CG Yuktiyuktakaran: युक्तियुक्तकरण पर हाई कोर्ट की रोक? जानिए वायरल खबर का सच और कोर्ट का असली आदेश
गुरुवार शाम से सोशल मीडिया में युक्तियुक्तकरण पर हाई कोर्ट की रोक की खबरें तेजी के साथ वायरल होना शुरू हुआ था। चर्चा होने लगी है कि क्या युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया पर हाई कोर्ट ने वाकई रोक लगा दी है। कोर्ट के आदेश के साथ हम आपको बता रहे हैं कि क्या आदेश जारी हुआ है।
Bilaspur High Court
बिलासपुर। महासमुंद की एक शिक्षिका कल्याणी फेकर ने युक्तियुक्तकरण को लेकर अपनाई जा रही प्रक्रिया के विरोध में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। दायर याचिका में बताया था कि उसके स्कूल में बच्चों की दर्ज संख्या 91 है। जबकि यू डाइस में गलत तरीके से एंट्री कर दी गई संख्या 88 को मानकर उसे अतिशेष घोषित कर दिया गया है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि संस्था प्रमुख के द्वारा उन तीन बच्चों की जानकारी लिखकर भी डीईओ व बीईओ को भेजी गई थी, जिनकी गिनती नहीं हो सकी है। बावजूद इसके न तो उसके आवेदन पर विचार किया गया और न ही उसका नाम अतिशेष सूची से बाहर किया गया।
मामले की सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से पैरवी कर रहे ला अफसर ने कोर्ट के सामने याचिकाकर्ता को आवश्वासन दिया कि उसके आवेदन पर सात दिनों के भीतर की जाएगी। आवेदनों की जांच के बाद विधि संगत तरीके से निराकरण का आश्वासन विधि अधिकारी ने कोर्ट के सामने दिया। ला अफसर के आश्वासन के बाद कोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग को 10 दिनों की मोहलत दी है। मतलब साफ है कि याचिकाकर्ता कल्याणी फेकर द्वारा आवेदन के साथ पेश किए जाने वाले तथ्यों की जांच करने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग अब इस मामले का निपटारा करेगा। याचिकाकर्ता द्वारा दी गई जानकारी यदि सही निकली तो याचिकाकर्ता को इसका लाभ मिल सकता है। एक शिक्षिका की याचिका पर हाई कोर्ट ने इस तरह की व्यवस्था दी है। याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर स्कूल शिक्षा विभाग को निराकरण करना है। कोर्ट ने युक्तियुक्तकरण की प्रकिया पर रोक नहीं लगाई है। इसके अलावा युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली 10 अन्य याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को यह छूट दी है कि वह अपने मामले में अपना अभ्यावेदन विभाग को प्रस्तुत करें और विभाग उस पर नियमानुसार फैसला ले।
युक्तियुक्तकरण मामले में राहत मिलना क्यों हो रहा है मुश्किल-
दरअसल इससे पहले दायर पीआईएल की सुनवाई में बार-बार कोर्ट ने सरकार को ग्रामीण स्कूलों में टीचरों की व्यवस्था बनाने के लिए कहा था। इस बात की ओर भी इशारा किया था कि शहरों में जहां शिक्षक अतिशेष है वहीं ग्रामीण इलाकों में टीचर नहीं है। लिहाजा कोर्ट की नजर भी शहरी और ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों की संख्या को लेकर जो असमानता है उस पर लगी हुई थी। ऐसे में शासन के इस फैसले से ग्रामीण स्कूलों को शिक्षक तो मिल ही रहे हैं। जिनके मामले में विभाग ने राज्य कार्यालय के निर्देशों का पालन नहीं किया होगा और उसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटि हुई होगी तब संबंधित शिक्षकों को राहत की उम्मीद बनेगी।