Bilaspur High Court: हत्यारे को फांसी की सजा: कोर्ट ने कहा -अभियुक्त को उसकी गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जाए...

Bilaspur High Court: पत्नी की चरित्र पर आशंका करने वाले पति ने ना तो पति का धर्म निभाया और ना ही पिता का। जिन मासूमों को संरक्षण देना था और उका जीवन बनाना था। शंका के चलते पूरे घर की बलि चढ़ा दी। कोर्ट ने अपने फैसले में आरोपी के खिलाफ काफी कड़ी टिप्पणी करते हुए फांसी की सजा सुनाई है। वह भी जब तक मौत ना आ जाए। खास बात ये कि हत्या के आरोपी के खिलाफ चार बार 302 का मामला दर्ज किया गया है।

Update: 2024-08-13 13:07 GMT

Bilaspur High Court: बिलासपुर। मस्तूरी थाना क्षेत्र के ग्राम हिर्री निवासी 34 वर्षीय आरोपी उमेंद्र केवट को अपनी पत्नी सुक्रिता पर इस बात को लेकर संदेह करता था कि किसी और के साथ अवैध संबंध है। इसे लेकर दोनों के बीच आए दिन विवाद हुआ करता था। एक जनवरी के दिन इसी बात को लेकर दोनों के बीच विवाद हुआ। झगड़ा इस हद तक बढ़ गया कि उमेंद्र केंवट ने अपनी पत्नी के साथ-साथ दो पुत्रियां खुशी (उम्र 05 वर्ष) व लिसा(उम्र 03 वर्ष) तथा पुत्र पवन (उम्र 18 माह) का गला रस्सी से घोंटकर कर मार डाला। अभियुक्त पर भादसं की धारा 302 के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया है।

मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने हत्या के आरोपी को फांसी की सजा सुनाई है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि आरोपी के गर्दन में फांसी का फंदा डालकर तब तक लटकाया जाए जब तक उसकी मौत ना हो जाए।

फांसी की सजा के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह है गाइड लाइन

0 चरम दण्डता के गंभीरता मामलों के सिवाय मृत्युदण्ड की चरम सीमा को प्रणित करना जरूरी नहीं होता है।

0 मृत्युदण्ड का निर्णय लेने के पहले" अपराधी" की अवस्था के साथ-साथ " अपराध" की परिस्थितियों को भी ध्यान में लेना अपेक्षित है।

0 आजीवन कारावास एक नियम है तथा मृत्युदण्ड एक अपवाद है। मृत्युदण्ड तभी अधिरोपित होना चाहिए, जब अपराध की सुसंगत परिस्थितियों के बारे में आजीवन कारावास सर्वथा अपर्याप्त दण्ड प्रतीत होता हो और यदि, और केवल यदि, आजीवन कारावास के दण्ड का विकल्प अपराध की प्रकृति तथा परिस्थितियों और अन्य परिस्थितियों के संबंध में अन्तःकरण से प्रयुक्त न हो सकता है।

0 प्रवर्धक तथा अल्पीकरण करने वाली परिस्थितियों का पक्का चिट्ठा लेखबद्ध होना चाहिए और ऐसा करने में अल्पीकरण करने वाली परिस्थितियों को पूरा महत्व देना होता है तथा इससे पहले की विकल्प प्रयुक्त हो, प्रवर्धक तथा अल्पीकरण करने वाली परिस्थितियों के बीच न्यायपूर्ण संतुलन करना होता है।

0 विरलतम मामलों में जब लोक समाज के सामूहिक अन्तःकरण को इतना आघात पहुंचा है कि वे न्यायिक शक्ति केन्द्र के संधारकों से उनकी व्यक्तिगत राय, जिसका मृत्युदण्ड प्रतिधारण करने की वांछनीयता या अन्यथा से संबंध है, को विचार में लाये बिना मृत्युदण्ड दिये जाने की आशा करेंगे, तब मृत्युदण्ड अधिनिर्णित हो सकता है।

कोर्ट ने अपने फैसले में की कड़ी टिप्पणी

आरोपी ने एक के बाद एक चार करीबी रिश्तेदारों की हत्या की तथा अपने भाई की पत्नी और बेटी की हत्या की कोशिश की और उसने अपराध का कोई पछतावा भी नहीं दिखाया। मामले को सर्वाधिक दुर्लभ मानते हुए अभियुक्त को मृत्युदंड से दंडित किया गया। उच्चतम न्यायालय ने उपरोक्त निष्कर्ष तथा उसके आधारों को उचित पाते हुए मामले मे दिये गये मृत्युदंड को उचित ठहराया ।

फैसले में यह भी कहा

कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि न्यायिक दृष्टांतो के प्रकाश में प्रकरण के तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में विचार किया गया। उक्त न्यायिक दृष्टांतो के आलोक में मात्र हत्या करने का तरीका ही नृशंस हत्या होना नहीं कहा जा सकता। अपितु यह भी देखना है कि किनकी हत्या की गई है।अभियुक्त ने 7 वर्ष पूर्व हुए उसके विवाह तथा उसके वैवाहिक जीवन से उत्पन्न 3 संतान जिसमें सबसे बडी खुशी उम्र 05 वर्ष, लिसा उम्र 03 वर्ष, पवन उम्र 18 माह सहित अपनी पत्नी मृतिका सुक्रिता केंवट उम्र 32 वर्ष की एक के बाद एक कर सबका रस्सी से गला घोंटकर निर्मम हत्या किया। यह कोई ऐसा आकस्मिक कारण नहीं था, जो अभियुक्त को इस जघन्य अपराध को करने का तात्कालिक कारण बनता हो। अभियुक्त ने योजनाबद्ध तरीके से सब से पहले अपनी पत्नी को रात में खाना खाने के बाद घर के बाहर बहाने से पेशाब करने हेतु ले जाकर उसके पेशाब करने के दौरान पीछे से रस्सी से उसका गला घोंटकर हत्या किया। इसके बाद वापस कमरे में आकर छोटे-छोटे अबोध दो बच्चे तथा एक 18 माह का नवजात शिशु को एक-एक करके सबकी रस्सी से गला घोंटकर हत्या किया। अभियुक्त ने हत्या की योजना उस दिन सुबह से ही बनाकर रखा था और सुबह से ही उसने इस उद्देश्य से घर के परछी में लगे हुए रस्सी के टुकडे को काटकर अपने पास रख लिया था।

कोर्ट ने धिक्कारा और निंदा भी की

कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि उसकी अपराधिकता निश्चित ही बर्बरता की पराकाष्ठा है। ऐसे कृत्यों की मिसाल बहुत ही कम मिलती है। इस नृशंस एवं हृदयहीन हत्या को धिक्कारने के लिये कडे से कडे शब्द भी कम पडेंगे। अभियुक्त न तो विकृतचित्त है न ही मानसिक रोगी है। वह करीब 34 वर्ष का होकर बौद्धिकता से परिपक्व मस्तिष्क का है। वह अपने कृत्यों का परिणाम को समझ सकता था। उसके चेहरे पर घृणित कृत्य के लिये पश्चाताप के कोई लक्षण नहीं दिखाई पडते है। अपराध को कम करने वाली कोई परिसीमन कारी परिस्थिति खोजने के पश्चात भी नहीं पायी जाती है।

अतः प्रकरण की समस्त परिस्थितियों एवं उभयपक्षो के तर्कों पर गहराई से मनने करने के उपरांत उपरोक्त लेखबद्ध कारणों से अभियुक्त को आजीवन कारावास की सजा को आरोपित करने के निवेदन को अस्वीकार करते हुए अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता की धारा-302 (चार बार) के अपराध के लिए मृत्युदंड एवं 10000/ के अर्थदंड से दंडित किया जाता है एवं आदेशित किया जाता है कि अभियुक्त को उसकी गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जाए, जब तक उनकी मृत्यु न हो जाए या प्राणान्त न हो जाए।

कौन है फांसी की सजा सुनाने वाले जज

अविनाश कुमार त्रिपाठी मूलतः प्रयागराज उत्तरप्रदेश के रहने वाले है। 2008 बैच के न्यायिक अधिकारी है।जिला अधिवक्ता संघ के अनुसार सिविल मामलो के अच्छे जानकार हैं। शिक्षा- दीक्षा मध्य प्रदेश और प्रयाग राज में हुई।

Tags:    

Similar News