Chief Election Officer Power: क्या है चीफ इलेक्शन ऑफिसर (CEO) के पावर? राज्यों में चुनाव के दौरान CEO सरकार से भी ज्यादा पावरफुल क्यों हो जाते हैं?...

Chief Election Officer Power: विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव कराने के लिए राज्यों में चीफ इलेक्शन आफिसर याने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी का पद होता है। यह सीधे भारत निर्वाचन आयोग को रिपोर्ट करता है और उनके निर्देशों पर काम करता है।

Update: 2024-05-07 06:36 GMT

Chief Election Officer

Chief Election Officer Power: रायपुर। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां स्वच्छ और शांतिपूर्ण ढंग से अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए निष्पक्ष निर्वाचन आयोग की व्यवस्था है। इसे भारत निर्वाचन आयोग कहा जाता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त इसके प्रमुख होते हैं। आजादी के बाद अभी तक 24 मुख्य निर्वाचन आयुक्त पोस्ट हो चुके हैं। राजीव कुमार 25 वें चीफ इलेक्शन कमिश्नर याने सीईसी हैं। सीईसी निर्धारित पांच साल का कार्यकाल पूरा हो जाने पर न केवल चुनाव की तारीखों को ऐलान करता है बल्कि परिणाम आते तक इसकी पूरी मानिटरिंग करता है। चुनाव का ऐलान होने के बाद सारा कुछ चुनाव आयोग के मार्गदर्शन में सिस्टम वर्क करता है। चुनाव आयोग राज्यों के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के जरिये चुनावों का संचालन करता है। इसके लिए राज्यों में मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी का पद होता है। स्टेट के चीफ इलेक्शन आफिसर सीनियर सिकरेट्री रैंक के अफसर होते हैं।

चीफ इलेक्शन आफिसर की नियुक्ति?

चीफ इलेक्शन आफिसर राज्य कैडर का आईएएस होता है। उसकी सेलरी से लेकर सारी सुविधाएं राज्य सरकार वहन करती है। मगर उसकी नियुक्ति चुनाव आयोग के एपू्रवल के बाद होती है। इसके लिए निर्वाचन आयोग को तीन नामों का पेनल भेजा जाता है। अगर उन तीन नामों में कोई नाम पसंद नहीं आया तो निर्वाचन आयोग दोबारा भी पेनल मंगा सकता है। आयोग जिस नाम पर टिक लगाता है, उसे राज्य सरकार मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी नियुक्त करती है।

चीफ इलेक्शन आफिस का सेटअप

सामान्य दिनों में जब चुनाव नहीं होते तब राज्य निर्वाचन कार्यालय में दर्जन भर अधिकारियों, कर्मचारियों की टीम होती है। चीफ इलेक्शन आफिसर को भी राज्य सरकार चुनाव आयोग की इजाजत से सचिवालय में एक दो विभाग सौंप देता है। मगर चुनाव के छह महीने पहले निर्वाचन कार्यालय का काम काफी व्यस्त हो जाता है। तब चुनाव आयोग के परमिशन से राज्य सरकार कई आईएएस अधिकारियों को एडिशनल, ज्वाइंट और सब इलेक्शन आफिसरों की नियुक्ति करती है। कर्मचारियों की भी फौज खड़ी हो जाती है। चुनाव के दौरान राज्य निर्वाचन ऑफिस में दिन रात काम चलता है। पूरे जिलों में चुनावी प्रक्रिया पर निगरानी के लिए कंट्रोल रुम बनाया जाता है। आचार संहिता लागू होने के छह महीने पहले से ही मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कलेक्टर, एसपी की मीटिंग लेकर चुनाव प्रक्रिया की ट्रेनिंग देना प्रारंभ कर देता है।

सरकार का पावर निर्वाचन को

चुनाव के दौरान आचार संहिता के प्रभावशील होते ही सरकार के सारे अधिकार चुनाव आयोग के हाथ में आ जाते हैं। तब सरकार न कोई जनहित की घोषणाएं कर सकती और न ही किसी सरकारी मुलाजिम को ट्रांसफर या कार्रवाई कर सकती है। यह पूरा पावर राज्य निर्वाचन पदाधिकारी के हाथों में आ जाता है। राज्यों के सीईओ की अनुशंसा पर आयोग राज्यों के बड़े-से-बड़े अफसर को हटा देता है। वर्तमान मेंं चल रहे लोकसभा चुनाव 2024 में ही चुनाव आयोग कई राज्यों के मुख्य सचिव और डीजीपी को हटा दिया है। विषम परिस्थिति में अगर राज्य सरकार को कोई फैसला या नियुक्ति करनी हो तो उसे सीईओ से इजाजत लेनी होती है। फाइल पहले सीईओ को भेजी जाती है। सीईओ के उपर निर्भर करता है कि वो परमिशन दे या नहीं दे।

Tags:    

Similar News