Modern history of Bihar: बिहार का आधुनिक इतिहास; अंग्रेजों का आगमन, स्वतंत्रता संग्राम, जनजातीय विद्रोह और बिहार की राजनैतिक व औद्योगिक प्रगति का पूर्ण विवरण
Modern Bihar History in Hindi: बिहार के आधुनिक इतिहास की शुरुआत सत्रहवीं सदी के उत्तरार्ध से मानी जाती है। 1707 में मुगल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्र शहजादा अजीम को बिहार का शासक घोषित किया गया।
Modern Bihar History in Hindi: बिहार के आधुनिक इतिहास की शुरुआत सत्रहवीं सदी के उत्तरार्ध से मानी जाती है। 1707 में मुगल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्र शहजादा अजीम को बिहार का शासक घोषित किया गया। उसने पटना शहर का नाम बदलकर अजीमाबाद रखा। 1712 के पश्चात बिहार प्रांत को चार अलग-अलग प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित कर दिया गया, जहाँ चार गवर्नर नियुक्त किए गए।
सिख गुरुओं की बिहार में यात्रा और योगदान
सिख धर्म के प्रथम गुरु, गुरुनानक देव ने बिहार के विभिन्न क्षेत्रों – गया, राजगीर, पटना, मुंगेर, भागलपुर और कहलगांव का भ्रमण किया और आध्यात्मिक प्रवचन दिए। सत्रहवीं सदी के अंत में, सिखों के नवें गुरु, गुरु तेग बहादुर, सासाराम और गया होते हुए पटना पहुँचे और यहाँ अपनी गर्भवती पत्नी माता गुजरी को भाई कृपाल चंद की देखरेख में छोड़कर असम की ओर कूच कर गए। पटना में ही 22 दिसंबर 1666 को दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ। वे साढ़े चार वर्ष की आयु तक यहीं रहे, तत्पश्चात आनंदपुर चले गए। पटना साहिब गुरुद्वारा आज भी सिख श्रद्धालुओं का पवित्र तीर्थस्थल है।
सूफी परंपरा और सामाजिक समरसता का संदेश
बिहार की भूमि सूफी संतों के आगमन की साक्षी रही है। शाह महमूद बिहार, सैयद ताजुद्दीन, मखदूम सफ़ीउद्दीन मनेरी (अहमद चिरमपोश) और संत दरिया साहब जैसे महान सूफी संतों ने यहां आध्यात्मिक उपदेश दिए। इन्होंने मानवता, धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक एकता और प्रेमभावना का प्रसार किया।
विदेशी व्यापारियों का आगमन और व्यापारिक विस्तार
मुगल काल में पटना शहर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया था। यहाँ से शोरा, हीरे और संगमरमर का व्यापार किया जाता था। 1620 में ब्रिटिश व्यापारियों ने आलमगंज, पटना में एक फैक्ट्री स्थापित की, जो एक वर्ष बाद बंद हो गई। 1632 में डच व्यापारियों ने और उसके कुछ समय बाद डेनमार्क के व्यापारियों ने भी पटना में व्यापार केंद्र बनाए। 1651 में अंग्रेज व्यापारी पीटर मुंडी ने पुनः पटना में एक फैक्ट्री खोली। पटना का उत्पाद पश्चिम एशिया, मध्य एशिया और अफ्रीका तक निर्यात किया जाने लगा।
अंग्रेजों का बिहार में प्रभुत्व और शासन प्रणाली
मुगल साम्राज्य के पतन के बाद उत्पन्न हुई अराजकता का लाभ उठाकर अंग्रेजों ने बिहार व बंगाल में अपने चहेते गवर्नरों की नियुक्ति शुरू कर दी। मीर कासिम, जो बंगाल का गवर्नर था, ने अंग्रेजों के खिलाफ एक गठबंधन तैयार किया जिसमें अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय शामिल हुए। इन तीनों ने मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध बक्सर के युद्ध में भाग लिया, लेकिन हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने उन्हें पराजित कर दिया।
इस युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को बिहार, बंगाल और उड़ीसा की प्रशासनिक और आर्थिक सत्ता मिल गई। मीर जाफर को पुनः नवाब बना दिया गया, लेकिन अब वह अंग्रेजों का कठपुतली बनकर रह गया। अंग्रेजों ने ‘दीवानी’ प्राप्त कर ली और बिहार से लगान वसूली का अधिकार भी ले लिया। उप-प्रांतपति की नियुक्ति से स्थानीय प्रशासन को सुदृढ़ बनाया गया। 1773 में जगन्नाथ देव के विद्रोह को दबाने के लिए राजमहल और भागलपुर में सैन्य छावनियाँ बनाई गईं।
अंग्रेजों की कर नीति और दमनात्मक कार्यवाहियाँ
बिहार में लगान वसूली के लिए अंग्रेज प्रशासन ने कठोरता बरती। अकाल के दौरान भी राहत नहीं दी गई। 1783 में भयंकर अकाल के बाद पटना में अन्न भंडारण हेतु एक विशाल गोलाकार गोदाम का निर्माण कराया गया। इसका निर्माण 1784-85 में जॉन ऑस्टिन द्वारा कराया गया।
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आंदोलन और जन प्रतिरोध-
वहाबी आंदोलन और ब्रिटिश विरोध
1820 में सैयद अहमद बरेलवी ने वहाबी आंदोलन की शुरुआत की, जो बिहार सहित भारत के कई इलाकों तक फैला। उनकी मृत्यु के बाद पटना के विलायत अली और इनायत अली ने नेतृत्व संभाला। उन्होंने ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों को जारी रखा। इन्हें ही सबसे पहले काला पानी की सजा देकर अंडमान भेजा गया।
युआन-जुआँग जनजातीय विद्रोह
1867 में क्योंझर (झारखंड) के राजा की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उनके विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया, जिससे युआन सरदारों ने विद्रोह कर दिया। रत्न नायक के नेतृत्व में 1868 में और बाद में 1891 में धारणी नायक ने विद्रोह को आगे बढ़ाया।
संथाल विद्रोह और शोषण के खिलाफ संघर्ष
राजमहल क्षेत्र में संथालों को उनकी जमीनों से हटाकर उनकी महिलाओं का शोषण किया गया। इसके विरुद्ध सिद्धू और कान्हू ने विद्रोह किया, जिसे अंग्रेजों ने 1857 के आस-पास दबा दिया। दोनों नेता शहीद हो गए।
मुंडा जनजातीय संघर्ष और बिरसा मुंडा का नेतृत्व
बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1895 से 1901 तक चला यह विद्रोह बिहार के आदिवासी संघर्षों में सबसे सुसंगठित माना गया। मुंडा लोग रांची के आसपास खेती करते थे, लेकिन अंग्रेजों और ईसाई मिशनरियों ने उन्हें विस्थापित करना शुरू किया, जिससे यह संघर्ष भड़क उठा। 9 जून 1900 को बिरसा की मृत्यु के साथ यह विद्रोह समाप्त हुआ।
हो आंदोलन
इसे कोल विद्रोह का भी हिस्सा माना जाता है, झारखंड के प्रमुख क्षेत्रों जैसे राँची, सिंहभूम, हजारीबाग और मानभूम में उभरा एक महत्वपूर्ण जनजातीय संघर्ष था। ‘हो’ जनजाति इस इलाके की मूल और प्राचीन निवासी थी, जिनकी जीवनशैली जंगलों, परंपराओं और स्वतंत्रता से जुड़ी थी। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब इन आदिवासी क्षेत्रों में प्रशासनिक और भू-राजस्व आधारित नियंत्रण बढ़ाना शुरू किया, तब आदिवासी समाज के भीतर गहरी असंतोष की लहर दौड़ पड़ी। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने सिंहभूम पर अधिकार जमा लिया और पारंपरिक जीवन व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करना शुरू कर दिया।
इस ब्रिटिश हस्तक्षेप के विरुद्ध आवाज उठाने वालों में बुद्धो भगत, सिंगराय और सुगी जैसे जननेताओं ने निर्णायक भूमिका निभाई। इन नेताओं ने जनजातीय जनता को संगठित कर विद्रोह का बिगुल बजाया। सन् 1820 में आरंभ हुआ यह आंदोलन 1837 तक लगातार जारी रहा। इस संघर्ष ने न केवल ब्रिटिश शासन को चुनौती दी, बल्कि आदिवासी अस्मिता और अधिकारों के लिए एक ऐतिहासिक नींव भी रखी।
अन्य प्रमुख विद्रोह और उनका प्रभाव
1. नोनिया विद्रोह (1770-1800):
हाजीपुर, तिरहुत, सारण और पूर्णिया में शोरा उत्पादन से जुड़े नोनिया समुदाय ने अंग्रेजों द्वारा शोरा पर नियंत्रण के विरोध में संघर्ष किया, क्योंकि शोरा बारूद निर्माण का महत्वपूर्ण घटक था।
2. लोटा विद्रोह (1856):
मुजफ्फरपुर जिले के कैदियों को पहले पीतल के लोटे मिलते थे, लेकिन अंग्रेजों द्वारा मिट्टी के बर्तनों की व्यवस्था किए जाने पर कैदियों ने विरोध स्वरूप लोटा विद्रोह छेड़ दिया।
3. तमाड़ विद्रोह (1789-1794):
उरांव जनजाति ने जमींदारों के अन्याय और अत्याचारों के खिलाफ तमाड़ क्षेत्र में एक जनआंदोलन खड़ा किया, जो जन असंतोष का प्रतीक बन गया।
4. भूमिज विद्रोह (1832):
वीरभूम क्षेत्र के भूमिज किसानों और जमींदारों ने अत्यधिक कर वसूली और अंग्रेजी दमन के खिलाफ भूमि व सम्मान की रक्षा हेतु आंदोलन आरंभ किया।
5. चेर विद्रोह (1776-1800):
अंग्रेजों ने 1776 में पलामू के चेर शासक छत्रपति राय से उनका दुर्ग मांगा, न देने पर युद्ध हुआ और अंग्रेजों ने युद्ध जीतकर दुर्ग छीन लिया। अंत में 1800 में भूषण सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ चेर विद्रोह की शुरुआत की।
6. सरदारी लड़ाई (1860-1890):
मुंडा और उरांव जनजातियों ने जमींदारों की शोषणकारी नीतियों और पुलिस की बर्बरता के विरुद्ध यह लड़ाई शुरू की, जो लगभग 30 वर्षों तक चली।
7. सफाहोड़ आंदोलन:
लाल हेंब्रन और भगीरथ मांझी के नेतृत्व में आदिवासी समुदाय ने ब्रिटिश शासन और जमींदारों के अत्याचारों के विरुद्ध सफाहोड़ आंदोलन चलाया, जिसे ब्रिटिशों ने बलपूर्वक दबा दिया।
8. ताना भगत आंदोलन (1914):
तानाभगतों ने 1914 में आंदोलन की शुरुआत की। इसमें स्वराज, लगान बहिष्कार और जातीय समता की माँग की गई, और आगे चलकर इस आंदोलन ने असहयोग आंदोलन को मजबूती दी।
स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की भूमिका
भारत में स्वतंत्रता संग्राम की नींव 1857 की क्रांति से रखी गई, जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है। बिहार में इस क्रांति का आरंभ 12 जून 1857 को देवघर जिले के रोहिणी क्षेत्र में हुआ, जहाँ 32वीं इन्फेंट्री रेजीमेंट के मुख्यालय में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। इस दौरान लेफ्टिनेंट नॉर्मन लेसली और ग्रांट लेसली मारे गए। इसके जवाब में मेजर मैक्डोनॉल्ड ने कड़ी कार्रवाई की और तीन विद्रोही सैनिकों को फाँसी पर लटका दिया गया।
पटना विद्रोह और पीर अली की भूमिका
3 जुलाई 1857 को पटना में पीर अली के नेतृत्व में विद्रोह की एक और लहर उठी। जैसे ही पटना में तनाव बढ़ा, कमिश्नर विलियम टेलर ने छपरा, गया, आरा, मुजफ्फरपुर और मोतिहारी से फौज बुलाई। विद्रोहियों का दमन किया गया, पीर अली का घर जला दिया गया और 17 क्रांतिकारियों को फाँसी दी गई।
दानापुर छावनी से चंपारण तक फैलता विद्रोह
25 जुलाई 1857 को दानापुर छावनी की तीन रेजीमेंटों ने विद्रोह कर दिया। उसी दिन मुजफ्फरपुर में अंग्रेज अधिकारियों को मारा गया। 30 जुलाई को सारण और चंपारण में संग्राम छिड़ा। अगस्त में भागलपुर, राजगीर, बिहार शरीफ और गया भी इस संघर्ष की चपेट में आ गए।
वीर कुंवर सिंह का अद्वितीय योगदान
1857 की क्रांति के नायक वीर कुंवर सिंह, जो उस समय 80 वर्ष के थे, जगदीशपुर के जमींदार थे। उन्होंने इस आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई और कई बार अंग्रेजों की सेना को पराजित किया। अंततः 26 अप्रैल 1858 को वे रणभूमि में शहीद हो गए। उनके भाई अमर सिंह ने विद्रोह को आगे बढ़ाया, लेकिन 1859 तक ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को पूरी तरह से दबा दिया।
कंपनी शासन का अंत और अंग्रेजी राज की शुरुआत
1859 तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया और इंग्लैंड की ताजपोशी हुई। इसके बाद सन् 1912 में बंगाल का विभाजन हुआ, जिसमें बिहार और उड़ीसा को मिलाकर एक नया राज्य गठित हुआ। 1916 में पटना उच्च न्यायालय की स्थापना हुई और 1917 में बिहार ने गांधीजी के नेतृत्व में चंपारण आंदोलन के माध्यम से नीलहे किसानों के हक के लिए ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी।
गांधी युग की शुरुआत और चंपारण सत्याग्रह
महात्मा गांधी ने 1917 में बिहार के चंपारण में ब्रजकिशोर प्रसाद, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, और अनुराग नारायण सिन्हा के साथ सत्याग्रह की शुरुआत की। इसका उद्देश्य नील की जबरन खेती और किसानों पर हो रहे अत्याचार को समाप्त करना था। इस आंदोलन की सफलता से गांधीजी को राष्ट्रीय पहचान मिली।
बिहार-उड़ीसा विभाजन और स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका
1935 में बिहार और उड़ीसा को अलग-अलग राज्य घोषित किया गया। इसी दौरान चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिन्हा, जयप्रकाश नारायण और अनुराग नारायण सिन्हा जैसे नेताओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। स्वतंत्रता से ठीक पहले बने बिहार मंत्रिमंडल में श्रीकृष्ण सिन्हा को मुख्यमंत्री और अनुराग नारायण सिन्हा को उपमुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। 1947 में आजादी के बाद बिहार में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसके कारण हजारों मुसलमानों को पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में जाकर बसना पड़ा। यह दौर बिहार के लिए सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण रहा।
भारत सरकार ने 1952 में मौर्य सम्राट अशोक की लाट को देश का राजकीय प्रतीक चिह्न घोषित किया। 1952 से 1957 तक बिहार सरकार के प्रशासनिक कार्यों को पूरे देश में सर्वश्रेष्ठ माना गया। 1960 के दशक में बिहार में बरौनी तेलशोधन कारखाना, हटिया हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन, बोकारो स्टील प्लांट, बरौनी खाद्य संयंत्र, थर्मल पावर प्लांट तथा डेयरी प्रोजेक्ट जैसी कई औद्योगिक परियोजनाएं स्थापित हुईं।
जेपी आंदोलन और नई राजनीतिक दिशा
1975 से 1977 के आपातकाल के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने बिहार से ही जेपी आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन ने देश की राजनीति को नई दिशा दी और इंदिरा गांधी की सत्ता को चुनौती दी। इसके परिणामस्वरूप भारत में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई। 2000 के दशक की शुरुआत में बिहार को एक और विभाजन का सामना करना पड़ा, जब झारखंड को अलग राज्य के रूप में गठित किया गया। इसके बाद बिहार ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर अनेक उतार-चढ़ाव देखे।