Bilaspur High Court: वकील की राय से संस्था को हुआ वित्तीय नुकसान: वकील के खिलाफ एफआईआर, हाईकोर्ट ने कहा..
Bilaspur High Court:
Bilaspur High Court: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि किसी वकील की राय ने किसी व्यक्ति या संस्था को वित्तीय नुकसान पहुंचाया, उसके खिलाफ मुकदमा चलाने का आधार नहीं हो सकता। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि इस बात के कुछ सबूत होने चाहिए कि उक्त कृत्य संस्था को धोखा देने के एकमात्र इरादे से किया गया और इसमें अन्य साजिशकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी थी। बैंक से लोन लिए जाने के एक मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद पाया कि याचिकाकर्ता ने केवल सर्च रिपोर्ट दी थी तथा रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो प्रतिवादी बैंक को धोखा देने के लिए उसके और अन्य सह-आरोपी व्यक्तियों के बीच सक्रिय मिलीभगत का संकेत देता हो।
यह टिप्पणी खंडपीठ ने रामकिंकर सिंह नामक पेशे से वकील द्वारा धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर याचिका को स्वीकार करते हुए की। जिसमें उनके खिलाफ आरोपपत्र और एफआईआर सहित पूरी आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दी गई। दरअसल याचिकाकर्ता को बेमेतरा में भारतीय स्टेट बैंक के पैनल वकील के रूप में एक मामले में आरोपी बनाया गया था। याचिका के मुताबिक याचिकाकर्ता ने बैंक से लोन लेने वाले व्यक्ति द्वारा गिरवी रखी गई कृषि भूमि के लिए गैर-भार प्रमाण पत्र जारी किया था। इसका उपयोग बाद में 3 लाख रुपए के किसान क्रेडिट कार्ड लोन को सुरक्षित करने के लिए किया गया। बाद में उधारकर्ता लोन चुकाने में विफल रहा और जांच से पता चला कि भूमि के दस्तावेज (जिसके आधार पर लोन दिया गया था) जाली थे।
फर्जी दस्तावेजों को प्रमाणित करने का आरोप
अगस्त 2018 में एसबीआई के शाखा प्रबंधक ने उधारकर्ता द्वारा धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की। पुलिस द्वारा दायर पूरक आरोप पत्र में याचिकाकर्ता को मामले में आरोपी बनाया गया, जिसमें उस पर फर्जी दस्तावेजों को प्रमाणित करने का आरोप लगाया गया। इससे पहले याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका दायर करके अपने खिलाफ आरोप तय करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। इसे खारिज कर दिया गया था। हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि किसी वकील के खिलाफ दायित्व तभी बनता है, जब वकील बैंक को धोखा देने की योजना में सक्रिय भागीदार हो। शासन की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, क्योंकि उसने जमीन की झूठी सर्च रिपोर्ट तैयार की थी। बैंक के वकील ने भी शासन के तर्कों का समर्थन किया।