Bilaspur High Court: हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: आपराधिक प्रकरण और विभागीय जांच,साथ-साथ नहीं चल सकता
Bilaspur High Court: ASI की याचिका पर जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल के सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि विभागीय जांच और आपराधिक प्रकरण एक साथ चलन योग्य नहीं है। कोर्ट ने एएसआई के खिलाफ एसपी रायपुर द्वारा जारी विभागीय जांच आदेश पर रोक लगा दी है। याचिकाकर्ता एएसआई एसबी सिंह ने अधिवक्ता अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय एवं स्वाती कुमारी के माध्यम से हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी।
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Bilaspur High Court: बिलासपुर। एएसआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ रायपुर एसपी द्वारा जारी विभागीय जांच आदेश पर रोक लगा दी है। जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल के सिंगल बेंच ने अपने आदेश में लिखा है कि विभागीय जांच और आपराधिक प्रकरण एकसाथ चलन योग्य नहीं है। दोनों साथ-साथ नहीं चल सकता।
एसबी सिंह जिला-रायपुर में सहायक उपनिरीक्षक ASI के पद पर पदस्थ है। सेवाकाल के दौरान 18 मार्च 2025 को उसके खिलाफ पुलिस थाना कोतवाली, रायपुर में धारा-74 BNS Act के तहत् अपराध पंजीबद्ध कर न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया गया था। चालान पेश होने और कोर्ट में मामला लंबित रहने के दौरान ही 29 मई 2025 को एसपी रायपुर ने आपराधिक प्रकरण में लगाए गए समान आरोपों पर एएसआई के विरुद्ध विभागीय जांच का आदेश जारी कर दिया। एसपी के निर्देश पर विभागीय जांच की कार्रवाई भी प्रारंभ कर दी गई। एसपी के आदेश और जारी विभागीय जांच को चुनौती देते हुए अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय एवं स्वाती कुमारी के माध्यम से हाई कोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की।
मामले की सुनवाई जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता एएसआई की तरफ से पैरवी करते हुए अधिवक्ताअभिषेक पाण्डेय एवं स्वाती कुमारी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया एवं अन्य विरूद्ध नीलम नाग एवं अन्य इसके साथ ही अविनाश सदाशिव भोसले विरूद्ध युनियन ऑफ इण्डिया के मामले में महत्वपूर्ण फैसला दिया है। अधिवक्ता पांडेय ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कापी पेश करते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि यदि किसी शासकीय कर्मचारी के विरूद्ध आपराधिक मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसी तरह के प्रकरण में उसे आरोप पत्र जारी कर विभागीय जांच की जा रही है तो यह साथ-साथ चलन योग्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि दोनों मामलों में अभियाेजन साक्षी समान है तो ऐसी स्थिति में प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के तहत सबसे पहले आपराधिक प्रकरण में अभियोजन साक्षियों का परीक्षण किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो संबंधित न्यायालय में चल रही संपूर्ण कानूनी कार्यवाही दूषित हो जाती है।
0 दोनों मामलों में गवाह हैं समान
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक पांडेय ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता का मामला भी इस प्रकृति का है। आपराधिक प्रकरण और विभागीय कार्रवाई में अधिकांश गवाह समान है। अधिवक्ता के तर्कों को सुनने के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता एएसआई के खिलाफ चल रहे विभागीय जांच की कार्रवाई पर रोक लगा दी है।