High Court News: हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, छत्तीसगढ़ में तस्करी और नशीले पदार्थों से जुड़े अपराध बढ़े
High Court News: एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु ने कहा कि राज्य में तस्करी और नशीले पदार्थों से जुड़े अपराध बढ़ रहे हैं, और नशे की हालत में लोगों द्वारा किए गए अपराधों के कई मामले सामने आए हैं, जिसके कारण उन्हें जेल जाना पड़ा है और उनके परिवारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। डिवीजन बेंच ने आगे कहा कि यह जनहित याचिका "न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग" है।
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High Court News: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने एक जनहित याचिका PIL की सुनवाई के दौरान याचिका को लेकर तल्ख टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि जनहित याचिकाओं की "शुद्धता और पवित्रता" को बनाए रखना जरुरी, तुच्छ याचिकाओं को हतोत्साहित करने की जरुरत है। तल्ख टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने पीआईएल को खारिज करने के साथ ही प्रतिभूति राशि को जब्त करने का निर्देश दिया है।
बिलासपुर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार को औद्योगिक भांग, कैनबिस की खेती और विकास की अनुमति देने के निर्देश देने की मांग की गई थी। डिवीजन बेंच ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ में मादक और मनोविकार नाशक पदार्थों की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि का उल्लेख करते हुए चिंता जाहिर की है। पीआईएल की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि इस तरह के सेवन से लोगों के शरीर और दिमाग पर बुरा असर पड़ता है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जनहित याचिका व्यक्तिगत लाभ व निजी मकसद से प्रेरित प्रतीत जान पड़ रही है। याचिकाकर्ता वाणिज्यिक लेनदेन के लिए अनुमति प्राप्त करने का प्रयास करते दिखाई दे रहा है। डिवीजन बेंच ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि राज्य में तस्करी और नशीले पदार्थों से जुड़े अपराध बढ़ रहे हैं, और नशे की हालत में लोगों द्वारा किए गए अपराधों के कई मामले सामने आए हैं, जिसके कारण उन्हें जेल जाना पड़ा है और उनके परिवारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। इसका सेवन करने वाले व्यक्ति को तो नुकसान होता ही है, साथ ही यह पूरे परिवार और समाज को भी बर्बाद कर देता है।
सरकार को नीतिगत फैसले लेने का निर्देश अदालतें नहीं दे सकती-
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि अदालतें सरकार को नीतिगत फैसले लेने का निर्देश नहीं दे सकतीं, खासकर मादक पदार्थों पर नियंत्रण जैसे संवेदनशील मामलों में। व्यक्तिगत रूप से पेश हुए याचिकाकर्ता डॉ. काले ने कहा कि औद्योगिक भांग, अपने कम टेट्रा- हाइड्रोकैनाबिनॉल (THC) की मात्रा (0.3 से 1.5%) होने के कारण, यह मनोवैज्ञानिक रूप से सक्रिय नहीं है और इसके कईऔद्योगिक, चिकित्सीय और पर्यावरणीय लाभ हैं। उन्होंने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में भांग की खेती की अनुमति के साथ-साथ भारत में इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का भी हवाला दिया। याचिकाकर्ता ने भांग के बीज और तेल के संबंध में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की अधिसूचना तथा औषधियों में भांग के तेल के लिए आयुष मंत्रालय के दिशानिर्देशों का भी उल्लेख किया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि नारकोटिक्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985, भांग की बड़े पैमाने पर खेती की अनुमति देता है
अदालतों को याचिकाकर्ताओं की विश्वसनीयता की जांच करनी चाहिए-
मामले की सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि अदालतों को याचिकाकर्ताओं की विश्वसनीयता की जांच करनी चाहिए। कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जनहित याचिका का उद्देश्य बिना किसी व्यक्तिगत लाभ या गुप्त उद्देश्य के, वास्तविक जनहित के मामलों से जुड़ा हो। डिवीजन बेंच ने कहा कि जनहित याचिका के आधार पर, यह न्यायालय ऐसी किसी भी गतिविधि को प्रोत्साहित नहीं कर सकता और न ही राज्य को कोई निर्देश जारी कर सकता है, जो भविष्य में आपदा का कारण बन सकता है।