Bilaspur High Court: खून का रिश्ता कटघरे में: पिता ने अपने ही बच्चे की DNA टेस्ट की मांग कर दी, पढ़िए हाई कोर्ट ने फिर क्या कहा

Bilaspur High Court: पति पत्नी के बीच आपसी विवाद का एक ऐसा दृश्य सामने आया है जिसे पढ़कर और सुनकर अचरज के सिवाय कुछ नहीं होगा। दोनों के बीच विवाद ने मासूम को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

Update: 2024-09-03 04:11 GMT

Bilaspur High Court: बिलासपुर। पति पत्नी के बीच आपसी विवाद का एक ऐसा दृश्य सामने आया है जिसे पढ़कर और सुनकर अचरज के सिवाय कुछ नहीं होगा। दोनों के बीच विवाद ने मासूम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अभी तो ठीक से दुनिया भी नहीं देखी और पिता ने ही खून के रिश्ते पर सवाल उठा दिया है। दरअसल पति पत्नी के बीच विवाद के बीच पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने खून पर ही सवाल उठा दिया है। बच्चे के डीएनए टेस्ट की मांग कर दी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने जरुरी कमेंट्स के साथ याचिका को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में फैमिली कोर्ट के निर्णय को सही ठहराने के साथ ही सराहना भी की है।

मामला बालोद जिले का है। युवक युवती की शादी हुई और एक बच्चा भी हुआ। बच्चे की उम्र चार महीने की है। दोनों की शादी को हुए दो साल ही हुए हैं। इस बीच दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद शुरू हुआ। विवाद ने मनमुटाव का रूप ले लिया। घर की चहारदीवारी के बीच का विवाद कोर्ट पहुंच गया। आपसी संबंधों के बीच आशंका का बीज खुद पति ने बोया। फैमिली कोर्ट में मामला दायर करते हुए चार महीने के मासूम के रिश्ते पर सवाल उठाते हुए डीएनए टेस्ट की मांग कर डाली। मां ओर पिता के गोद में खेलने के उम्र में मासूम को घर के आंगन से निकालकर कोर्ट के दरवाजे पर ला खड़ा किया। माामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर दिया। फैमिली कोर्ट ने पिता को यह हिदायत भी दी कि बच्चे का लालन पालन एक पिता की तरह करें। मासूम जिंदगी के साथ कोई दुराभाव ना रखें।

फैमिली कोर्ट के समझाइश का नहीं हुआ असर,पहुंच गया हाई कोर्ट

फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता पिता को घर परिवार के बीच सामंजस्य बनाए रखने और चार महीने के बच्चे का लालन पालन अच्छे ढंग से करने की समझाइश दी थी। फैमिली कोर्ट की समझाइश का पिता पर कोई असर नहीं पड़ा। अपने अधिवक्ता के माध्यम से फैेमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी मांगों को दोहराते हुए चार महीने के मासूम का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की।

मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक तिवारी के सिंगल बेंच में हुई। प्रकरण की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया ठोस प्रकरण नहीं होने पर हिन्दू रीति रिवाज से हुए विवाह के दौरान जन्म लिए बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए और ना ही दिया जा सकता है। DNA टेस्ट का आदेश तभी दिया जाना चाहिए तब साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत पर्याप्त प्रथम दृष्टया सबूत हों। दुर्ग में रहने वाले युवक की शादी बालोद में रहने वाली युवती के साथ जनवरी 2024 में दल्ली राजहरा में हुई थी। उनका चार माह का बेटा है। 

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