Hareli Tihar: छत्तीसगढ़ का पहला तिहार, जहां लोग करते हैं कृषि उपकरणों, बैलों और औजारों की पूजा...बच्चे,युवा, बुजुर्ग चढ़ते है गेड़ी, जाने महत्व...

Update: 2023-07-16 10:00 GMT

Hareli Tihar रायपुर। छत्तीसगढ़ का पहला तिहार हरेली है। हरेली के बाद से ही बाकी त्योहारों की शुरुआत होती है। इसे हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। हरेली का मतलब हरियाली होता है। छत्तीसगढ़ वासी इस दिन पूरे विश्व में हरियाली छाई रहे और हमेशा सुख शांति बनी रहे ऐसा कामना करते हुए इस त्यौहार को मनाते है। पूरे छत्तीसगढ़ में यह त्योहार (17 जुलाई) सोमवार को मनाया जाएगा। इस त्योहार के पहले किसान अपने अपने खेतों की बोआई रोपाई का काम पूरा कर लेते हैं। इसके बाद हरेली तिहार के दिन सभी कृषि उपकरणों, बैलों, हल और औजारों को साफ करके उसकी पूजा करते हैं।

जाने महत्व

दरसअल, हरेली छत्तीसगढ़ के लिए बहुत ही खास है और हमारे अन्नदाताओं के असीम मेहनत का सम्मान है। ग्रामीण इस पर्व को बड़े ही उत्साह के साथ मानते है। भगवान को खुश करने छत्तीसगढ़िया व्यंजन बना कर भोग लगाया जाता हैं। वहीं, इस मौसम में फैलने वाले बैक्टीरीया-वायरस और मौसमी कीड़े मकोड़े से बचने घरों के दरवाजे पर नीम की पत्तीयां लगाई जाती हैं, जो हवा को शुद्ध करती है। गांव में पौनी-पसारी जैसे राऊत व बैगा हर घर के दरवाजे पर नीम की डाली खोंचते हैं। गांव में लोहार अनिष्ट की आशंका को दूर करने के लिए चौखट में कील लगाते हैं। यह परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है।

किसान भाई इस दिन पशुधन आदि को नहला-धुला कर पूजा करते हैं। गेहूं आटे को गंूथ कर गोल-गोल बनाकर अरंडी या खम्हार पेड़ के पत्ते में लपेटकर गोधन को औषधि खिलाते हैं। ताकि गोधन को विभिन्न रोगों से बचाया जा सके। 

औजारों की पूजा

वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।

बच्चे और युवा गेड़ी चढ़कर लेते है आनंद

हरेली तिहार पर बच्चे और युवा गेड़ी चढ़कर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। फिर नारियल बूच की रस्सी से बांध़कर दो खांचे बनाए जाते है। यह खांचे पैर दान का काम करता है जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को संगीतमय बना देती है। 

छत्तीसगढ़ी व्यंजन से पूजा और खेल

लकड़ी से बनी गेड़ी गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि से बचाव में भी काफी उपयोगी होती है। गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला, कुदारी, सब्बल, गैती आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुलगुल भजिया व गुड़हा चीला का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा भी की जाती है। शाम को मनोरंजन के लिए गांवो में युवा वर्ग, बच्चे गांव के मैदान में नारियल फेंक, कबड्डी आदि कई तरह के खेल खेलते हैं। बहु-बेटियां सावन झूला, बिल्लस, खो-खो, फुगड़ी आदि खेल का आनंद लेती हैं।

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