Acting DGP News: देश के इन 7 राज्यों में कार्यवाहक डीजीपी, रेगुलर डीजीपी की नियुक्ति क्यों नहीं? पढ़िये एनपीजी की खास रपट...

Acting DGP News: राज्यों में डीजीपी की नियुक्तियों में सुप्रीम कोर्ट और यूपीएससी के गाइडलाइंस को ओवरलुक किया जा रहा है। कायदे से डीजीपी के रिटायरमेंट से छह महीने पहले एमएचए को पेनल भेजना चाहिए। मगर ऐसा हो नहीं रहा।

Update: 2024-02-01 14:01 GMT
  • एनपीजी न्यूज ब्यूरो

Acting DGP News: नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार ने कल 16 आईपीएस अधिकारियों की सीनियरिटी को नजरअंदाज करते हुए 1990 बैच के आईएएस प्रशांत कुमार को सूबे का कार्यवाहक डीजीपी बना दिया गया। तेज तर्रार पुलिस अधिकारी प्रशांत एडीजी लॉ एंड आर्डर का दायित्व संभाल रहे थे। उन्हें यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विश्वस्त पुलिस अधिकारी माना जाता है।

उत्तरप्रदेश में चौथी बार

यूपी में कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति पहली बार नहीं हुई है। वहां लगातार चौथी बार कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है। इससे पहले कल रिटायर हुए डीजीपी भी रेगुलर नहीं कार्यवाहक थे। यूपी के अलावा आंध्र प्रदेश, तेलांगना, पंजाब, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में कार्यवाहक डीजीपी पोस्टेड हैं।

डीजीपी नियुक्ति के नियम क्या हैं

राज्यों में पुलिस महानिदेशक अपाइंट करने के लिए डीजीपी के रिटायरमेंट से छह महीने पहले 25 साल आईपीएस की सर्विस पूरा किए अफसरों को पेनल केंद्रीय गृह मंत्रालय और यूपीएससी को भेजा जाता है। पहले 30 साल की सर्विस जरूरी होती थी मगर अब इसमें पांच साल घटा दिया गया है। केंद्र सरकार तीन नामों को सलेक्ट कर राज्यों को भेजता है। इनमें से राज्य किसी एक को डीजीपी बना सकता है। सुप्रीम कोर्ट और यूपीएससी का यही गाइडलाइंस है। बेहद खास परिस्थितियों में राज्य रेगुलर की बजाए कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति कर सकते हैं। मगर आजकल सामान्य परिस्थितियों में भी कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति होने लगी है।

कार्यवाहक डीजीपी क्यों?

राज्य के मुख्यमंत्रियों द्वारा कार्यवाहक डीजीपी बनाने के पीछे दो कारण है। एक तो सीनियर लेवल के अफसर हो सकता है कि उनके पसंद का न हो या वे जैसा चाहते हैं वैसा रिजल्ट और परफरमेंस की उन्हें उम्मीद नहीं होती। दूसरी सबसे बड़ी वजह यह है कि सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के अनुसार डीजीपी की नियुक्ति मिलने के बाद उसका कार्यकाल दो बरस होता है। नियुक्ति के समय भले ही उस आईपीएस का रिटायरमेंट छह महीने बचा हो, नियुक्ति तारीख से उसे दो साल की पोस्टिंग मिल जाती है। कई राज्यों में रेगुलर डीजीजी इसका फायदा उठा रहे हैं। इससे पहले अगर उन्हें हटाया गया तो जोखिम रहता है कि वे कहीं कोर्ट न चले जाएं। केरल सरकार ने डीजीपी को हटाया था तो वहां के डीजीपी कोर्ट गए और वहां से स्टे ले आए थे। इसलिए मुख्यमंत्रियों को कार्यवाहक डीजीपी बनाना ज्यादा मुफीद और सुविधाजनक प्रतीत हो रहा है।

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