DGP Salection 2024: छत्तीसगढ़ में मध्‍य प्रदेश कैडर के डीजीपी

DGP Salection 2024: छत्‍तीसगढ़ के मौजूदा डीजीपी अशोक जुनेजा का कार्यकाल अगले महीने 4 तारीख को खत्‍म हो रहा है। प्रदेश में नए डीजीपी की तलाश शुरू हो चुकी है।

Update: 2024-07-11 07:18 GMT

Chhattisgarh DGP

DGP Salection 2024: रायपुर। डीजीपी अपाइंटमेंट का टाईम है, सो इस शीर्षक से आप चौंकिएगा मत! छत्तीसगढ़ में कोई बाहर से डीजीपी नहीं आ रहा। इस खबर का तात्पर्य आपको स्मरण कराना है कि छत्तीसगढ़ में एमपी कैडर के भी आईपीएस डीजीपी रह चुके हैं। आईपीएस थे आरएलएस यादव।

राज्य बंटवारे के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस का सेटअप ठीक करने उन्हें यहां भेजा गया था। यादव का रिटायरमेंट करीब था, जाहिर है उन्हें एमपी में डीजीपी बनने का मौका नहीं मिलता। इसलिए वे यहीं रुक गए। उस समय डीजीपी नियुक्ति के न तो कड़े नियम थे और न ही कैडर को लेकर भारत सरकार सख्त थी। तभी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री जोगीजी ने उन्हें 26 मई 2001 को सूबे का डीजीपी अपाइंट कर दिया। याने राज्य बनने के छह महीने के भीतर ही। मगर इसके लिए जोगीजी को मानसिक झंझावतों से गुजरना पड़ा। उनके समक्ष धर्मसंकट यह था कि छत्तीसगढ़ के फर्स्ट डीजीपी श्रीमोहन शुक्ला, जिन्हें उन्होंने ही नियुक्त किया था, उन्हें वे बेहद चाहते थे और आरएलएस यादव तो उनके अपने थे ही।

उधर, यादव का रिटायरमेंट भी करीब था। ऐसे में जोगीजी ने श्रीमोहन शुक्ला से आग्रह किया पीएससी चेयरमैन बनने के लिए। आग्रह शब्द का इस्तेमाल यहां इसलिए किया जा रहा कि जोगीजी ने उन्हें सीएम हाउस बुलाकर एक मैसेज देने के लिए सबके सामने कहा था कि ये फैसला मैं आप पर छोड़ता हूं। मैसेज यह था कि वे शुक्ला को हटा नहीं रहे हैं, उनका सम्मान करते हैं। तब शुक्ला के रिटायरमेंट में छह महीने से अधिक समय बचा था। उन्होंने जोगीजी की इच्छा का सम्मान करते हुए आईपीएस से वीआरएस ले लिया और 26 मई 2001 को उन्हें पीएससी का फर्स्ट चेयरमैन बना दिया गया।

यादव भी करीब छह महीने ही डीजीपी रहे। जनवरी 2002 में वे सेवानिवृत हो गए। रिटायरमेंट के बाद जोगीजी ने उन्हें अपना सलाहकार बनाया था। बहरहाल, जोगीजी नहीं रहे। मगर उनके इस फैसले की आज भी ब्यूरोक्रेसी में चर्चा होती है कि उन्होंने आरएलएस यादव को डीजीपी बनाने का वादा भी निभाया और श्रीमोहन शुक्ला का सम्मान भी बरकरार रखा। याने जोगीजी ने दोनों को खुश कर दिया।

डीजीपीः संयोग या दुर्योग

यह जानकर आपको हैरानी होगी कि मध्यप्रदेश बंटवारे में जो आईपीएस खुद की इच्छा से छत्तीसगढ़ आए थे, उनमें से एक को भी डीजीपी बनने का मौका नहीं मिला। और जो आईपीएस सुप्रीम कोर्ट जाकर केस जीत गए, वे सभी छत्तीसगढ़ के पुलिस प्रमुख बने। बता दें, छत्तीसगढ़ में अब तक जितने भी डीजीपी बने हैं, वे अगर एमपी में होते तो उनमें से कोई भी वहां डीजीपी नहीं बनता। क्योंकि, एमपी में कैडर बड़ा है। अभी 87 बैच के आईपीएस वहां डीजी हैं। और छत्तीसगढ़ में 91 बैच से नीचे के अफसर इस पद पर पहुंचने वाले हैं।

दरअसल, नवंबर 2000 में आईपीएस कैडर का बंटवारा हुआ, उसे छत्तीसगढ़ कैडर के 16 आईपीएस अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था। उनका कहना था कि गलत रोस्टर के चलते उन्हें छत्तीसगढ़ भेजा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में वे केस जीत गए। आदेश यह हुआ था कि दोनों राज्यों की सहमति से 16 आईपीएस एमपी जाते और उनके बदले एमपी से 16 अफसर छत्तीसगढ़ आते। मगर एमपी के सीएम दिग्विजय सिंह ने सहमति देने से इंकार कर दिया। इसके बाद 16 आईपीएस अधिकारियों को मन मारकर छत्तीसगढ़ रहना पड़ा।

तब छत्तीसगढ़ नक्सल और आदिवासी स्टेट माना जाता था। आईएएस हो या आईपीएस...छत्तीसगढ़ कैडर उनके लिए बज्रपात समान था। अब बात उनकी जो इच्छा व्यक्त कर छत्तीसगढ़ आए थे। इनमें राजीव माथुर, संतकुमार पासवाना और गिरधारी नायक प्रमुख हैं। ये तीनों सारे एजिबिलिटी के बाद भी डीजीपी नहीं बन पाए। नायक को भाग्य इतना खराब था कि भूपेश बघेल उन्हें डीजीपी बनाना चाहते थे मगर उसमें छह महीने का रोड़ा आ गया। जिसके रिटायरमेंट में अगर छह महीने से कम समय बचा है, उसे डीजीपी नहीं बनाया जाएगा। और जैसे ही भूपेश सरकार ने डीएम अवस्थी को डीजीपी बनाया, महीने भर बाद छह महीने वाला नियम समाप्त कर दिया गया। अब इसे संयोग बोलिये या दुर्योग।

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