IAS Vijay Dayaram: बस्तर कलेक्टर दयाराम ने 'तू ही रे, तेरे बिना कैसे ज़ियूं', गाकर शमां बांध दिया, आप भी देखिये
IAS Vijay Dayaram:
IAS Vijay Dayaram: रायपुर/जगदलपुर। इन दिनों छत्तीसगढ़ के जगदलपुर कलेक्टर विजय दयाराम के. का एक वीडियो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहा है। जिसमें वो अपनी सुरीली आवाज में हिंदी गाने को तामिल में गाते हुये दिख रहे हैं। वीडियो में उनकों गाते देख हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है।
दरअसल, इन दिनों जगदलपुर कलेक्टर अपनी मधुर आवाज की वजह से काफी चर्चाओें में हैं। आईएएस विजय दजयाराम के. हिंदी में सुपरहिट रहे गीत तू ही रे, को तामिल में गा रहे हैं। उनकी आवाज इस गाने में इतनी फिट बैठ रही है कि तामिल में होते हुये भी हर कोई गाने को बार-बार सुन रहा है। आप भी सुने उनके द्वारा गया गया ये गीत...
बता दें कि विजय दयाराम छत्तीसगढ़ कैडर के 2015 बैच के आईएएस हैं। मूलतः कर्नाटक के रहने वाले विजय दयाराम एक किसान के बेटे है। काफी गरीबी व संघर्षों में अपना बचपन काट कर पढ़ाई करते हुए विजय दयाराम ने माता-पिता के संघर्षों की बदौलत यूपीएससी क्रैक की है।
जानिए उनके बारे में
एनपीजी। विजय दयाराम छत्तीसगढ़ कैडर के 2015 बैच के आईएएस है। वे मूलतः कर्नाटक के रहने वाले हैं। काफी ग़रीबी में संघर्ष करते हुए विजय दयाराम ने अपनी स्कूल व कॉलेज की पढ़ाई पूरी की है। सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर विजय दयाराम ने यूपीएससी की तैयारी की और अपने दूसरे प्रयास में आईएएस के लिए चुने गए।
विजय दयाराम का जन्म 8 नवंबर 1987 को हुआ है। उनके पिता का नाम दयाराम व माता का नाम इंदिरा है। विजय दयाराम 2015 बैच के आईएएस है। वे कर्नाटक राज्य के बैंगलुरु ग्रामीण जिले के डोंडाबलरामपुर गांव के रहने वाले है। उनके पिता किसान है व माता गृहणी हैं। विजय दयाराम का एक छोटा भाई है जो बी. कॉम कर खेती में पिता का हाथ बंटाता है। विजय की छोटी बहन भी है। उनकी बहन ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया है। विजय दयाराम के पिता के पास केवल डेढ़ एकड़ खेती है। विजय दयाराम के पिता का दृढ़ निश्चय था कि सारे अभावों के बाद भी बच्चों को शिक्षा देनी है। जिसके चलते उनके तीनों बच्चों ने अच्छी शिक्षा अर्जित की।
एमएबीएल स्कूल से विजय दयाराम ने स्कूली पढ़ाई पूरी की है। यह एक शासकीय अनुदान प्राप्त स्कूल है। विजय दयाराम का स्कूल उनके गांव से 12 किलोमीटर दूर था। वे रोजाना साइकिल चला कर गांव से स्कूल आना जाना करते थे। स्कूल जाने के पहले खेतों में काम करना और स्कूल से आने के बाद अपने खेत में उगी हुई सब्जियां बेचना विजय दयाराम के रोजाना की दिनचर्या थी। पढ़ाई के दौरान आर्थिक अभाव इतना था कि स्कूल में पटने वाला त्रैमासिक फीस भी विजय दयाराम के पिता बड़ी मुश्किल से पटा पाते थे। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते विजय दयाराम के परिवार को गांव में कोई पूछता नहीं था, गांव वाले उनके परिवार से दूरी बनाकर रखते थे।
कर्नाटक राज्य में सातवीं कक्षा में बोर्ड एग्जाम होता था। बोर्ड परीक्षा में विजय दयाराम ने जिले में टॉप किया। इसके बाद आठवीं कक्षा में उन्होंने स्कूल की पढ़ाई के लिए एक दूसरे स्कूल मुद्देन हरली प्राइवेट स्कूल में प्रवेश लिया। वहां रहकर पढ़ाई के लिए उन्होंने हॉस्टल में प्रवेश लिया। हॉस्टल व स्कूल की फीस भरने के लिए विजय दयाराम के पिता ने 16 हजार रुपए का कर्ज लेकर स्कूल व हॉस्टल की फीस भरी।
फीस नहीं भर पाने के कारण छुटा प्राइवेट स्कूल
नौवीं कक्षा में स्कूल व हॉस्टल के बढ़ी हुई 18 हजार रुपए की फीस का इंतजाम नहीं हो पाने के चलते उन्होंने हॉस्टल व उस स्कूल को छोड़ दिया और वापिस अपने गांव आकर पुराने स्कूल में एडमिशन लिया। यहां से नौवीं की पढ़ाई की फिर दसवीं में यही से परीक्षा दिलाकर पूरे जिले में बोर्ड परीक्षा में 88.5% के साथ दूसरे नंबर के टॉपर रहे। 11वीं 12वीं में भी गणित,भौतिकी,रसायन विषयों के साथ 89% नंबरों से पास हुए। फिर बैंगलोर में जाकर एमवीआईटी इंजीनियरिंग कॉलेज में कंप्यूटर साइंस ब्रांच में प्रवेश लिया। उनके कॉलेज की पढ़ाई के लिए उनकी मां ने अगरबत्तियां भी बना कर बेची। इसके साथ ही विजय की मां ने गहने गिरवी रख यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली जाने हेतु पैसों की व्यवस्था की। विजय दयाराम ने सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। कॉलेज की पढ़ाई विजय दयाराम ने बहुत ही सीमित संसाधनों के साथ की है। पूरे कॉलेज की पढ़ाई में उनके पास सिर्फ तीन जोड़े कपड़े ही होते थे। अपनी अन्य आवश्यकताओं की पूरी स्थिति अपनी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विजय दयाराम कॉलेज के दिनों में ट्यूशन भी पढ़ाया करते थे। विजय दयाराम के मित्र भी उन्हें कॉलेज में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे।
विजय दयाराम ने बीटेक की डिग्री 72% के साथ पूरी की। पढ़ाई के बाद विजय दयाराम इंफोसिस कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की दो से ढाई साल तक जॉब भी कर चुके हैं।
यूपीएससी में सलेक्शन
विजय दयाराम के पिता ने उन्हें सॉफ्टवेयर इंजीनियर से आईएएस बनने के लिए प्रेरित किया। उनकी मां ने भी तैयारी के लिए काफी सहयोग दिया। प्रथम प्रयास यूपीएससी में असफल होने के बाद दिल्ली जाकर तैयारी करने के लिए विजय दयाराम की मां ने अपने जो भी थोड़े बहुत गहने हैं उन्हे बैंक में गिरवी रख कर उन पैसों से विजय दयाराम को आईएएस बनाने के लिए दिल्ली भेजा। विजय दयाराम ने अपने दूसरे प्रयास में यूपीएससी में सफलता हासिल की और आईएएस बने। विजय दयाराम ने वैकल्पिक विषय के रूप में एंथ्रोपोलॉजी सब्जेक्ट को चुना था।
विजय दयाराम से यूपीएससी के साक्षात्कार में पूछा गया था कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर की जमी– जमाई नौकरी छोड़ कर वे यूपीएससी की तैयारी क्यों कर रहें है। जिसके जवाब में विजय दयाराम ने बताया कि वह एक दिन परिवार के साथ बैठकर कर्नाटक से यूपीएससी सलेक्ट लोगों की इंटरव्यू देख रहे थे। तभी उनके पिता ने अचानक उन्हें आईएएस बनने के लिए कहा। तब विजय दयाराम को आईएएस के बारे में कुछ भी नहीं पता था। वे मास्टर डिग्री लेना चाहते थे। फिर परिवार में विचार विमर्श के बाद यह तय हुआ कि पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए फीस बहुत ज्यादा है और विजय दयाराम के छोटे भाई बहनों की पढ़ाई का खर्च भी वहन करना था। इसलिए मास्टर डिग्री की बजाय विजय यूपीएससी की तैयारी करेंगे। और विजय ने पिता की बात मानकर यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।
सलेक्शन के बाद गांव में जश्न का माहौल
विजय दयाराम का यूपीएससी में सलेक्शन की बात सुन उनके गांव में जश्न का माहौल हो गया। जो गांव वाले उनके परिवार से कभी कन्नी काटते थे। उन्होंने विजय के पोस्टर पूरे गांव में लगाए और उनका सम्मान समारोह भी आयोजित किया गया ।
जीवन साथी
विजय दयाराम ने सुप्रीदा से शादी की है। सुप्रीदा चार्टर्ड अकाउंटेंट है। दोनों का एक बच्चा भी है।
प्रोफेशनल कैरियर
विजय दयाराम ने 7 सितंबर 2015 को आईएएस की सर्विस ज्वाइन की। छत्तीसगढ़ कैडर मिलने के बाद मैदानी प्रशिक्षण के लिए उनकी पहली पोस्टिंग राजनांदगांव जिले में सहायक कलेक्टर के पद पर हुई। इसके बाद में बलरामपुर–रामानुजगंज जिले के रामानुजगंज अनुविभाग के एसडीएम बने। थोड़े समय के लिए वाड्रफनगर के एसडीएम बने। बिलासपुर जिले में एडिशनल कलेक्टर बने। उसे समय अविभाजित बिलासपुर जिले में मरवाही के एडिशनल कलेक्टर रहते उन्होंने 2018 विधानसभा चुनाव में रिटर्निंग ऑफिसर के रूप में मरवाही विधानसभा का चुनाव संपन्न करवाया।
मरवाही के बाद में जिला पंचायत धमतरी के जिला पंचायत सीईओ बने इस दौरान स्वास्थ्य सहायता समूहों के लिए विशेष कार्य किया। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत देश में सबसे ज्यादा घर बनवाने के चलते विजय दयाराम के कार्यकाल में पंचायत को भारत सरकार के द्वारा अवार्ड में प्रदान किया गया।
धमतरी के बाद विजय दयाराम कवर्धा जिला पंचायत के सीईओ बने। कवर्धा जिला पंचायत को उनके कार्यकाल में भारत सरकार के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्वारा बेस्ट परफॉर्मिंग जिला पंचायत का अवार्ड दिया गया। कवर्धा के बाद विजय अंबिकापुर नगर निगम के कमिश्नर बने। इस दौरान निगम को स्वच्छता रैंकिंग में पूरे भारत में चौथा रैंकिंग मिला।
कलेक्टर के तौर पर विजय दयाराम की पहली पोस्टिंग बलरामपुर–रामानुजगंज जिले में हुई। बलरामपुर कलेक्टर छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची गौर –लाटा पहाड़ी को टूरिज्म स्पॉट के रूप में विकसित किया और पर्यटकों के लिए सुगम बनाया। नजूल के नक्शे में पहली बार बलरामपुर जिले को विजय दयाराम ने कलेक्टर रहते शामिल करवाया। पहाड़ी कोरवा और पंडो जनजाति जैसे विशेष पिछड़ी जनजाती के लोगों को तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के सरकारी पदों पर भर्ती हेतु सरकार की योजना के तहत अभियान चला कर अंदरुनी गांव से जो के लोगों अंदरुनी गांव से जो अंदरुनी गांवों से योग्य अभ्यर्थियों को निकाल कर 145 लोगों को निर्विवाद ढंग से सरकारी नौकरी दी। नगर पालिका बलरामपुर में अपने अंबिकापुर नगर निगम आयुक्त के कार्यकाल के तहत प्राप्त अनुभवों का लाभ उठा कर काम करवाया। जिसके चलते बलरामपुर नगर पालिका को भी भारत सरकार से स्वच्छता में अवार्ड मिला। बलरामपुर में अनु विभागों का सेटअप स्वीकृत करवाया।।
बलरामपुर के बाद विजय दयाराम बस्तर जिले के कलेक्टर बने। बस्तर में उन्होंने शांतिपूर्ण ढंग से विधानसभा फिर लोकसभा चुनाव भी संपन्न करवाया। विधानसभा चुनाव में 100% महिलाओं से ही पूरी मतगणना करवाई। लोकसभा चुनाव में नगर पालिका निगम, ब्लॉक मुख्यालयों, व नगर पंचायत के बूथों में महिला कर्मियों से ही मतदान की प्रक्रिया संपन्न करवाई। प्रधानमंत्री के दो दौरे सफलतापूर्वक निपटाए। बस्तर दशहरा 105 दिन तक मनवाया।
आमचो चिन्हारी अभियान चलाया। अभियान में आंगनबाड़ी के बच्चों को जाति प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता था। अभियान के तहत 23 हजार से ज्यादा बच्चों को जाति प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। बस्तर अकादमी का डांस एंड लिटरेचर (बादल एकेडमी) की स्थापना करवाई। बादल अकादमी के द्वारा बस्तर की सभ्यता और संस्कृति को संवर्धित और संरक्षित करने का काम किया जाता है। विजय दयाराम एक अच्छे गायक भी हैं। उन्होंने हल्बी भाषा में अपना पहला गाना बादल अकादमी में ही गाया।
प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट का प्रदेश में पहली यूनिट विजय दयाराम ने बस्तर में ही खुलवाया। बस्तर में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट पर प्रदेश स्तरीय कार्यशाला भी आयोजित की गई। नगरनार स्टील प्लांट का उद्घाटन जगदलपुर में विजय दयाराम के कलेक्टर रहते ही हुआ है।