Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: सजा के खिलाफ दायर मामले में अपीलीय न्यायालय को सजा बढ़ाने का नहीं है अधिकार, बशर्ते...

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर अपीलीय न्यायालय द्वारा पूर्व में दिए गए सात साल की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। डिवीजन बेंच ने अपीलीय न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए पूर्व में दिए गए सात साल की सजा को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलीय न्यायालय दोषी द्वारा दायर अपील में सजा नहीं बढ़ा सकता, क्योंकि यह निष्पक्षता के सिद्धांत और CrPC की धारा 386 (बी) (iii) के तहत वैधानिकता का उल्लंघन करता है।

Update: 2025-05-20 06:17 GMT

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Supreme Court: नईदिल्ली। पाक्सो एक्ट के तहत एक मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को सात साल की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए आरोपी में हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। अपील की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने मामले को वापस ट्रायल कोर्ट भेजते हुए सजा में वृद्धि का आदेश दिया था। हाई कोर्ट के आदेश पर ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को पूर्व में दिए गए सात साल की सजा में बढ़ोतरी करते हुए आजीवन कारावास क सजा सुना दी। आरोपी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश पर ट्रायल कोर्ट द्वारा सजा में की गई वृद्धि को रद्द करते हुए वापस सात साल की सजा सुनाई है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने CrPC की धारा 386 (बी) (iii) में दिए गए प्रावधान का विस्तार से व्यााख्या किया है।

अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा कि सजा के खिलाफ अपील में अपीलीय न्यायालय सजा बढ़ाने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकता। डिवीजन बेंच ने जब तक संबंधित राज्य के अलावा पीड़ित या फिर शिकायकर्ता ने सजा में वृद्धि के लिए अपील या फिर संशोधन याचिका दायर ना किया हो तब तक कोर्ट सजा में वृद्धि संबंधी आदेश पारित नहीं कर सकता।

सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया है कि अपीलीय न्यायालय दोषी द्वारा दायर की गई अपील की सुनवाई के दौरान सजा नहीं बढ़ा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह निष्पक्षता के सिद्धांत और CrPC की धारा 386 (बी) (iii) के तहत वैधानिक योजना का उल्लंघन करता है। जो इस तरह की अपीलों में सजा में वृद्धि को प्रतिबंधित करता है। सजा में वृद्धि के लिए संबंधित राज्य या पुिर पीड़ित द्वारा अलग से अपील दायर करने की आवश्यकता है।

मामले की सुनवाई जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि अभियुक्त द्वारा दायर अपील में अपीलीय न्यायालय दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सजा को बढ़ा नहीं सकता।

इसलिए आरोपी गया सुप्रीम कोर्ट

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने दोषी द्वारा (POCSO Act और IPC के तहत यौन उत्पीड़न के लिए) दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपील का फैसला करते हुए अपनी पुनर्विचार शक्तियों का प्रयोग किया और सजा बढ़ाने पर पुनर्विचार के लिए मामले को ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट के पास उचित मामलों में सजा बढ़ाने के लिए CrPC की धारा 401 के तहत स्वप्रेरणा से पुनरीक्षण शक्तियां हैं। इस का प्रयोग अभियुक्त द्वारा दायर अपील में नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि हाई कोर्ट ने सजा बढ़ाने के लिए मामले को वापस भेजने में गलती की, जबकि आरोपी स्वयं अपीलकर्ता था, क्योंकि इससे उसकी स्थिति पहले से भी बदतर हो गई।

सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी के प्रावधानों को किया स्पष्ट

डिवीजन बेंच ने कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि राज्य या शिकायतकर्ता या पीड़ित द्वारा दायर अपील में सजा बढ़ाने के लिए अपीलीय न्यायालय की शक्तियों के प्रयोग के लिए CrPC में प्रावधान है, कि अपीलीय न्यायालय निष्कर्ष और सजा को पलट सकता है। अभियुक्त को दोषमुक्त या बरी कर सकता है या उसे अपराध की सुनवाई करने के लिए न्यायालय द्वारा पुनः सुनवाई करने का आदेश दे सकता है या सजा को बनाए रखते हुए निष्कर्ष को बदल सकता है, या निष्कर्ष को बदले बिना सजा की प्रकृति सीमा को बदल सकता है लेकिन उसे बढ़ाने के लिए नहीं।

यह भी प्रावधान है कि अपीलीय न्यायालय उस अपराध के लिए अधिक सजा नहीं देगा, जो उसकी राय में अभियुक्त ने किया है, जो अपील के तहत सजा का आदेश पारित करने वाले न्यायालय द्वारा उस अपराध के लिए दी जा सकती थी।"

हाई कोर्ट के फैसले को ठहराया अनुचित

डिवीजन बेंच ने कहा, उपर्युक्त तथ्यों और परिस्थितियों में हम पाते हैं कि हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने अपीलकर्ता-अभियुक्त पर लगाई जाने वाली सजा को बढ़ाने के लिए मामले को विशेष न्यायालय को वापस भेजने में सही नहीं किया, वह भी अभियुक्त द्वारा दायर अपील में, जिसमें उस पर लगाए गए दोषसिद्धि और सजा का फैसला रद्द करने की मांग की गई। परिणामस्वरूप, स्पेशल कोर्ट ने पूर्वोक्त निर्देश का पालन करते हुए पहले दी गई सात साल की कठोर कारावास की सजा बढ़ाकर आजीवन कारावास में बदलने में सही नहीं किया।

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