहासिनी देवी को समर्पित ये भव्य मंदिर रायगढ़ से करीब 32 किलोमीटर दूर चंद्रपुर में महानदी के तट पर स्थित है।
प्राकृतिक सुंदरता से घिरा मां का दरबार
महानदी और मांड नदी के बीच स्थित मां चंद्रहासिनी का मंदिर चारों ओर से प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है। मां चंद्रहासिनी के दर्शन करने आने वाले भक्त पौराणिक और धार्मिक कथाओं की झांकी, समुद्र मंथन आदि से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। मंदिर के प्रांगण में अर्धनारीश्वर, महाबलसाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चिरहरण, महिषासुर वध, चार धाम, नवग्रह, सर्वधर्म सभा, शेषनाग बिस्तर और अन्य देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियां दिखाई देती हैं। इसके अलावा, मंदिर के मैदान पर एक चलती हुई झांकी महाभारत काल को जीवंत तरीके से दर्शाती है, जिससे आगंतुकों को महाभारत के पात्रों और कथानक के बारे में जानने को मिलता है। वहीं माता चंद्रसेनी की चंद्रमा के आकार की मूर्ति के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
सरगुजा से आईं चंद्रहासिनी
यहाँ प्रचलित किंवदंती के अनुसार चंद्रमा के आकार की विशेषताओं के कारण उन्हें चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम से जाना जाता है। हजारों वर्षो पूर्व माता चंद्रसेनी देवी सरगुजा की भूमि को छोड़कर उदयपुर और रायगढ़ से होते हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आ गई। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर माता यहां पर विश्राम करने लगी। सालों गुजर गए, लेकिन देवी की नींद नहीं खुली। एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहां से गुजरती है, तभी अनजाने में चंद्रसेनी देवी को उनका पैर लग जाता है और माता की नींद खुल जाती है। फिर स्वप्न में देवी उन्हें यहां मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना का निर्देश देती हैं। संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है। देवी की आकृति चंद्रहास अर्थात चन्द्रमा के सामान मुख होने के कारण उन्हें चंद्रहासिनी देवी भी कहा जाने लगा। राज परिवार ने मंदिर की व्यवस्था का भार यहां के एक जमींदार को सौंप दिया। उस जमींदार ने माता को अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना की। इसके बाद से माता चंद्रहासिनी की आराधना जारी है।
महानदी के बीच मां नाथलदाई का मंदिर
मां नाथलदाई का मंदिर महानदी के बीच में चंद्रहासिनी के मंदिर से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। महानदी के बीच स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पुल से होकर जाना पड़ता है। कहा जाता है कि मां चंद्रहासिनी के दर्शन के बाद माता नाथलदाई के दर्शन भी जरूरी है। अन्यथा माता नाराज हो जाती है। यह भी कहा जाता है कि महानदी में बरसात के दौरान लबालब पानी भरे होने के बाद भी मां नाथलदाई का मंदिर नहीं डूबता।
कैसे, कब जाएं चंद्रपुर
मां चंद्रहासिनी मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है। आप कभी भी इस मंदिर में दर्शन करने जा सकते हैं। साल के दोनों नवरात्रि पर्वों में मेले जैसा माहौल होता है इसलिए अगर आप नवरात्री में जायेंगे तो आपको एक अलग ही माहौल देखने को मिलेगा। निकटतम हवाई अड्डा रायपुर का स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट है। रायपुर से सड़क मार्ग से चंद्रपुर 225 किलोमीटर, बिलासपुर से 150 किलोमीटर, जांजगीर से 110 किलोमीटर, रायगढ़ से 32 किलोमीटर, सारंगढ़ से 29 और डभरा से 22 किलोमीटर की दूरी पर है। जांजगीर, चांपा, रायगढ़, सारंगढ़ और डभरा से सीधी बस चंद्रपुर के लिए हर घंटे में मिल जाती है। निजी वाहन किराये पर लेकर भी यहां पहुंचा जा सकता है।