Bilaspur High Court News: मिशन हॉस्टिपल कैम्पस विवाद: क्रिश्चियन बोर्ड को हाई कोर्ट का झटका, याचिका खारिज, पढ़ें पूरा मामला..
Bilaspur High Court News: मिशन अस्पताल परिसर की 12 एकड़ जमीन पर दावा ठोकते हुए क्रिश्चियन बोर्ड ने सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने बोर्ड की याचिका को खारिज करते हुए सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराया है।
BILASPUR HIGH COURT
Bilaspur High Court News: बिलासपुर। मिशन अस्पताल परिसर की 12 एकड़ जमीन पर दावा ठोकते हुए क्रिश्चियन बोर्ड ने सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने बोर्ड की याचिका को खारिज करते हुए सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराया है। बता दें कि बिलासपुर जिले के तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने लीज की अवधि खत्म होने के बाद मिशन अस्पताल की बेशकीमती जमीन को कब्जा पर लेने की कार्रवाई शुरू की थी। बिलासपुर संभागायुक्त और हाई कोर्ट के सिंगल बेंच में मामला चला। जिला प्रशासन की पुख्ता तैयारियों के बीच जिला प्रशासन की जीत हुई थी। इसके बाद जिला प्रशासन ने जर्जर भवन को तोड़ने की कार्रवाई शुरू की थी। इसी बीच क्रिश्चियन बोर्ड ने जमीन पर दावा ठोकते हुए डिवीजन बेंच में याचिका दायर की थी। आज डिवीजन बेंच से भी बोर्ड को झटका लगा है।
बता दें कि सीडब्ल्यूबीएम की याचिका को सिंगल बेंच ने पहले ही खारिज कर दिया है। डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को डिवीजन बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए बोर्ड की याचिका को खारिज करते हुए सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराया है। मिशन अस्पताल के स्वामित्व को लेकर सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए क्रिश्चियन वूमन बोर्ड ऑफ मिशन्स (सीडब्ल्यूबीएम) की ओर से याचिका दायर की गई थी। याचिका में बताया था कि प्रशासन ने 12 एकड़ जमीन का अधिग्रहण गलत तरीके से किया है। तोड़फोड़ भी नियमों के खिलाफ की गई है। शासन की ओर से पूरी कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहा गया कि याचिकाकर्ताओं को याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है। शासन की ओर से कहा गया कि प्रस्तुत की गई पॉवर ऑफ अटॉर्नी किसी अन्य संस्था से संबंधित है।
2014 में खत्म हो गई थी लीज की अवधि
मिशन अस्पताल की स्थापना साल 1885 में हुई। मिशन अस्पताल को लीज पर दिया गया। था। लीज साल 2014 में खत्म हो गई है। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने लीज का नवीनीकरण नहीं कराया है। नवीनीकरण के लिए पेश किए गए आवेदन को नजूल न्यायालय ने वर्ष 2024 में खारिज कर दिया। नजूल न्यायालय के खिलाफ मिशन प्रबंधन ने कमिश्नर कोर्ट में अपील की थी। मामले की सुनवाई के बाद कमिश्नर ने याचिका खारिज कर दिया था। कमिश्नर के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
सिंगल बेंच में सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने दो दिनों की लगातार बहस में कोर्ट को बताया कि नितिन लॉरेंस हर याचिका में अपना पद बदल रहे थे और विभिन्न संस्थाओं की पॉवर ऑफ अटॉर्नी प्रस्तुत कर रहे थे। यह गलत और गुमराह करने वाला है। हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने लारेंस की याचिका को खारिज कर दिया। इसके खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील की गई थी।
कमिश्नर कोर्ट ने अधिग्रहण को सही ठहराया
मिशन अस्पताल परिसर की जमीन क्रिश्चियन वुमन बोर्ड को आबंटित की गई थी। इस जमीन पर मिशन अस्पताल खोला गया। बाद में इस अस्पताल परिसर की जमीन का व्यावसायिक उपयोग करते हुए उसे किराए पर दे दिया गया। जिला प्रशासन ने लीज निरस्त होने के बाद मिशन अस्पताल की जमीन पर कब्जा करने की तैयारी शुरू कर दी थी। कलेक्टर के इस आदेश के खिलाफ अस्पताल प्रबंधन ने कमिश्नर के समक्ष अपील की, जिस पर तत्कालीन कमिश्नर नीलम नामदेव एक्का ने स्टे दे दिया था. जिसके बाद राज्य शासन ने उन्हें हटा दिया था। कमिश्नर कोर्ट ने बाद में लीज समाप्त होने पर भूमि के अधिग्रहण को सही ठहराया था।
सिविल कोर्ट में अब भी लंबित है एक मामला
हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद जिला प्रशासन ने मिशन अस्पताल परिसर पर कब्जे की तरफ एक कदम और बढ़ाया है। अब शासन के सामने केवल बिलासपुर न्यायालय में लंबित मामला ही शेष बचा है, जो 1891 से जुड़े दस्तावेजों के आधार पर डिसाईपल संस्थान द्वारा दायर की गई है। यह संस्थान क्रिश्चियन वूमन बोर्ड ऑफ मिशन्स (सीडब्ल्यूबीएम) के वैध मालिकाना हक का दावा करता है। इस याचिका की सुनवाई 13 नवंबर को निर्धारित है। ध्यान रहे कि मिशन अस्पताल की 12 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक का दावा करते हुए याचिका सिविल कोर्ट में दायर की गई है।
1925 तक यह जमीन चर्च के नाम पर दर्ज
डिसाइपल्स चर्च के प्रतिनिधियों द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि 1891 के मिसल अधिकार के रिकार्ड बताते हैं कि 1925 तक यह जमीन चर्च के नाम पर थी। इसके बाद यह जमीन शासन के नाम पर कैसे आई, इस पर सवाल है। याचिका में कलेक्टर के आदेश और प्रशासन की अधिग्रहण की कार्रवाई को गलत बताते हुए निरस्त करने की मांग की गई है। सिविल लाइन निवासी सुबोध मार्टिन, अतुल अनुराग की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया है कि डिसाईपल क्रिश्चियन लोगों के लाभ के लिए करीब 9 लाख वर्गफीट जमीन 19 नवंबर 1981 को अमेरिका निवासी इराबेला द्वारा वजीर खान से खरीदी गई थी। यह जमीन 1920 में नजूल मिशन में भी क्रिश्चियन मिशन ऑफ डिसाईपल ऑफ खाईस्ट संस्था, बिलासपुर के नाम पर स्थायी भूमि स्वामी के हैसियत से दर्ज है। इसके बाद लेकिन यह जमीन शासन के खाते में दर्ज हो गई।
कलेक्टर अवनीश शरण ने शुरू की कब्जे की कार्रवाई
मिशन अस्पताल परिसर की बेशकीमती जमीन को सेवा के नाम पर दी गई थी। सेवा के नाम पर ली गई जमीन का व्यावसायिक उपयोग होने लगा था। इसके अलावा लीज की अवधि खत्म होने के बाद नवीनीकरण नहीं कराया गया था। इन सब कारणों को देखते हुए बिलासपुर जिले के तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने बेशकीमती जमीन पर कब्जे की कार्रवाई शुरू की। अदालती लडृाई जीतने के बाद कलेक्टर ने कब्जा की प्रक्रिया प्रारंभ कराई। जर्जर भवन को तोड़ने का काम शुरू हुआ। कलेक्टर के निर्देश पर निगम कमिश्नर अमित कुमार ने निगम का पूरा अमला झोंक दिया था। नगर निगम ने कैम्पस के भीतर रह रहे लोगों को कब्जा छोड़ने नोटिस भी जारी कर दिया है। डिवीजन बेंच के फैसले के बाद अब मिशन अस्पताल कैम्पस पर सरकार का कब्जा होगा।