Bilaspur High Court: बड़ी खबर:राज्य शासन की अधिसूचना हाई कोर्ट ने किया रद्द: कॉलेज में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर भर्ती में संविदा प्राध्यापकों को अतिरिक्त छूट का है मामला
Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में राज्य सरकार की उस अधिसूचना को निरस्त कर दिया है,जिसमें मेडिकल व डेंटल कालेज में प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर की भर्ती में संविदा प्राध्यापकों को प्राथमिकता दी जा रही है। राज्य सरकार की अधिसूचना को नियमित प्रोफेसरों ने हाई काेर्ट में याचिका दायर की चुनौती दी थी।
Bilaspur High Court: बिलासपुर।मेडिकल, डेंटल व नर्सिंग कालेजों में प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर की भर्ती में संविदा प्राध्यापकों को प्राथमिकता देने वाली राज्य सरकार की अधिसूचना को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। राज्य शासन ने एक अधिसूचना जारी कर संविदा प्राध्यापकों को आयु सीमा में छूट के अलावा बोनस अंक देने के संबंध में अधिसूचना जारी किया था। नियमित प्राध्यापकों ने इस अधिसूचना को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
प्रदेश में संचालित मेडिकल कॉलेज, डेंटल कॉलेजों और नर्सिंग कॉलेजों में एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के पदों पर प्रमोशन किया जाना है। इसके लिए राज्य शासन ने मेडिकल एजुकेशन सर्विस रिक्रूटमेंट रूल्स 2013, एक के तहत अधिसूचना जारी किया है। इसमें कहा गया है कि, इन रिक्त पदों पर कॉलेजों में कार्यरत संविदा प्राध्यापकों को सीधी भर्ती के अंतर्गत आयु सीमा में छूट दी जाएगी जारी अधिसूचना में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि चयन में बोनस अंक भी दिया जाएगा। याचिका के अनुसार अधिसूचना में दी गई शर्तों पर गौर करें तो संविदा प्राध्यापकों को सीधी भर्ती में पहली प्राथमिकता दी जाएगी।
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के माध्यम से यह सभी पद सीधी भर्ती से पूरे किये जा रहे हैं, इसी वजह से इन कॉलेजों में पदस्थ नियमित प्राध्यापकों ने इसका विरोध किया। इसके बाद कोई विभागीय पहल नहीं होने पर डॉ. नरेंद्र प्रसाद, ओंकार, डा शिक्षा, डा आशीष सिंह डा समीर, डॉ. केशव, डॉ. स्मिता डा अर्नब, डॉ. रजत, डॉ ममता शशि ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से अलग-अलग याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से हिमांशु पाण्डेय सीनियर एडवोकेट मनोज परांजपे घनश्याम कश्यप, विकास दुबे ने पैरवी की।
हाई कोर्ट ने निरस्त की अधिसूचना
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविन्द्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता प्राध्यापकों ने अपनी याचिका में कहा है, पद अभी शासन सीधी भर्ती के जरिए पूरा करने जा रहा है, उसमें पहले नियमित प्राध्यापकों को पदोन्नति के माध्यम से अवसर देने का प्रावधान है। मौजूदाअधिसूचना में राज्य शासन नियमित याचिकाकर्ताओं को नजरअंदाज कर सीधी भर्ती व चयन कर रहा है, जो वैधानिक नहीं कहा जा सकता है। डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद इन तर्कों से सहमति जताते हुए राज्य शासन की अधिसूचना को निरस्त कर दिया।
हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
हाई कोर्ट ने कहा, छत्तीसगढ़ चिकित्सा शिक्षा (राजपत्रित) सेवा एवं संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की सेवा शर्ते, जिसे छत्तीसगढ़ चिकित्सा शिक्षा (राजपत्रित) सेवा भर्ती नियम, 2013 के नाम से जाना जाता है, नियम 22 के अंतर्गत छूट शक्ति सेवा शतों तक ही सीमित है। यह किसी मूल भर्ती प्रावधान को रद्द या संशोधित नहीं कर सकती। कोई कार्यकारी अधिसूचना 100 प्रतिशत पदोन्नति की आवश्यकता वाले किसी वैधानिक आदेश को रद्द नहीं कर सकती।
यह है राज्य सरकार का विवादित अधिसूचना, जिसे डिवीजन बेंच ने किया रद्द
चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन समस्त शासकीय चिकित्सा, शासकीय दंत शासकीय नर्सिंग एवं शासकीय फिजियोथेरेपी महाविद्यालय में सह प्राध्यापक एवं प्राध्यापक के रिक्त पदोन्नति के पदों को छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के माध्यम से सीधी भरती से भरने हेतु एक बार की छूट प्रदान को जाती है। जिन शिक्षकों ने प्रदेश के शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय, शासकीय दंत महाविद्यालय, शासकीय नर्सिंग महाविद्यालय एवं शासकीय फिजियोथेरेपी महाविद्यालयों में संविदा पर शैक्षणिक कार्य किया है, तो उसे कार्य के प्रत्येक पूर्ण वर्ष के लिये 1 वर्ष एवं अधिकतम 10 वर्ष की छूट आयु सीमा प्रदान की जाती है। शैक्षणिक कार्य करने के लिए प्रत्येक पूर्ण वर्ष के अनुभव के लिए 2 बोनस अंक दिये जायेंगे।