Bilaspur High Court: कर्मचारियों के लिए नजीर बनेगा यह फैसला: आनंद मार्ग की वजह से बर्खास्‍त अब्दुल रहमान को हाईकोर्ट से मिली राहत: 25 साल तक लड़ा मुकदमा, आखिरकार मिला न्याय

Bilaspur High Court: जस्टिस गौतम भादुड़ी ने अपने फैसले में लिखा है कि जब किसी सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी, अनिवार्य सेवानिवृत्ति को हाईकोर्ट से रद कर दिया जाता है। याचिकाकर्ता को बिना किसी अतिरिक्त जांच के बहाली का आदेश दिया जाता है, इन परिस्थितियों में वह सेवा से बाहर होने की अवधि का पूरा वेतन-भत्ता और अन्य लाभ पाने का हकदार होता है।

Update: 2024-08-06 06:13 GMT

Bilaspur High Court: बिलासपुर। हाईकोर्ट का फैसला जो सरकारी कर्मचारियों के लिए बनेगा नजीर। जस्टिस गौतम भादुड़ी ने अपने फैसले में लिखा है कि जब किसी सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी, अनिवार्य सेवानिवृत्ति को हाईकोर्ट से रद कर दिया जाता है। याचिकाकर्ता को बिना किसी अतिरिक्त जांच के बहाली का आदेश दिया जाता है, इन परिस्थितियों में वह सेवा से बाहर होने की अवधि का पूरा वेतन-भत्ता और अन्य लाभ पाने का हकदार होता है। जल संसाधन विभाग के इंजीनियर इन चीफ ने याचिकाकर्ता कर्मचारी को आनंद मार्ग से संबंद्ध होने का आरोप लगाते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया था। इसके खिलाफ उसने मध्यप्रदेश ट्रिब्यूनल में मामला दायर किया था मामला। छत्तीसगढ़ राज्य बनने और हाईकोर्ट की स्थापना के बाद ट्रिब्यूनल ने प्रकरण को हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया था।

अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान यह मामला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले का था। जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता कार्यालय, महानदी कछार ने राजनांदगांव निवासी अब्दुल रहमान अहमद जो ट्रेसर के पद पर काम कर रहे थे। आनंद मार्ग से संबंद्ध होने का आरोप लगाते हुए 1991 में सेवा से बर्खास्त कर दिया था। मध्यप्रदेश राज्य प्रशासनिक अधिकरण ने मुख्य अभियंता के आदेश को रद करते हुए सेवा में बहाली का आदेश दिया था। जल संसाधन विभाग ने ट्रिब्यूनल के फैसले को मानते हुए कर्मचारी की सेवा में बहाली तो कर दी पर 1991 से 1999 का वेतन व अन्य लाभ नहीं दिया। आठ साल के बकाया राशि के लिए उसने एक बार फिर ट्रिब्यूनल का रुख किया।

ट्रिब्यूनल में सुनवाई प्रारंभ हुई थी कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की घोषणा हो गई। बिलासपुर में हाई कोर्ट की स्थापना के बाद जबलपुर हाई कोर्ट और मध्यप्रदेश ट्रिब्यूनल से प्रकरणों की छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में वापसी हुई। अब्दुल रहमान का मामला भी छग हाईकोर्ट आ गया। 25 साल बाद अब जाकर हाईकोर्ट का फैसला आया है। देर से ही सही याचिकाकर्ता को राहत मिली है।

अवमानना याचिका के रुप में हुई सुनवाई

मध्यप्रदेश ट्रिब्यूनल ने प्रकरण छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट स्थानांरित होने के बाद इसे अवमानना याचिका के रूप में रजिस्टर्ड किया गया और सुनवाई प्रारंभ की गई। सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से जवाब पेश करने के लिए ला अफसरों की उपस्थित ना होने पर कोर्ट ने इसे एकतरफा निराक़त कर दिया। कोर्ट के आदेश के बाद भी जब याचिकाकर्ता को बेकवेजज नहीं मिला तब उसने दोबारा वर्ष 2006 में अपने अधिवक्ता के माध्यम से याचिका दायर की। मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी के सिंगल बेंच में हुई। जस्टिस भादुड़ी ने याचिका को स्वीकार करते हुए लंबित वेतन व अन्य भत्ते का भुगतान करने का निर्देश राज्य शासन को दिया है।

ये है मामला

राजनांदगांव निवासी अब्दुल रहमान अहमद की नियुक्ति 31 अगस्त 1989 को जल संसाधन विभाग के तहत मुख्य अभियंता कार्यालय, महानदी कछार में ट्रेसर के पद पर हुई थी। 16 अक्टूबर 1989 को उनकी सेवाएं मुख्य अभियंता कार्यालय से अधीक्षण अभियंता कार्यालय में स्थानांतरित कर दी गई। 19 अप्रैल 1991 को प्रमुख अभियंता के आदेश से चरित्र प्रमाण पत्र का सत्यापन किया गया। प्रमाण पत्र के सत्यापन के आधार पर आनंद मार्ग संस्था का सदस्य होने का आरोप लगाते हुए सेवामुक्त कर दिया गया।

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