Naxalism in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में कब शुरू हुआ नक्सलवाद? जानिए नक्सलवाद का इतिहास और इससे जुडी बड़ी घटनाएं

नक्सलवाद की उत्पत्ति से लेकर छत्तीसगढ़ में इसके प्रभाव तक, जानें कैसे नक्सली संघर्ष ने राज्य को प्रभावित किया है। इस लेख में, हम जानेंगे कि नक्सलवाद कैसे शुरू हुआ और कैसे फैली इसकी जड़ें...

Update: 2025-09-17 11:13 GMT
Chhattisgarh me naxalwad ka itihaas: भारत में नक्सलवाद (Naxalism in India) की शुरुआत 25 मई 1967 को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई। यहीं से इसे “नक्सलवाद” (Naxalism) नाम मिला। उस समय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (Marxist Communist Party) के नेता चारू मजूमदार, कानू सान्याल और जंगल संथाल ने किसानों और मजदूरों के हक की लड़ाई के लिए हथियार उठाए। आंदोलन का आधार था मार्क्सवाद और माओवाद, जिसमें यह विचार रखा गया कि सत्ता और व्यवस्था को हथियारों से बदले बिना असली समानता नहीं लाई जा सकती।
चीनी नेता माओत्से तुंग का मशहूर कथन था – “क्रांति बंदूक की नाल से निकलती है”। इसी सोच ने भारत में भी वंचित और शोषित तबकों को आकर्षित किया और उन्होंने हथियार उठाकर विद्रोह शुरू कर दिया।

छत्तीसगढ़ में कब शुरू हुआ नक्सलवाद? (Naxalism in Chhattisgarh)
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की शुरुआत 1960 के दशक में हुई जब यह मध्य प्रदेश था। उस समय आंध्रप्रदेश से लगे बस्तर क्षेत्र में कुछ नक्सली घुस आए। 1967-68 तक उनकी गतिविधियाँ और संगठित होने लगीं और धीरे-धीरे बस्तर उनका गढ़ बन गया।
छत्तीसगढ़ की समस्या इसलिए और गंभीर थी क्योंकि यहाँ के घने जंगल और पहाड़ नक्सलियों को छिपने और कैंप बनाने का अवसर देते थे। बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी यहाँ रहती है, जो गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण सरकार से कटी हुई थी। सड़कें, अस्पताल, स्कूल जैसे बुनियादी ढांचे की कमी ने नक्सलियों को लोगों के बीच जगह बनाने का मौका दिया। यही कारण है कि आज कांकेर, बस्तर, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जैसे जिले पूरी तरह नक्सल प्रभावित माने जाते हैं।

नक्सली घटनाएँ जिन्होंने छत्तीसगढ़ को हिला दिया
नक्सलवाद के कारण छत्तीसगढ़ में कई दर्दनाक घटनाएँ हुईं। कुछ प्रमुख घटनाएँ इस प्रकार हैं –
2007, बस्तर – 300 से ज्यादा नक्सलियों ने हमला कर 55 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी।
2011, दंतेवाड़ा – इतिहास के सबसे बड़े नक्सली हमलों में से एक, जिसमें 76 जवान शहीद हुए।
2013, सुकमा का झीरम घाटी नरसंहार – कांग्रेस नेताओं की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर नक्सलियों ने 27 लोगों की हत्या कर दी, जिनमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी शामिल थे।
2021, बीजापुर – नक्सली हमले में 23 जवान शहीद हुए और 31 घायल हुए।
2024, सुकमा – DRG और STF के जवानों पर हमला कर 3 जवानों को शहीद कर दिया गया और 15 घायल हुए।
इन घटनाओं ने न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश को हिला दिया।



क्यों छत्तीसगढ़ बना नक्सलवाद का गढ़?

छत्तीसगढ़ नक्सलवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित इसलिए हुआ क्योंकि यह राज्य आंध्रप्रदेश और झारखंड जैसे पहले से प्रभावित राज्यों से सटा हुआ है। यहाँ 92 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र नक्सल ग्रस्त है। बस्तर क्षेत्र में खनिज संपदा की बहुतायत है – लोहा, बॉक्साइट, कोयला आदि। नक्सली इन संसाधनों को अपने कब्जे में रखना चाहते हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की कमी के कारण नक्सलियों को स्थानीय युवाओं को बहकाना आसान हो जाता है। आदिवासियों में दशकों से भूमि अधिकार और शोषण की समस्या रही है, जिसका फायदा नक्सली उठाते आए हैं।

नक्सलवाद का असर
नक्सलवाद ने छत्तीसगढ़ के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन पर गहरा असर डाला है। सुरक्षा बलों पर लगातार हमले होते हैं। हजारों जवान शहीद हो चुके हैं। निर्दोष आदिवासी गोलीबारी और बम धमाकों के बीच पिसते हैं। कई स्कूल और अस्पताल बंद कर दिए गए क्योंकि नक्सली उनका उपयोग कैंप के तौर पर करने लगे।
विकास कार्य – सड़कें, पुल, मोबाइल टॉवर – कई बार नक्सली उड़ा देते हैं। स्थानीय राजनीति पर भी असर पड़ा है। नेताओं पर बार-बार हमले हुए, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित हुई।

सरकार की कोशिशें और रणनीतियाँ
नक्सलवाद से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने कई कदम उठाए हैं।
सुरक्षा अभियान – CRPF, BSF, ITBP, DRG और STF जैसी फोर्स को तैनात किया गया। लगातार जंगलों में सर्च ऑपरेशन और एन्काउंटर चल रहे हैं।
विकास योजनाएँ
– प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, आदिवासी विकास कार्यक्रम, शिक्षा और स्वास्थ्य योजनाओं को तेजी से लागू किया जा रहा है।
सरेंडर पॉलिसी – नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए आत्मसमर्पण करने वालों को रोजगार, मकान और सुरक्षा देने का वादा किया गया है।
तकनीकी मदद – ड्रोन, सर्विलांस और आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर नक्सलियों की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है।
संवाद और विश्वास – सरकार लोगों तक पहुँचकर यह संदेश दे रही है कि असली विकास केवल लोकतंत्र और शांति से संभव है, न कि हिंसा से।

भविष्य की राह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया है कि 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को खत्म (Naxalism End By 2026) करने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार का मानना है कि जब तक आदिवासियों और ग्रामीणों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की सुविधाएँ नहीं मिलेंगी, तब तक समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होगी। आज हालात पहले से काफी बेहतर हुए हैं। कई जिलों में नक्सली गतिविधियाँ कमजोर हुई हैं। परंतु बस्तर, बीजापुर और सुकमा जैसे क्षेत्रों में अभी भी चुनौती बनी हुई है।
नक्सलवाद ने छत्तीसगढ़ को पिछले पाँच दशकों में बहुत चोट पहुँचाई है। हजारों जवान और निर्दोष नागरिक अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन अब सरकार की सख्त सुरक्षा नीति और विकास पर जोर से धीरे-धीरे बदलाव दिख रहा है। अगर आने वाले वर्षों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की सुविधाएँ आदिवासी इलाकों तक पहुँचीं और युवाओं को हिंसा की बजाय अवसर मिले, तो वह दिन दूर नहीं जब छत्तीसगढ़ नक्सल मुक्त हो जाएगा।
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