Bilaspur High Court: यौन शोषण से बच्चा हुआ पैदा: महिला एडवोकेट ने सीनियर को बताया बच्चे का पिता, DNA टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल देने के बाद हाई कोर्ट में लगाई याचिका
Bilaspur High Court: महिला एडवोकेट ने अपने सीनियर अधिवक्ता पर यौन शोषण करने और इससे बच्चा पैदा होने का सनसनीखेज आरोप लगाते हुए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में अपने और बच्चे का अधिकार मांगते हुए यौन शोषण के आरोपी सीनियर अधिवक्ता का डीएनए टेस्ट की मांग की थी। मामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट ने डीएनए टेस्ट की अनुमति दी थी। परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सीनियर वकील ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है।
CG Yuktiyuktakaran
Bilaspur High Court: बिलासपुर। महिला एडवोकेट ने अपने सीनियर अधिवक्ता पर यौन शोषण करने और इससे बच्चा पैदा होने का गंभीर आरोप लगाया है। बच्चा और अपना अधिकार मांगते हुए सीनियर अधिवक्ता का डीएनए टेस्ट की मांग करते हुए परिवार न्यायालय में याचिका दायर की थी। परिवार न्यायालय ने महिला एडवोकेट की मांग को जायज ठहराते हुए सीनियर अधिवक्ता के डीएनए टेस्ट का आदेश दिया था। फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सीनियर वकील ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सीनियर अधिवक्ता की याचिका खारिज करते हुए पूर्व में दी गई अंतरिम राहत को भी रद्द कर दिया गया है।
मामला कोरबा जिले से जुड़ा हुआ है। यहां 37 वर्षीय महिला अधिवक्ता, सीनियर अधिवक्ता के जूनियर के तौर पर काम करती थी। महिला अधिवक्ता ने आरोप लगाया है कि जूनियर के तौर पर काम करने के दौरान सीनियर अधिवक्ता ने उनका यौन शोषण किया था। शारीरिक संबंध बनाने के चलते बच्चा पैदा हो गया। बच्चा सीनियर अधिवक्ता का है। सीनियर अधिवक्ता ने उसे और उसके बच्चे को अपने से इनकार कर दिया। इसके बाद महिला अधिवक्ता ने फैमिली कोर्ट में आवेदन दायर कर डीएनए टेस्ट के जरिए पितृत्व की जांच की मांग की थी। कोरबा फैमिली कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद 8 अक्टूबर 2024 को आवेदन स्वीकार करते हुए डीएनए टेस्ट की अनुमति दे दी थी।
0 हाई कोर्ट ने कहा- महिला एडवोकेट द्वारा मांगी गई राहत, फैमिली कोर्ट के दायरे में आता है
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में माना की महिला एडवोकेट द्वारा मांगी गई राहत फैमिली कोर्ट के दायरे में ही आता है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही फैमिली कोर्ट का अधिकार क्षेत्र स्पष्ट कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इवान रथिनम मामले में स्पष्ट किया है कि डीएनए टेस्ट का आदेश देने से पहले साक्ष्यों की अपर्याप्तता और पक्षों का हित संतुलन जरूरी है। चूंकि साक्ष्य अपर्याप्त पाए गए इसलिए डीएनए टेस्ट की अनुमति दी गई।
0 DNA जांच के लिए ब्लड सैंपल की बात हाई कोर्ट से छिपाई
हाई कोर्ट ने यह भी पाया की याचिकाकर्ता अधिवक्ता 4 जुलाई 2024 को ब्लड सैंपल डीएनए टेस्ट के लिए दे चुके हैं। इसके लिए उन्होंने खुद ही सहमति दी थी। यह एक महत्वपूर्व तथ्य है जिसे याचिकाकर्ता ने छुपाया है। हाई कोर्ट ने इस आधार पर याचिका खारिज करते हुए कहा है कि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे पहले ही तय किया जा चुके हैं। इस याचिका में नया कोई आधार पेश नहीं किया गया है। याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने पूर्व में दी गई अंतरिम राहत को भी रद्द कर दिया है।