प्रोफेसर के बयान पर बवाल: 'औरंगजेब' को बताया कुशल शासक; 'महाराणा प्रताप' और 'पृथ्वीराज चौहान' से की थी तुलना
मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की वीसी प्रो. सुनीता मिश्रा ने अपने एक बयान में औरंगजेब को कुशल शासक बताया, जिसे लेकर विवाद शुरू हो गया..
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नई दिल्ली। राजस्थान के उदयपुर में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुनीता मिश्रा ने एक सेमिनार में औरंगजेब को कुशल प्रशासक बताते हुए उसकी तुलना महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान जैसे महान शासकों से कर दी थी। उनके इस बयान के बाद पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। छात्रों और राजपूत संगठनों ने इसे मेवाड़ के गौरव और इतिहास का अपमान बताया। बढ़ते विरोध को देखते हुए प्रो. मिश्रा ने सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी और अपने बयान को वापस ले लिया, लेकिन इस घटना ने औरंगजेब के शासनकाल को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। तो आइए जानते हैं कि, कौन था औरंगजेब, कैसा था उसका शासन काल..
'औरंगजेब' एक क्रूर या कुशल शासक?
जानकारी के अनुसार, औरंगजेब का पूरा नाम 'अबुल मुजफ्फर मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब' था। वह 1658 से 1707 तक लगभग 49 वर्षों तक मुगल साम्राज्य का शासक रहा। भारतीय इतिहास में उसे सबसे विवादास्पद और क्रूर शासकों में से एक माना जाता है। हालाँकि, कुछ इतिहासकार उसके अनुशासन और प्रशासनिक दक्षता की भी बात करते हैं।
सत्ता के लिए क्रूरता की कहानी
औरंगजेब का शासन सत्ता की भूख और क्रूरता से शुरू हुआ। उसने गद्दी हासिल करने के लिए अपने ही परिवार को नहीं बख्शा। उसने अपने बीमार पिता शाहजहां को कैद कर दिया और उनके भाइयों 'दारा शिकोह, शाह शुजा और मुराद बख्श' को मारकर सत्ता हथिया ली थी।
धार्मिक कट्टरता और अत्याचार
इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम था। उसने इस्लामी कानूनों को कठोरता से लागू किया और गैर-मुस्लिमों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए। उसने जजिया कर फिर से लागू किया, जो गैर-मुस्लिमों पर एक धार्मिक कर था। इसके आलावा उसने कई मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया, जिनमें काशी विश्वनाथ और सोमनाथ मंदिर प्रमुख थे।
उसके शासन काल में लाखों हिंदुओं को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया। उसने सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी और मराठा शासक संभाजी महाराज की बेरहमी से हत्या करवा दी, क्योंकि उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। उसकी इन नीतियों ने जनता में असंतोष फैलाया और साम्राज्य के कई हिस्सों में विद्रोह शुरू हो गए, जिनमें जाट, राजपूत, सिख और मराठे प्रमुख थे।
सैन्य और प्रशासनिक क्षमता
अपनी क्रूरता के बावजूद, कुछ इतिहासकार औरंगजेब को एक कुशल प्रशासक मानते हैं। ऐसा इसलिए भी कियोंकि, वह अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत अनुशासित था। वह शाही खजाने पर फिजूलखर्ची से बचता था और दिखावे से दूर रहता था। इसके आलावा वह एक सक्षम सेनापति था, जिसने अपने भाइयों को हराया और दक्कन में सफल सैन्य अभियान चलाए।
उसके शासनकाल में मुगल साम्राज्य अपने सबसे बड़े भौगोलिक विस्तार तक पहुंचा। उसने अपने परदादा अकबर की राजस्व नीतियों को दक्षिण में लागू किया, जिससे साम्राज्य की आर्थिक व्यवस्था को कुछ हद तक सहारा मिला। हालांकि, उसकी धार्मिक नीतियों और लगातार युद्धों ने अंततः साम्राज्य की आर्थिक और सामाजिक नींव को कमजोर कर दिया।
महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान से तुलना क्यों गलत?
प्रोफेसर मिश्रा ने औरंगजेब की तुलना महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान से की थी, जो कई मायनों में गलत है। महाराणा प्रताप, जिन्होंने अपना पूरा जीवन मुगलों की अधीनता स्वीकार न करने और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया। उनकी लड़ाई स्वाभिमान और स्वतंत्रता की लड़ाई थी। वहीं, 'पृथ्वीराज चौहान' जिन्हे भारत के इतिहास में वीर योद्धा के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। उनकी छवि एक महान देशभक्त राजा की है।
इसके विपरीत, औरंगजेब ने सत्ता के लिए अपने ही परिवार के सदस्यों की हत्या की और अपने ही देश की जनता पर अत्याचार किए। जहाँ प्रताप और चौहान को उनकी वीरता और मातृभूमि के प्रति उनके समर्पण के लिए याद किया जाता है, वहीं औरंगजेब को उसकी धार्मिक असहिष्णुता और क्रूर नीतियों के लिए जाना जाता है।
औरंगजेब की मौत और साम्राज्य का पतन
इतिहास के अनुसार, लगभग 49 वर्षों तक शासन करने के बाद 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हुई थी। उसकी मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का तेजी से पतन शुरू हो गया था। उसके द्वारा शुरू किए गए लगातार युद्धों और धार्मिक नीतियों ने साम्राज्य को अंदर से खोखला कर दिया था, जिससे केंद्रीय सत्ता कमजोर हो गई और छोटे-छोटे विद्रोहों ने सिर उठा लिया। इस तरह, उसकी तथाकथित कुशलता ने अंततः साम्राज्य के पतन का मार्ग प्रशस्त किया।