CG Kabirdham District : जानिए कबीरधाम जिले की पूरी जानकारी, इतिहास और रोचक तथ्य
CG Kabirdham District : कबीरधाम ज़िला, छत्तीसगढ़ राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसका मुख्यालय कवर्धा है, यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ कई प्रमुख दर्शनीय स्थल और प्राचीन मंदिर स्थित हैं. कबीरधाम में स्थित भोरमदेव मंदिर एक महत्वपूर्ण आकर्षण है, जो 11वीं शताब्दी में फणीनांगवंशी काल में निर्मित हुआ था. इसके अलावा, यहां कई अन्य ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों का भी महत्व है.

CG Kabirdham District: कबीरधाम ज़िला, जो पहले कवर्धा ज़िला के नाम से जाना जाता था, भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसका मुख्यालय कवर्धा है, जो रायपुर से 120 किमी और बिलासपुर से 114 किमी की दूरी पर स्थित है. यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ कई प्रमुख दर्शनीय स्थल और प्राचीन मंदिर स्थित हैं. कबीरधाम में स्थित भोरमदेव मंदिर एक महत्वपूर्ण आकर्षण है, जो 11वीं शताब्दी में फणीनांगवंशी काल में निर्मित हुआ था. इसके अलावा, यहां कई अन्य ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों का भी महत्व है.
कबीरधाम जिले का इतिहास
कबीरधाम जिले का इतिहास 9वीं से 14वीं शताब्दी तक नागवंशी राजाओं की राजधानी के रूप में स्थापित था. इसके बाद यह क्षेत्र हैह्यवंशी राजाओं के नियंत्रण में आ गया. पुरातात्विक अवशेष इन तथ्यों की पुष्टि करते हैं. कवर्धा 14 देशी रियासतों में से एक था। कवर्धा शहर की स्थापना 1751 में कवर्धा रियासत के पहले जमींदार महाबली सिंह ने की थी. इसके बाद यह तहसील विभिन्न जिलों में शामिल होती गई. 1895 में यह मंडला जिले की तहसील बनी, 1903 में इसे बिलासपुर जिले में शामिल किया गया और 1912 में रायपुर जिले में स्थानांतरित कर दिया गया. 1948 में यह दुर्ग जिले का हिस्सा बन गया. 26 जनवरी, 1973 को राजनांदगांव जिले का अस्तित्व हुआ और यह उसका एक हिस्सा बना. 6 जुलाई, 1998 को कवर्धा को एक स्वतंत्र जिला बनाया गया. जनवरी 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ में संत कबीर के आगमन की स्मृति में और कबीर पंथ के गुरु धानी धर्म दास के जन्म उत्सव के अवसर पर जिले का नाम कवर्धा से बदलकर कबीरधाम किया.
कबीरधाम में किस प्रकार की कृषि होती है
कबीरधाम जिला मैकल पर्वत श्रेणी के वृष्टि छाया प्रदेश में स्थित होने के कारण यहां वर्षा कम होती है. हालांकि, यहां पर सिंचाई सुविधाओं के बेहतर विकास के कारण किसान अच्छी पैदावार प्राप्त करने में सक्षम होते हैं. जिले में प्रमुख फसलें गेंहूं, धान, गन्ना, अरहर, सोयाबीन, चना आदि हैं.
अर्थव्यवस्था
कबीरधाम जिला गन्ने का अच्छा उत्पादन करता है, जिससे यहां शक्कर कारखानों के लिए अनुकूल माहौल बना है. राज्य का पहला शक्कर कारखाना 'भोरमदेव सहकारी शक्कर कारखाना' यहीं स्थापित किया गया था. इसके अलावा, यहां लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल शक्कर कारखाना भी स्थित है. प्रदेश का पहला एथेनॉल प्लांट भी यहां स्थापित किया गया है. इसके अतिरिक्त, जिले में बॉक्साइट, लौहअयस्क, चूना पत्थर और सोपस्टोन जैसे खनिज भी पाए जाते हैं, जो यहां की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाते हैं.
कबीरधाम जिला 6 जुलाई, 1998 को अस्तित्व में आया था, जब राजनांदगांव जिले की कवर्धा तहसील और बिलासपुर जिले की पंडरिया तहसील को अलग करके एक नया जिला बनाया गया. 10 मार्च, 2003 को छत्तीसगढ़ सरकार ने कवर्धा जिले का नाम बदलकर कबीरधाम कर दिया.
कबीरधाम जिले का क्षेत्रफल 4,447.5 वर्ग किलोमीटर है. कबीरधाम जिले की सीमाएं उत्तर में मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले, पूर्व में मुंगेली और बेमेतरा जिले, दक्षिण में राजनांदगांव जिले, और पश्चिम में मध्य प्रदेश के बालाघाट और मंडला जिलों से लगती हैं.जिले की 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 8,22,526 है.
कबीरधाम जिले के पर्यटन स्थल
भोरमदेव मंदिर
भोरमदेव मंदिर, कबीरधाम ज़िले के सबसे प्रमुख और ऐतिहासिक स्थल के रूप में जाना जाता है. यह मंदिर कवर्धा से उत्तर पश्चिम में लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चौरा गांव में स्थित है. यह मंदिर फणीनांगवंशी काल के राजा गोपाल देव द्वारा 11वीं शताब्दी में निर्मित कराया गया था. इस मंदिर का वास्तुकला अद्वितीय है और यह छत्तीसगढ़ के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को प्रदर्शित करता है. मंदिर में तीन प्रवेश द्वार हैं, जिनकी आकृति अर्द्ध मंडप जैसी दिखती है. इसके मंडप में 16 स्तंभ और चारों कोनों पर चार अलंकृत भित्ति स्तंभ हैं. गर्भगृह में हाटकेश्वर महादेव की विशाल प्रतिमा जलाधारी पर प्रतिष्ठित है. इस मंदिर की दीवारों पर विभिन्न देवी-देवताओं की चित्ताकर्षक मूर्तियां और अलंकरण किए गए हैं.
छेरकी महल
भोरमदेव मंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित छेरकी महल भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यह महल शिव भगवान की पूजा स्थल के रूप में प्रसिद्ध है और इसका निर्माण 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ था। महल का वास्तुकला ईंटों से निर्मित है और इसमें छेरी बकरी का गंध आज भी महसूस किया जाता है. इस महल का नाम "छेरकी महल" इस कारण पड़ा, क्योंकि यहां बकरी का गंध मौजूद था. महल के गर्भगृह में शिवलिंग जलाधारी पर स्थापित है, जो इसके धार्मिक महत्व को बढ़ाता है.
मड़वा महल
मड़वा महल, जो भोरमदेव मंदिर से लगभग आधे किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, एक अन्य ऐतिहासिक स्थल है। यह शिव मंदिर फणीनागवंशी के 24वें राजा रामचन्द्र देवराज द्वारा 1349 ई. में बनवाया गया था। इस मंदिर का शिलालेख फणीनागवंशी राजवंश की उत्पत्ति और वंशावली को दर्शाता है. यह स्थल प्राचीन मूर्तियों और शिलालेखों के साथ इतिहास के एक महत्वपूर्ण अंश को सहेजे हुए है.
पचराही: प्राचीन मंदिर और मूर्तियां
पचराही कबीरधाम जिले के बोडला विकासखण्ड में स्थित एक प्राचीन स्थल है, जो हाफ नदी के तट पर स्थित है. पचराही में प्राप्त मूर्तियों और शिलालेखों से यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनता है. यहाँ के मूर्तियों में जोगी मगरध्वज का उल्लेख मिलता है, जो यहां की धार्मिक महत्वता को दर्शाता है. इसके अलावा, पचराही में 15 करोड़ वर्ष पुरानी जलीय जीवाश्म मोलास्का प्रजाति के जीवाश्म मिले हैं, जो इस स्थल की पुरातात्विक महत्वपूर्णता को और बढ़ाते हैं.
जैन तीर्थ बकेला
कबीरधाम जिले में विभिन्न धर्मों का समन्वय देखने को मिलता है। यहाँ हिन्दू, जैन, सिख, ईसाई और इस्लाम धर्म के लिए पर्याप्त सम्मान है. बकेला नामक स्थल पर 9वीं-10वीं सदी की काले रंग की ग्रेनाइट से निर्मित जैन तीर्थकार प्रभु पाश्र्वनाथ की प्रतिमा प्राप्त हुई है. यह स्थल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन चुका है और यहां का तीर्थ विकास हो रहा है.
सतखण्डा महल हरमो
हरमो गांव में स्थित सतखण्डा महल भी एक ऐतिहासिक स्थल है. यह महल 7 खण्डों में बना है और इसकी लंबाई 21 मीटर, चौड़ाई 10 मीटर और ऊँचाई 45 फुट है. इस महल को प्रभु वल्लभाचार्य का जन्मस्थल माना जाता है. महल का निर्माण प्राचीन किलों जैसा है और यह क्षेत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल है.
रामचुवा: धार्मिक स्थल और जलकुंड
रामचुवा, कवर्धा से लगभग 8 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है और यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में विकसित हो रहा है. यहां शिव, राम-जानकी, हनुमान और लक्ष्मीनारायण के अष्टमंदिर हैं. इस क्षेत्र में जलकुंड और पाथवे भी बनाए जा रहे हैं, जिससे पर्यटकों के लिए सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं.
रानीदहरा जलप्रपात: प्राकृतिक सौंदर्य
रानीदहरा जलप्रपात कबीरधाम जिले के बोड़ला के पश्चिम दिशा में स्थित है. यह झरना मैकल पहाड़ों से कल-कल बहते पानी के साथ एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है. इस स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को आकर्षित करता है. रानीदहरा जलप्रपात के पास स्थित कांक्रीट सीढ़ियों के निर्माण के लिए 25 लाख रुपये स्वीकृत किए गए हैं, ताकि पर्यटकों के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हो सकें.
चिल्फी घाटी: हिल स्टेशन
चिल्फी घाटी, जिसे मैकल की रानी भी कहा जाता है, एक खूबसूरत हिल स्टेशन है. यह क्षेत्र सर्दी के दिनों में कड़ी ठंड से जूझता है. यहां के खूबसूरत दृश्य, चिरईयां के फूल, पहाड़ों पर ऊंचे पेंड़ और बैगा आदिवासी जीवन पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. चिल्फी घाटी में जलसंवर्धन और जलसंचय के लिए 27 स्टॉप डैम बनाए जा रहे हैं, जिससे यहां की हरियाली बनी रहे और वन्यजीवों को निस्तार की सुविधा मिल सके.
भोरमदेव अभ्यारण्य
भोरमदेव अभ्यारण्य, जो 2001 में स्थापित हुआ था, छत्तीसगढ़ के प्रमुख अभयारण्यों में से एक है. यहां तेंदुआ, चीतल, मोर, नीलगाय, सांभर जैसी वन्यजीव प्रजातियां पाई जाती हैं. यह अभ्यारण्य छत्तीसगढ़ के वन्यजीवों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है.
लोहारा बावली
लोहारा बावली, कवर्धा से लगभग 20 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है. यह बावली बैजनाथ सिंह द्वारा 120 वर्ष पहले बनवाया गया था और इसका उपयोग गर्मी के मौसम में शासकों के रहने के लिए किया जाता था। यहां आने से पर्यटकों को शांति और ठंडक का अनुभव मिलता है.
कान्हा राष्ट्रीय पार्क
कान्हा राष्ट्रीय पार्क, जो कवर्धा से लगभग 300 किलोमीटर दूर स्थित है, वन्यजीवों और हरियाली के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ शेर, चीता, हिरण, तेंदुआ और कई खूबसूरत पक्षी पाए जाते हैं. यह पार्क पर्यटकों के लिए वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक प्रमुख स्थल है.
सरोदादादर: विश्व का बिंदू
सरोदादादर, जिसे "एशिया का बिंदू" भी कहा जाता है, कबीरधाम जिले के चिंल्फी ब्लाक में स्थित है. यह स्थल अब एक प्रमुख पर्यटन आकर्षण बन चुका है.जिला मुख्यालय से 48 और चिल्फी से 3 किमी की दूरी पर है.27 सितंबर 2023 को विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर सरोधा दादर को देश भर के 795 गांवों में से सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव के रूप में चुना गया. नई दिल्ली में आयोजित समारोह में इस पुरस्कार को सरोधा दादर गांव के मंगल सिंह धुर्वे ने प्राप्त किया. छत्तीसगढ़ सरकार ने कबीरधाम जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें चिल्फी घाटी के गांवों का विकास भी शामिल है. इसके अलावा, ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उस समय के वर्तमान कलेक्टर जनमेजय महोबे और जिला पंचायत सीईओ संदीप अग्रवाल ने राज्य के विभिन्न जिलों से इंफ्लुएंसर को बुलाकर सरोधा दादर के विकास की प्रक्रिया का अध्ययन कराया और उन्हें भ्रमण कराया था.
FAQS
प्रश्न 1. कबीरधाम जिले में कितनी तहसीलें हैं?
उत्तर: कबीरधाम में चार तहसीलें कवर्धा, पंडरिया, बोडला और सहसपुर-लोहारा.
प्रश्न 2. कबीरधाम जिला कब बना था?
उत्तर: 6 जुलाई, 1998 को कबीरधाम ज़िला बना था.
प्रश्न 3. कबीरधाम जिले के कलेक्टर कौन है?
उत्तर: कबीरधाम जिले के वर्तमान कलेक्टर गोपाल वर्मा
प्रश्न 4. कबीरधाम का पिन नंबर क्या है?
उत्तर: कबीरधाम का पिन नंबर 491995 है