Yuktiyuktkaran: प्रभारवाद के चलते स्कूल शिक्षा विभाग में व्याप्त है भ्रष्टाचार... युक्तियुक्तकरण में हो रही गड़बड़ी इसी का नतीजा - प्रदीप पाण्डेय
Yuktiyuktkaran: सर्व शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप पाण्डेय ने स्कूल शिक्षा विभाग में कैडर के शिक्षक होने के बाद चलाए जा रहे प्रभारवाद को लेकर सवाल उठाया है। प्रदीप पांडेय ने साफ कहा कि प्रभारवाद के बहाने बैक डोर एंंट्री पाने वाले अफसर पहले अपना फिर अपनो का हित लाभ ही देखता है। सारंगढ़ जिला शिक्षा कार्यालय में जो कुछ हो रहा है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। सारंगढ़ डीईओ ने तो नियमों और मापदंडों की जमकर धज्जियां उड़ा दी है। युक्तियुक्तिकरण प्रक्रिया के बीच प्रभारवाद को लेकर उठाए गए सवाल की अब चर्चा भी होने लगी है।
Yuktiyuktkaran: बिलासपुर। सर्व शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप पाण्डेय ने स्कूल शिक्षा विभाग में कैडर के शिक्षक होने के बाद चलाए जा रहे प्रभारवाद को लेकर सवाल उठाया है। प्रदीप पांडेय ने साफ कहा कि प्रभारवाद के बहाने बैक डोर एंंट्री पाने वाले अफसर पहले अपना फिर अपनो का हित लाभ ही देखता है। सर्व शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप पाण्डेय ने गड़बड़ी करने वाले शिक्षकों और उनको संरक्षण देने वाले अफसरों को जमकर निशाना साधा है। प्रदीप का कहना है कि शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं है और इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह प्रभारवाद है। स्वाभाविक बात है जो पैसा देकर प्रभार लेते है वह अलग-अलग तरीकों से अपने पैसे की वसूली भी चाहते हैं और यही वजह है कि चाहे युक्तियुक्तकरण हो या प्रमोशन , ट्रांसफर हो या संशोधन , सभी मामलों में गड़बड़ी निकलकर सामने आ रही है और जमकर भ्रष्टाचार होने के सबूत मिल रहे हैं।
अधिकारियों को जिस प्रकार ऊपर से संरक्षण दिया गया है वह किसी का एक बाल भी बांका नहीं होने दे रहा है। सर्व शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप पाण्डेय ने बताया कि शिक्षक भर्ती एवं पदोन्नति नियम 2019 को को उठाकर कोई भी अध्ययन कर ले जिन चीजों की व्यवस्था स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा बनाई गई है उसके ठीक उलट कार्य हो रहा है । उनका कहना है कि आप उपसंचालक/जिला शिक्षा अधिकारी / प्राचार्य ( प्रथम श्रेणी ) का भर्ती नियम ही उठा कर देख लीजिए इसमें से 25% पदों पर सीधी भर्ती से और 75% पद पर प्राचार्य , सहायक संचालक और विकासखंड शिक्षा अधिकारी की एकीकृत वरिष्ठता सूची से भरा जाना है, लेकिन इसके ठीक उलट प्रदेश के 33 जिलों में से 1- 2 जिलों को छोड़कर अन्य सभी जिलों में प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यरत है। प्रदेश में योग्य अधिकारी होने के बाद भी उनके ऊपर प्रभारियों को तरजीह दी जा रही है। जो इस तरीके से बैक डोर एंट्री करेंगे उनका उद्देश्य ही कुछ और रहेगा जो की फील्ड में नजर भी आता है । इसी प्रकार विकासखंड शिक्षा अधिकारी के 25% पदों पर सहायक विकासखंड शिक्षा अधिकारी की पदोन्नति किए जाने का प्रावधान है और शेष 75% पदों पर कम से कम 5 वर्ष का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ प्राचार्य से भरा जाना है। इसका भी परिपालन नहीं हो रहा है । स्वाभाविक है जो प्रभारवाद से आता है फिर वह चाहे किसी कैडर का हो उसे बाकी किसी चीजों से मतलब नहीं है।
प्रदीप ने उठाए अहम सवाल
सर्व शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप पाण्डेय ने कहा कि बड़ा सवाल लिया है कि जब विभाग में पर्याप्त संख्या में योग्य अभ्यर्थी हैं तो विभाग अपने ही बनाएं शिक्षक भर्ती एवं पदोन्नति नियम का परिपालन करते हुए इन पदों पर भर्ती क्यों नहीं कर रहा है । प्राचार्य प्रमोशन, व्याख्याता प्रमोशन, शिक्षक प्रमोशन, सहायक शिक्षक प्रमोशन सभी लंबित है और इसके माध्यम से भी युक्तियुक्तकरण की समस्या से निपटा जा सकता था लेकिन विभाग ने ऐसा रास्ता चुना जो भ्रष्टाचार की गंगोत्री साबित हो रहा है ।
सारंगढ़ डीईओ ने नियमों की उड़ा दी धज्जियां, एक नहीं कई गफलत किया
सारंगढ़ के मामले को आगे करते हुए बताया कि उदाहरण के तौर पर केवल आप सारंगढ़ के मामले को देख लीजिए वहां पर पहले जूनियर शिक्षकों का नियमितीकरण आदेश जारी न कर सीनियर शिक्षकों को अतिशेष सूची में लाया गया फिर कल स्वामी आत्मानंद के अतिशेष शिक्षकों को इस पूरी प्रक्रिया से बाहर रखने की जानकारी मिली और उनकी पत्नी का मामला पहले से सार्वजनिक है जिसमें नियम विरुद्ध तरीके से संशोधन किया गया है । स्वाभाविक है यह पूरा खेल उनके अपने हितलाभों के तहत खेला गया है और ऐसा ही अनेक जिलों से निकलकर सामने आ रहा है जिसमें शिक्षक सीधे तौर पर बता रहे हैं कि किस तरीके से युक्तियुक्तकरण में उनके साथ अन्याय किया जा रहा है । कई संभागों में तो दावा आपत्ति भी नहीं मंगाया जा रहा है और विरोध करने पर यह कहा जा रहा है की युक्तियुक्तकरण के निर्देश में कहीं पर इसका प्रावधान ही नहीं है यानी अधिकारी जिसे चाहे उसे सूली पर लटका दें और उसके पास अपना पक्ष रखने का भी अधिकार नहीं है । कई जिलों में तो अधिकारी खुद शिक्षकों को चमका कर कह रहे हैं कि जाओ न्यायालय चल दो , यानी ईमानदार शिक्षक बेवजह परेशान हो और अपने जेब से पैसा खर्च करें तब जाकर उसे न्याय मिलेगा । कुल मिलाकर पूरे प्रदेश में यही स्थिति व्याप्त है और जिस प्रकार शासन प्रशासन का रवैया है उसे तो ऐसा लगता है मानो इसे खुला संरक्षण है ।