Bilaspur Politics: बिलासपुर की उपेक्षा क्यों? MP के समय भी कैबिनेट में रहा दबदबा, दो-दो, तीन-तीन मंत्री रहे, 6 साल से नेतृत्व की शून्यता लोगों को अखर रहा...
Bilaspur Politics: बिलासपुर बोले तो छत्तीसगढ़ का दूसरा बड़ा शहर...सूबे की न्यायधानी। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी का गृह जिला रहा बिलासपुर मध्यप्रदेश के दौर में भी सबसे अधिक राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा। दिग्विजय सिंह सरकार में बिलासपुर से एक साथ बीआर यादव, राजेंद्र प्रसाद शुक्ल और चित्रकांत जायसवाल मंत्री रहे। उस बिलासपुर का ग्रह-दशा ऐसा बिगड़ा कि पिछली सरकार से लेकर इस सरकार तक कैबिनेट में बिलासपुर को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला। बिलासपुर के लोगों का मानना है कि अमर अग्रवाल को पुराने मंत्री की दृष्टि से काटना था, तो उनके अलावे भी तो धरमलाल कौशिक, धर्मजीत सिंह और सुशांत शुक्ला बीजेपी से विधायक हैं। इनमें से किसी को मंत्री बनाया जा सकता था। जाहिर तौर पर बीजेपी नेतृत्व द्वारा बिलासपुर के साथ नासइंसाफी है।
Bilaspur Politics: बिलासपुर। अविभाजित मध्य प्रदेश के दौर की राजनीति हो या फिर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के एक दशक पहले की राजनीति। राज्य मंत्रिमंडल में जिले की प्रभावी मौजूदगी रहते आई है। नेतृत्व क्षमता के मामले में जिले का जवाब नहीं है। श्रीधर मिश्रा, चित्रकांत जायसवाल, बीआर यादव,राजेंद्र प्रसाद शुक्ला,अशोक राव जैसे कद्दावर विधायकों ने अपने काम के दम पर जनता और सरकार के बीच ऐसी छाप छोड़ी,जिसकी आज भी चर्चा होती है। सियासी पंडित इस बात को लेकर हैरान है कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के एक दशक तक नेतृत्व के मामले में सक्षम माने जाने वाले जिले के साथ ऐसा क्या हो गया कि साढ़े छह साल में ही राजनीति का यह सीन पूरी तरह बदल गया है। या यूं कहें कि बदलकर रख दिया है।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के दौर की राजनीति पर नजर डालें तो छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की राजनीतिक पृष्ठभूमि बिलासपुर जिले से ही शुरू हुई। सीएम के दौर से लेकर जब तक जोगी राजनीति में सक्रिय रहे और जिंदा रहे तब तक राष्ट्रीय से लेकर प्रादेशिक राजनीति में उनकी पहचान बिलासपुर जिले के रूप में ही होते रही है। बिलासपुर जिले की कांग्रेस राजनीति में उनकी दखदलंदाजी भी उसी अंदाज में रही है। सत्ता हो या फिर संगठन बिलासपुर जिले को उनके कोटे में गिना जाता था। जोगी के दौर में छत्तीसगढ़ की राजनीति में बिलासपुर की अलग धमक और अलग पहचान बन गई थी। सियासत के जानकार बताते हैं कि जिले का सियासी रसूख वर्ष 2008 में जब पहली बार भाजपा की सरकार बनी तब से लेकर वर्ष 2013 तक बराबर कामय रही। मुख्यमंत्री डा रमन सिंह के दौर में बिलासपुर का सियासी रसूख कायम रहा। वर्ष 2018 का विधानसभा चुनाव बिलासपुर जिले के मतदाताओं से लेकर विधायकों के लिए कुछ नहीं रहा। छत्तीसगढ़ की राजनीति में जिले की दखलंदाजी और राज्य सरकार में सहभागिता को पता नहीं क्या हुआ या किसकी नजर लगी, पूरी तरह शून्य हो गया। तखतपुर की विधायक रश्मि सिंह को जरुर संसदीय सचिव का दर्जा मिला, पर वह रूतबा बिलासपुर जिले को नहीं मिला जिसकी दरकार थी।
अविभाजित मध्य प्रदेश का दौर हो या फिर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के शुरुआती डेढ़ दशक पुराना सियासी दौर। अविभाजित मध्य प्रदेश के दौर में बीआर यादव और राजेंद्र प्रसाद शुक्ला डेढ़ दशक तक राज्य मंत्रिमंडल में रहे। दोनों ही कद्दावर मंत्री का निवास बिलासपुर ही रहा। राजनीतक प्रेक्षक बताते हैं कि श्रीधर मिश्रा हों या फिर चित्रकांत जायसवाल व अशोक राव। अलग-अलग विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने के बाद भी उनका निवास बिलासपुर शहर ही रहा है। लिहाजा बिलासपुर जिले की राजनीति में इनका अच्छा खास प्रभाव रहा है।
अमर, धरम और पुन्नूलाल मोहले के इर्द-गिर्द घुमती रही राजनीति
भाजपा के दौर में जिले की राजनीति अमर अग्रवाल, धरमलाल कौशिक और पुन्नू मोहले के इर्द-गिर्द घुमते रही है। लोगों के पास विकल्प था। तीन दिग्गजों में से जो सहजता के साथ उपलब्ध हों उनके पास कामकाज के सिलसिले में चले जाते थे। अब स्थिति एकदम उलट हो गई है। डिप्टी सीएम अरुण साव ने शपथ ग्रहण के बाद बिलासपुर में अपना निवास तो बनाया, राजनीतिक सक्रियता भी बढ़ाई, पर उनकी स्वीकार्यता कार्यकर्ताओं के बीच नहीं बन पाई। वैसे भी लोरमी विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनका गृह जिला मुंगेली है।
धरमलाल, धर्मजीत और सुशांत
बीजेपी नेतृत्व ने अगर पुराने मंत्रियों को अब मंत्री न बनाने का फैसला किया है तो बिलासपुर जिले में अमर अग्रवाल के अलावे भी तीन विधायक और हैं। धरमलाल कौशिक, धर्मजीत सिंह और सुशांत शुक्ला। इनमें से किसी एक को मौका देकर बिलासपुर को कैबिनेट में प्रतिनिधित्व दिया जा सकता था। बात बीजेपी कार्यकर्ताओं की नहीं है, आम लोगों का भी है। कोई काम होने पर सवाल उठता है, आम आदमी अब किसके पास जाएगा?