Bilaspur High Court News: जिगर के टुकड़े के देखभाल से मां का इंकार: हाई कोर्ट ने कहा, जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी... पढ़िए हाई कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला
Bilaspur High Court News: सात साल का बेटा, शारीरिक रूप से अक्षम। तकरीबन 90 फीसदी दिव्यांग। इसके बाद भी मां का दिल पसीज नहीं रही है। पति ने जब फैमिली कोर्ट में सरकारी नौकरी कर रही पत्नी पर दिव्यांग बेटे की जिम्मेदारी उठाने मामला दायर किया और कोर्ट ने मां को भरण पोषण की जिम्मेदारी संभालने का आदेश दिया। मां ने इंकार कर दिया और फैमिली कोर्ट के फैसले को हाई काेर्ट में चुनाैती दे डाली। पढ़िए हाई कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया है।
Bilaspur High Court News:बिलासपुर। ससुराल आने के बाद पति ने पत्नी की पढ़ाई पूरी कराई। सरकारी नौकरी में जाने उनका उत्साह बढ़ाया। इस बीच उनका एक बेटा भी हुआ। बदकिस्मती से वह 90 फीसदी दिव्यांग है। घर की जिम्मेदारी निभाते और पति के सहयोग के चलते उसे सरकारी नौकरी मिल गई। ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकार बन गई। इस बीच पति पत्नी के बीच किसी बात को लेकर तकरार हुआ और ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी पत्नी अपने मायके चली गई। फिर लौटकर नहीं आई। दिव्यांग बेटे की चिंता भी नहीं की। मामला हाई कोर्ट पहुंचा। मामले की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा के बेंच ने साफ कहा, बच्चे की भविष्य संवारने और भरण पोषण की जिम्मेदारी मां पिता दोनों की है। इस जिम्मेदारी से दोनों बच नहीं सकते।
मामले की सुनवाई के बाद हाई काेर्ट ने दिव्यांग बेटे के भरण पोषण के लिए हर महीने पांच हजार रुपये देने का आदेश याचिकाकर्ता मां को दिया है। बता दें कि पति की याचिका पर फैमिली कोर्ट ने सरकारी नौकरी कर रही पत्नी को बच्चे के भरण पोषण की जिम्मेदारी संभालने और हर महीने पांच हजार रुपये देने का निर्देश दिया था। मां ने सहजता के साथ स्वीकार करने के बजाय जिम्मेदारी से बचते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट ने चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश को यथावत रखते हुए मां की अपील को खारिज कर दिया है। बेंच ने कहा, बच्चे के प्रति माता-पिता की समान जिम्मेदारी होती है।
बिलासपुर निवासी व्यक्ति ने बच्चे के भरण पोषण के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें बताया कि उनकी शादी 9 फरवरी 2009 को हुई थी। पत्नी ने शादी के बाद एमएससी पूरी की और ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर नियुक्त हुईं। उनका एक 7 साल का बेटा है, जो 90 फीसदी दिव्यांग है। 3 नवंबर 2017 को बच्चे को छोड़कर पत्नी अपने मायके गई और उसके बाद ससुराल वापस नहीं लौटी। पत्नी सरकारी नौकरी में है, उसकी सैलरी करीब 30 हजार रुपए है। पत्नी अपने बेटे की जिम्मेदारी से भाग रही है, जबकि उनका बेटा दिव्यांग है और उसे विशेष देखभाल की जरूरत है। याचिका मंजूर करते हुए फैमिली कोर्ट ने ग्रामीण कृषि विकास विस्तार अधिकारी के पद पर कार्यरत महिला को बेटे के भरण-पोषण के लिए हर महीने 5 हजार रुपए देने का आदेश दिया था।
फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ महिला ने हाई कोर्ट में अपील की। तर्क दिया कि पति अक्षता इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर हैं। आर्थिक रूप से सक्षम हैं। उनके पास कृषि भूमि और कार भी है। वह खुद अपने बेटे का भरण पोषण कर सकते हैं। यह भी कहा कि पति ने अपनी आय के बारे में सही जानकारी नहीं दी है और उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति छिपाई है।
हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और सभी दस्तावेजों की जांच करने के बाद फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। हाई कोर्ट ने पाया कि बच्चा 90% दिव्यांग है, जिसके पास आय का कोई साधन नहीं है। मां की सैलरी लगभग 29,964 रुपए है और उसने खुद कहा है कि कभी बेटे की जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा। बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी माता-पिता दोनों की होती है।