FL-10 क्या है, बिचौलियों के जरिये शराब खरीदने से सरकारों को क्या होते हैं फायदे, पढ़िये खबर विस्तार से

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव सरकार ने बिचौलियों के जरिये शराब खरीदने की बजाए खुद खरीदी करने का फैसला किया है। इससे न केवल बिचौलियों को बड़ा झटका लगा है बल्कि बीजेपी के कुछ खास नेता दुखी हैं, क्योंकि, पिछले छह महीने में वो ही सब हो रहा था, जो पिछली सरकार में हुआ। बहरहाल, इस खबर में आपको बताएंगे कि एफएल-10 क्या होते हैं और बिचौलिए के जरिये सरकारें शराब क्यों खरीदती हैं।

Update: 2024-06-21 09:46 GMT

What is FL-10 रायपुर। छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए शराब खरीदी की पिछली सरकार की व्यवस्था को पलट दिया। पिछली सरकार ने बिचौलियों के जरिये शराब खरीदना प्रारंभ किया था। छत्तीसगढ़ की देखादेखी दिल्ली की अरबिंद केजरिवाल सरकार ने बिचौलियों के जरिये शराब खरीदी शुरू की और आज मुख्यमंत्री अरबिंद केजरिवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया तिहाड़ जेल में बंद हैं। छत्तीसगढ़ में भ्ज्ञी शराब स्कैम में कई अफसरों को ईडी ने गिरफ्तार किया है। झारखंड सरकार ने भी छत्तीसगढ़ माॅडल पर बिचौलिए के जरिये शराब खरीदने की तैयारी की थी। यहां के अफसरों की सेवाएं भी झारखंड सरकार ने ली थी। मगर बाद में मामला आगे नहीं बढ़ पाया।

जानिये एफएल-10 क्या होता है

छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय कैबिनेट ने बिचौलियों के जरिये शराब खरीदी की व्यवस्था बदली तो एक शब्द पब्लिक डोमेन में आया एफएल-10। दरअसल, कैबिनेट के प्रेस नोट में एफएल-10 को बदलने का जिक्र था। अंग्रेजी के इस दो शब्द का मतलब क्या है, कई लोग एक-दूसरे से पूछते रहे। खुद आबकारी महकमे के अफसर भी एफएल-10 के बारे में अनभिज्ञता जता रहे थे। एफएल का मतलब होता है फाॅरेन लीकर। याने अंग्रेजी शराब। और 10 का आशय शराब की नीति के अनुच्छेद 10 में अंग्रेजी शराब खरीदी का विवरण है। इसलिए इसे एफएल-10 कहा जाता है।

मल्टीनेशनल कंपनियां कमीशन नहीं देती

बिचौलियों के जरिये शराब खरीदने की सबसे बड़ी वजह यह है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां सरकारों को कमीशन नहीं देती। जबकि, देशी कंपनियों से ठीकठाक पैसे मिल जाते हैं। बाहरी कंपनियां आबकारी विभाग के अफसरों को तवज्जो नहीं देते...खरीदना है तो खरीदिए वरना, कोई बात नहीं। राज्यों में कुल शराब खरीदी में से 40 से 50 परसेंट अंग्रेजी शराब का हिस्सा होता है। और ये भी बता दें कि अंग्रेजी शराबों में बाहरी मल्टीनेशनल कंपनियों का दबदबा है। इसके लिए सरकारों ने रास्ता निकाला...सीधे मल्टीनेशनल कंपनियों से शराब खरीदी की बजाए बिचौलिए के जरिये शराब खरीदी जाए। इसके लिए बकायदा टेंडर कर शराब खरीदीे के लिए थर्ड पार्टी अपाइंट किए गए। थर्ड पार्टी याने बिचौलिए मल्टीनेशनल कंपनियों से शराब खरीदकर सरकार को सप्लाई करने लगी। इसमें बिचौलिए अपना मोटी रकम वसूल रही थी। मसलन, एक हजार रुपए की शराब को 1500 में सप्लाई। इसे आप ऐसे समझिए के लोगों की सबसे पसंदीदा ब्लैक लेवल छत्तीसगढ़ में 4000 रुपए के आसपास में मिलता है, वही मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में 32 सौ में मिल जाते हैं। याने एक बोतल पर 800 रुपए कमीशन। मल्टीनेशनल कंपनियां कमीशन नहीं देती थी मगर बिचौलियों से सरकारों को हैंडसम कमीशन मिल रहा था। यही काम अरबिंद केजरिवाल सरकार ने भी किया और फंस गए। इसके अलावा छत्तीसगढ़ की शराब दुकानों में बिचौलिए के जरिये दो नंबर की शराब भी बिकवाई जाती थी। दो नंबर याने आफिसियल के अलावे अलग से दुकानों में बिचैलिये अपने अंग्रेजी शराब रखवा देती थीं और उसक हिसाब अलग होता था।

इसलिए छत्तीसगढ़ में सबसे महंगी शराब

बिचौलिए के जरिये अंग्रेजी शराब खरीदने का नतीजा यह हुआ कि छत्तीसगढ़ में सबसे महंगी शराब बिकने लगी। पिछली सरकार में प्रारंभ के तीन साल तो न ढंग की अंग्रेजी शराब मिल पाती थी और न ही बियर। इसके उलट लोकल कंपनियों की सप्लाई बढ़ गई। लोगों को मन मारकर लोकल कंपनियों की शराब पीना पड़ा या फिर जो लोग साधन संपन्न हैं, वे पड़ोसी राज्यों से अपने पसंद की शराब मंगवा लेते थे। इस चक्कर में लोकल डिस्टिलरी वाले मालामाल हो गए। अभी दो-एक साल से कुछ अच्छे ब्रांड चालू हुए थे मगर वो इतने महंगे थे कि सामान्य आदमी के लिए उसे खरीदना कठिन है।

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