Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: CrPC की धारा 311 के तहत कोर्ट ट्रायल के किसी भी चरण में किसी व्यक्ति को अतिरिक्त गवाह के रूप बुला सकता है...
Supreme Court- आनर किलिंग के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 311 के तहत न्यायालय को विशेषाधिकार प्राप्त है। कोर्ट ट्रायल के किसी भी चरण में किसी भी व्यक्ति को अतिरिक्त गवाही के रूप में बुला सकता है। कोर्ट का यह विशेषाधिकार है कि अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में अतिरिक्त गवाह की जांच की अनुमति दी जा सकती है।
Supreme Court: नईदिल्ली। आनर किलिंग से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 311 के अनुसार बुलाए गए अतिरिक्त गवाह की अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में जांच की जा सकती है। यदि न्यायालय को लगता है कि ऐसे व्यक्ति की अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में जांच की जानी चाहिए थी, लेकिन चूक के कारण उसे छोड़ दिया गया।
कोर्ट ने यह भी माना कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 (प्रश्न पूछने या पेशी का आदेश देने की न्यायाधीश की शक्ति) के तहत शक्तियां दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 311 (महत्वपूर्ण गवाह को बुलाने या उपस्थित व्यक्ति की जांच करने की शक्ति) की पूरक है। इसका प्रयोग मामले के किसी भी पक्ष द्वारा या न्यायालय द्वारा स्वप्रेरणा से किया जा सकता है, जब कोई भी पक्ष ट्रायल के किसी भी चरण में किसी व्यक्ति को अतिरिक्त गवाह के रूप में लाना चाहता है, भले ही साक्ष्य बंद हो गया हो।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पीके मिश्रा की डिवीजन बेंच ने तमिलनाडु के 'कन्नगी-मुरुगेसन' ऑनर किलिंग मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हिुए 11 दोषियों द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 311 के तहत न्यायालयों के पास व्यापक विवेकाधिकार है। इन शक्तियों का प्रयोग स्वप्रेरणा से या किसी भी पक्ष द्वारा प्रस्तुत आवेदन पर किया जा सकता है। इसका उद्देश्य भी साफ है कि न्यायालय को किसी भी महत्वपूर्ण साक्ष्य के लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। यह अत्यंत आवश्यक है कि अदालत को उपलब्ध महत्वपूर्ण साक्ष्य से अवगत कराया जाए। साक्ष्य के संबंध में मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालयों को स्वयं निर्णय लेने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए हैं कि क्या किसी गवाह को एक्जामाइन या प्री एक्जामाइन के लिए बुलाया जाना चाहिए या वापस बुलाया जाना चाहिए।
CrPC की धारा 311 के तहत दी गई शक्ति का इस्तेमाल कभी भी किया जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि CrPC की धारा 311 के तहत इस शक्ति का इस्तेमाल मुकदमे के किसी भी चरण में यहां तक कि साक्ष्य के बंद होने के बाद भी किया जा सकता है। CrPC की धारा 311 को साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के साथ भी पढ़ा जा सकता है, क्योंकि साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत न्यायालय की शक्तियां CrPC की धारा 311 की पूरक हैं।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने दी यह व्यवस्था
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मुरुगेसन की सौतेली मां, जो प्रत्यक्षदर्शी गवाह है, उसको CBI द्वारा दायर आरोपपत्र में गवाह के रूप में उल्लेख नहीं किया गया। बाद में मुकदमे के दौरान ही अभियोजन पक्ष द्वारा CrPC की धारा 311 के तहत एक आवेदन पेश कर उसे अतिरिक्त गवाह के रूप में बुलाने की मांग की। इस पर आपत्ति दर्ज कराते हुए इस आधार पर चुनौती दी गई कि उसे 'अदालती गवाह' के रूप में बुलाया जाना चाहिए था, न कि अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में। आपत्ति में इस बात की आशंका जाहिर की थी कि वह अपने बयान से पलट सकती है और इससे अंततः आरोपी व्यक्तियों को लाभ होगा।
डिवीजन बेंच ने ये कहा
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि यदि अदालत को लगता है कि ऐसे व्यक्ति की अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में जांच की जानी चाहिए थी और उसे किसी चूक, गलती या किसी अन्य कारण से गवाहों की सूची से हटा दिया गया था तो अदालत आवेदन को स्वीकार कर सकती है। ऐसे व्यक्ति की अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में जांच की जा सकती है। इसके बाद चीफ एक्जामाइन, क्रॉस एक्जामिनेशन आदि का सामान्य क्रम प्रक्रिया के अनुसार चलेगा। दूसरी ओर, जब अदालत किसी व्यक्ति को अदालती गवाह के रूप में बुलाती है तो ऐसे गवाह की क्रॉस एक्जामाइन के संबंध में कुछ प्रतिबंध होते हैं।" यह तब होता है जब कोई भी पक्ष किसी व्यक्ति की गवाह के रूप में जांच करने में रुचि नहीं रखता है। फिर भी अदालत को लगता है कि ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य न्यायपूर्ण निर्णय के लिए आवश्यक है। हालांकि न्यायालय अभियोजन पक्ष या बचाव पक्ष को गवाह बुलाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता, लेकिन वह साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के साथ CrPC की धारा 311 के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर ऐसे व्यक्ति को न्यायालय का गवाह बुला सकता है। डिवीजन बेंच ने माना कि अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में ट्रायल कोर्ट द्वारा गवाह को बुलाने में कुछ भी गलत नहीं था।
क्या है मामला
यह मामला एस मुरुगेसन और डी कन्नगी की नृशंस हत्या से जुड़ा था। जिन्हें लड़की के पिता और भाई ने जहर देकर मार दिया। मुरुगेसन केमिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट था और दलित समुदाय से था। कन्नगी वाणिज्य ग्रेजुएट थी और वन्नियार समुदाय से थी। इस जोड़े ने 5 मई, 2003 को गुप्त रूप से विवाह कर लिया था। जब कन्नगी के परिवार को विवाह के बारे में पता चला तो उन्होंने 7 जुलाई, 2003 को उस समय जोड़े को पकड़ लिया, जब वे शहर छोड़ने वाले थे और जोड़े को कीटनाशक (जहर) पिला दिया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई। बाद में उनके शवों को जला दिया गया।
इस जोड़े की हत्या को तमिलनाडु राज्य में "ऑनर किलिंग" के पहले मामलों में से एक माना गया। पुलिस की असफल जांच के बाद मामले की जांच CBI को सौंप दी गई। 2021 में ट्रायल कोर्ट ने कन्नगी के भाई मरुदुपांडियन को मौत की सज़ा सुनाई और उसके पिता समेत 12 अन्य को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने मरुदुपांडियन की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया और उसके पिता समेत दस अन्य की आजीवन कारावास की सज़ा की पुष्टि की। दो लोगों को बरी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने मुरुगेसन के पिता और सौतेली मां को संयुक्त रूप से बतौर क्षतिपूर्ति 5 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया है।