Chhattisgarh: ट्रांसफर से नहीं खुलेगा बैन, मंत्रियों के जरिये होंगे तबादले, जानिये क्यों?...
Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में तबादलों पर लंबे समय से बैन लगा हुआ है। सरकारें बीच-बीच में प्रतिबंध हटाती हैं। छत्तीसगढ़ में इससे पहले 2022 में बैन हटाया गया था, तब बड़ी संख्या में तबादले किए गए थे।
Chhattisgarh: रायपुर। छत्तीसगढ़ में करीब डेढ़ दशक से तबादलों पर प्रतिबंध लगा हुआ है। सरकारे जरूरत के हिसाब से साल-दो साल में टाइम बांड जैसा एक निश्चित मियाद के लिए बैन हटाती है, और उसमें एक तयशुदा सीमा तक तबादले किए जाते हैं। आमतौर पर कुल कर्मचारियों, अधिकारियों की 10 से 15 परसेंट की सीमा तय की जाती है। इससे पहले भूपेश बघेल सरकार ने 2022 में एक महीने के लिए बैन हटाया था। उसमें बड़ी संख्या में ट्रांसफर हुए थे। हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने पिछले साल भी तबादले करने का दबाव बनाई थी। मगर चुनावी साल में सरकार ने बैन खोलने का निर्णय लेना मुनासिब नहीं समझा। दरअसल, चुनावी साल में अनाप-शनाप ट्रांसफर से सरकार को नुकसान का डर था। इसलिए, बैन नहीं हटाई। जाहिर है, उस दौरान सबसे अधिक सुर्खियों में स्कूल शिक्षा विभाग रहा था। बताते हैं, इस विभाग में ट्रांसफर उद्योग से 200 करोड़ का खेला किया गया। आलम यह हो गया कि मंत्री को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ गई।
नई सरकार से भरोसा
दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ तो प्रदेश के पौने चार लाख कर्मचारियों और शिक्षकों को उम्मीद थी कि दो साल से ट्रांसफर से बैन नहीं हटा है, लिहाजा नई सरकार इस दिशा में कुछ करेगी। जाहिर है, सरकार बदलने पर सत्ताधारी पार्टी भी अपने लोगों ठीक-ठाक जगहों पर बिठाने के लिए प्रेशर बनाती है। सो, जब भी विष्णुदेव कैबिनेट की बैठक होती थी, सबसे अधिक उत्सुकता कर्मचारियों को रहती थी कि शायद ट्रांसफर से बैन हटाने का फैसला हो जाए। मगर उच्च पदस्थ सूत्रों ने एनपीजी न्यूज को बताया कि इस साल ट्रांसफर से बैन हटना मुश्किल है। आवश्यक ट्रांसफर जरूर होते रहेंगे।
166 अधिकारियों, कर्मचारियों का तबादला
छत्तीसगढ़ सरकार ने कल आधी रात नगरीय प्रशासन विभाग के 166 अधिकारियों, कर्मचारियों का ट्रांसफर किया। विष्णुदेव साय सरकार बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब इतनी बड़ी जंबो लिस्ट निकाली गई हो। अभी तक अधिक-से-अधिक 50-60 का फीगर होता था। इससे अधिक कभी ट्रांसफर नहीं हुआ। मगर नगरीय प्रशासन विभाग एकमुश्त इतने बड़े स्तर पर उलटफेर हो गई। इससे साफ हो गया है कि अब ट्रांसफर से बैन नहीं हटाया जाएगा। जाहिर सी बात है कि अगर बैन हटाना होता तो सरकार इस स्तर पर तबादले नहीं करती। फिर सरकार का फोकस इस समय गुड गवर्नेंस पर है। कोशिश की जा रही कि किस तरह वर्क कल्चर निर्मित किया जाए। जानकारों का कहना है कि ऐसे में ट्रांसफर से बैन हटाने का नतीजा यह होगा कि सरकार की प्रायरिटी बदल जाएगी। ट्रांसफर उद्योग को लेकर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो जाएगा, सो अलग।
मंत्रियों के जरिये समन्वय से
सूत्रों का कहना है कि बैन नहीं हटाया जाएगा मगर जरूरी ट्रांसफर किए जाएंगे। इसके लिए जैसा कि नियम है, मंत्रियों के जरिये प्रस्ताव समन्वय को भेजा जाएगा। समन्वय में मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद ट्रांसफर किए जा सकेंगे। मसलन, नगरीय प्रशासन मंत्री ने नोटशीट समन्वय में भेजी और 166 अधिकारियों, कर्मचारियों की लिस्ट को मंजूरी मिल गई।
समन्वय का प्रॉसेज क्या होता है?
ट्रांसफर पर पाबंदी के दौरान अति आवश्यक तबादले होते रहे, इसलिए समन्वय का रास्ता निकाला गया है। इसमें खासकर, स्वास्थ्य या बीमारी का केस हो या कोई ऐसी परिस्थिति बन गई हो कि कर्मचारी का ट्रांसफर करना जरूरी हो गया हो तो उसे समन्वय के जरिये ट्रांसफर किया जाता है। मुख्यमंत्री समन्वय के हेड होते हैं। उन्हीं के दस्तखत से विशेष केस मानते हुए तबादले किए जाते हैं। मुख्य सचिव समन्वय के सिकरट्री या प्रस्तुतकर्ता अधिकारी होते हैं। समन्वय के जरिये ट्रांफसर कराने का तरीका यह होता है कि जिस विभाग में आप काम कर रहे है, उस विभाग के मंत्री को ट्रांसफर के लिए आवेदन देना होगा। मंत्री अगर उचित समझेंगे तो आवेदन को समन्वय में रखने के लिए भेजेंगे। मंत्री के यहां से आवेदन विभाग के सचिव के पास जाता है। सचिव से रिमार्क होकर मुख्य सचिव और फिर वहां से आगे बढ़ते हुए नोटशीट समन्वय के मुखिया याने मुख्यमंत्री के पास जाती है। मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद फिर विभाग ट्रांसफर आदेश जारी करता है।
मंत्री और सीएम के बीच ट्यूनिंग
समन्वय में ट्रांसफर के लिए मंत्री और मुख्यमंत्री के बीच समन्वय जरूरी है। अगर रिश्ते अच्छे हैं तो मंत्री बड़ी सूची भी अनुमोदित करा लेते हैं। वरना, गुणदोष के आधार पर नाम कट जाते हैं। पिछले डेढ़ दशक में ऐसा ही देखने में आया कि मंत्री की अगर सीएम तक ठीकठाक प्रभाव है तो फिर उनके प्रस्ताव वापिस नहीं लौटते। पिछली सरकार में आमतौर पर ऐसा देखने को मिलता था कि कैबिनेट की मीटिंग में मंत्री लोग दो-चार प्रस्ताव हाथोहाथ लेकर जाते थे और मुख्यमंत्री को नमस्ते कर उनसे दस्तखत करा लेते थे। मुख्यमंत्री भी सोचते हैं कि मंत्री आग्रह कर रहे तो कर दो।