अलविदा विनोद कुमार शुक्ल : राजकीय सम्मान के साथ आज होगा छत्तीसगढ़ के अनमोल रत्न का अंतिम संस्कार
साहित्य जगत में शोक की लहर भारतीय साहित्य के शिखर पुरुष और छत्तीसगढ़ की माटी के अनमोल रत्न विनोद कुमार शुक्ल अब हमारे बीच नहीं रहे।
अलविदा विनोद कुमार शुक्ल : राजकीय सम्मान के साथ आज होगा छत्तीसगढ़ के अनमोल रत्न का अंतिम संस्कार
Vinod Kumar Shukla : रायपुर : साहित्य जगत में शोक की लहर भारतीय साहित्य के शिखर पुरुष और छत्तीसगढ़ की माटी के अनमोल रत्न विनोद कुमार शुक्ल अब हमारे बीच नहीं रहे। मंगलवार की शाम 4:58 बजे रायपुर के एक निजी अस्पताल में 87 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर फैलते ही पूरे देश के साहित्य प्रेमियों, लेखकों और प्रशंसकों में शोक की लहर दौड़ गई है। राज्य सरकार ने उनके अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए घोषणा की है कि आज यानी बुधवार को सुबह 11:00 बजे रायपुर के मारवाड़ी श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। पुलिस की टुकड़ी उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर देगी, जो एक लेखक के प्रति राज्य की सर्वोच्च श्रद्धांजलि होगी।
Vinod Kumar Shukla : सादगी भरा जीवन और राजनांदगांव से जुड़ाव विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा और परिवेश ने उनकी लेखनी को वह मौलिकता दी, जो आगे चलकर विश्व स्तर पर सराही गई। वे लंबे समय तक इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे, लेकिन उनकी असली पहचान उनके शब्दों से बनी। वे सादगी की प्रतिमूर्ति थे और रायपुर के अपने छोटे से घर में रहकर उन्होंने वह साहित्य रचा, जिसने हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर गौरवान्वित किया। उनके जाने से छत्तीसगढ़ ने अपना एक ऐसा बौद्धिक अभिभावक खो दिया है जिसकी भरपाई संभव नहीं है।
साहित्यिक योगदान और नौकर की कमीज शुक्ल जी को जादूई यथार्थवाद का भारतीय चेहरा माना जाता है। उनके उपन्यास 'नौकर की कमीज' ने उन्हें घर-घर में पहचान दिलाई, जिस पर बाद में मशहूर फिल्मकार मणि कौल ने फिल्म भी बनाई। उनके अन्य प्रमुख उपन्यासों में 'खिलेगा तो देखेंगे' और 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' शामिल हैं। उनकी कविताओं में एक अजीब सी मासूमियत और गहराई होती थी, जैसे 'सब कुछ होना बचा रहेगा' और 'अतिरिक्त नहीं'। उन्होंने भाषा के साथ ऐसे प्रयोग किए कि साधारण से साधारण शब्द भी कविता बन जाते थे। उनकी रचनाओं का अंग्रेजी, इतालवी, जर्मन और फ्रांसीसी सहित कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
वैश्विक सम्मान और उपलब्धियां विनोद कुमार शुक्ल को उनके साहित्यिक सफर में अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया। साल 1999 में उन्हें उनके उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' दिया गया। इसके अलावा उन्हें शिखर सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान और रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उनके करियर की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक साल 2023 में मिला 'पैन/नाबोकोव लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' था। यह अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले वे पहले भारतीय लेखक बने, जिसने यह सिद्ध कर दिया कि छत्तीसगढ़ की गलियों में बैठकर लिखा गया साहित्य भी सात समंदर पार अपनी धमक रख सकता है।
अंतिम विदाई का कार्यक्रम आज सुबह से ही उनके रायपुर स्थित निवास पर श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा हुआ है। मुख्यमंत्री समेत शासन-प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी और कला जगत की हस्तियां उन्हें नमन करने पहुँच रही हैं। 11 बजे मारवाड़ी श्मशान घाट में राजकीय सम्मान के साथ होने वाले अंतिम संस्कार की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। भले ही विनोद कुमार शुक्ल सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी 'खिड़की' से आती ठंडी हवा और 'सब कुछ होना बचा रहेगा' जैसी उम्मीदें पाठकों की अगली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती रहेंगी। छत्तीसगढ़ आज अपने इस अनमोल सपूत को भीगी आंखों से अंतिम विदाई दे रहा है।