सहमति से रिलेशन बनाया तो गर्भपात की अनुमति नहीं, 17 साल की लड़की की याचिका हाई कोर्ट ने की खारिज
औरंगाबाद। 17 साल की नाबालिग युवती ने अपने प्रेमी के साथ लगातार संबंध बनाया, जिससे वह गर्भवती हो गई। 24 सप्ताह की गर्भवती होने के बाद युवती और उसकी मां ने गर्भपात करवाने के लिए अदालत में याचिका लगाई। सुनवाई के बाद मुंबई हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने सहमति से बने संबंध से गर्भवती हुई युवती को गर्भपात की अनुमति देने से इंकार कर दिया।
17 वर्षीया लड़की ने अपनी मां के माध्यम से मुंबई हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ में याचिका दायर की थी। जिसमे यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत खुद को 1 बच्ची होने का दावा करते हुए गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की थी। लड़की 24 सप्ताह की गर्भवती है। मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनेंसी एक्ट के तहत मां या बच्चे के जीवन एवं स्वास्थ्य के लिए खतरा है तब भी 20 सप्ताह से अधिक के गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए अदालत के अनुमति की आवश्यकता होती है।
सुनवाई के दौरान अदालत के सामने यह बात आई कि लड़की दिसंबर 2022 से एक लड़के के साथ रिश्ते में थी। दोनों के बीच सहमति से कई बार संबंध बने। लड़की को इसके बारे में पूरी जानकारी थी। पीड़ित लड़की और लड़के के बीच कई बार बने संबंधों के चलते लड़की को गर्भवती होने की आशंका थी। उसने खुद प्रेगनेंसी किट खरीद कर अपना प्रेगनेंसी टेस्ट किया, और उसे फरवरी में ही अपने गर्भ धारण करने का पता चल गया था। सारे तथ्यों के संज्ञान में आने के बाद डिवीजन बेंच के जस्टिस रविंद्र घुगे और जस्टिस वाईजी खोबरागड़े ने कहा कि पीड़िता इसी वर्ष 18 वर्ष की होने वाली है, वह व्यस्क है और उसे पूरी जानकारी है। यदि उसे बच्चे को जन्म नहीं देना था तो पहले भी वह गर्भपात की इजाजत मांग सकती थी,पर उसने ऐसा नहीं किया। बेंच ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता पीड़िता निर्दोष नहीं है और उसकी समझ पूरी तरह परिपक्व थी। यदि उसे गर्भधारण करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी तो वह गर्भावस्था की पुष्टि के तुरंत बाद गर्भपात की अनुमति मांग सकती थी।
याचिका में दावा किया गया था कि गर्भावस्था से याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होगा। दरअसल याचिकाकर्ता भविष्य में मेडिकल की तैयारी करना व डॉक्टर बनना चाहती है। इसके लिए वह तैयारी में लगी हुई है। बच्चे को जन्म देने से नाबालिग के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ेगा। अदालत ने इस मामले में मेडिकल बोर्ड की भी राय भी मांगी थी।
मेडिकल बोर्ड ने अपनी राय में कहा कि भ्रूण में कोई विसंगति नहीं है, और उसका विकास सामान्य है। इस अवस्था में जबरन प्रसव कराया गया और उसके बाद भी बच्चा जीवित पैदा होता है तो इससे बच्चा अविकसित पैदा होगा, जिसमें विकृति की संभावना होगी। यानी अगर इस चरण में गर्भपात करा दिया जाए तो पैदा होने वाले बच्चे में जीवन के लक्षण दिखाई देंगे, लेकिन वह स्वतंत्र रूप से जीवित रहने में सक्षम नहीं होगा। बेंच ने कहा कि वह गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने की इच्छुक नहीं है क्योंकि किसी भी मामले में, बच्चा जीवित पैदा होगा और प्राकृतिक प्रसव केवल 15 सप्ताह दूर है।
अदालत ने कहा कि यदि बच्चा गर्भावस्था की पूर्ण अवधि पूरा कर पैदा होगा तो उसमें कोई विकृति नहीं होगी और विकसित बच्चा पैदा होगा। जिससे काफी संभावना रहेगी कि भविष्य में कोई इसे गोद ले सकता है। यदि लड़की बाद में खुद बच्चे को गोद लेने की इच्छा रखती है तो वह भी ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है। अदालत ने कहा कि लड़की को किसी सामाजिक संगठन में रखा जा सकता है जो ऐसी गर्भवती महिलाओं के बच्चे को जन्म देने तक देखभाल करता है। इसके साथ ही अदालत ने गर्भपात के लिए लगी याचिका खारिज कर दी।