CJI Chandrachud: चंद्रचूड़ का सीजेआई के रुप में आज अंतिम वर्किंग डे: इस ऐतिहासिक मामले में सुना सकते हैं फैसला...
CJI Chandrachud: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का आज अंतिम वर्किंग डे है। आज वे एक बड़े मामले में फैसला सुना सकते हैं। चंद्रचूड़ ने 2022 में सीजेआई का पदभार ग्रहण किया था।
CJI Chandrachud: एनपीजी न्यूज डेस्क
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे, लेकिन 9 और 10 तारीख को शनिवार- रविवार की वजह से कोर्ट में छु्ट्टी रहेगी, ऐसे में चंद्रचूड़ का सीजेआई के रुप में आज अंतिम दिन है। चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ आज एक बड़े और ऐतिहासिक मामले में आज फैसला सुना सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में आज जिस ऐतिहासिक मामले में फैसला सुनाया जा सकता है वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से जुड़ा है। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की 8 जजों की पीठ कर रही है। इस मामले की सुनवाई की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। सीजेआई की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने फरवरी में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अलीगढ़ मुस्लिम विवि के मामले की सुनवाई कर रही सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता, जेबी पादीवाला, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं। यह मामला अलीगढ़ मुस्लिम विवि सहित अन्य शैक्षणिक संस्थानों को अल्प संख्यक संस्थान का दर्जा दिए जाने से जुड़ा है। अपने फैसले में सीजीआई की अध्यक्षता वाली पीठ यह भी तय करेगी कि ऐसी कोई शिक्षण संस्था जिसे संसद के जरिये बनाया गया है, क्या उसे अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है। बता दें कि मुस्लिमों के शैक्षणिक उत्पान के लिए 1875 में अलीगढ़ मुस्लिम कालेज की स्थापना सर सैय्यद अहमद खान ने की थी। 1875 के इस कालेज को 1920 में विश्वविद्यालय का दर्जा मिल गया।
जानिये.. क्या है विवाद
दरअसल अलीगढ़ मुस्लिम विवि की स्थापना एक अल्प संख्यक शिक्षण संस्थान के रुप में की गई थी, लेकिन बाद में उसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया गया। केंद्रीय विवि का दर्जा मिलते ही कहा गया कि अब इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। 1967 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने भी माना कि केंद्रीय विवि को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देशभर में विरोध किया गया। इसके बाद 1981 में विवि को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिए एक संशोधन किया गया। इस संशोधन को 2005 में इलहाबाद हाईकोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। 2006 में फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तब से इस पर सुनवाई चल रही थी।