Bastar Dussehra Festival in Hindi: दुनिया का ऐसा दशहरा जहां रावण नहीं जलता, 75 दिन चलता है पर्व और होती है देवी की आराधना! जानिए Bastar Dussehra से जुड़ी परंपराएं

Cultural Power of Bastar Tribes: बस्तर के आदिवासी समाज में देवी-देवताओं की गहरी आस्था है, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है। ये देवी-देवता काल्पनिक लग सकते हैं, परंतु इनके प्रति आदिवासियों की निष्ठा अटूट है।

Update: 2025-07-19 16:05 GMT

Cultural Power of Bastar Tribes: बस्तर के आदिवासी समाज में देवी-देवताओं की गहरी आस्था है, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है। ये देवी-देवता काल्पनिक लग सकते हैं, परंतु इनके प्रति आदिवासियों की निष्ठा अटूट है। यह समाज भले ही भौतिक संसाधनों में पिछड़ा हो, लेकिन भावनात्मक रूप से समृद्ध है। बस्तर दशहरा इसी भावनात्मक और सांस्कृतिक ताकत का प्रतीक पर्व है।

धर्म और विश्वास की जड़ें | Roots of Faith and Religion

बस्तर के लोग धर्म को अपनी लाचारी नहीं बल्कि आशा की डोर मानते हैं। वे अपने भविष्य को उज्जवल मानते हुए देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। यह श्रद्धा ही उनके जीवन की ऊर्जा बन जाती है, जो उन्हें कठिन परिस्थितियों में भी उत्सव मनाने की प्रेरणा देती है।


बस्तर दशहरा में रावण वध नहीं होता | No Ravana Dahan in Bastar Dussehra

बस्तर दशहरा पारंपरिक दशहरे से अलग है। जहां देशभर में रावण दहन होता है, वहीं बस्तर में देवी दन्तेश्वरी की पूजा होती है। यह पर्व 75 दिनों तक चलता है और इसमें रावण का कोई स्थान नहीं होता। यह शक्ति पूजा का पर्व है, जहां शिव और शक्ति की उपासना की जाती है।


इतिहास में बसा बस्तर दशहरा | Historical Origins of Bastar Dussehra

बस्तर दशहरे की शुरुआत 1408 ई. में चालुक्य वंश के राजा पुरुषोत्तम देव ने की थी। उन्होंने जगन्नाथपुरी यात्रा की और वहां से भगवान जगन्नाथ का रथ बस्तर लाए। इसके बाद से रथ यात्रा और मां दन्तेश्वरी की पूजा इस पर्व की परंपरा बन गई। राजा को ‘लहुरी रथपति’ की उपाधि भी मिली।

रथ निर्माण की परंपरा | Traditional Rath Making Ceremony

बस्तर दशहरे में हर साल दो विशाल रथ बनाए जाते हैं—एक चार पहियों वाला फूल रथ और दूसरा आठ पहियों वाला विजय रथ। रथों के निर्माण में तिनसा और साल की लकड़ी का उपयोग होता है। ये रथ बारी-बारी से हर साल बदले जाते हैं। रथ निर्माण की पूरी प्रक्रिया एक धार्मिक अनुष्ठान होती है।

पाठ जात्रा और डेरी गड़ाई | Path Jatra and Dera Gadai Rituals

दशहरा पर्व की शुरुआत श्रावण अमावस्या से होती है, जिसे पाठ जात्रा कहते हैं। इसमें रथ निर्माण के लिए लकड़ी का पहला टुकड़ा मंदिर लाया जाता है और उसकी पूजा होती है। इसके बाद डेरी गड़ाई रस्म होती है, जिसमें दो लंबी लकड़ियों को धार्मिक रीति से जमीन में स्थापित किया जाता है।

काछिनगादी: रण देवी की आराधना | Kachhingadi: Worship of Battle Goddess

बस्तर दशहरा की शुरुआत काछिन देवी की आराधना से होती है। एक बालिका पर देवी का आवेश आता है और उसे कांटों की गद्दी पर बैठाया जाता है। यह संदेश होता है कि कठिनाइयों में भी अडिग रहो। देवी की अनुमति के बाद ही दशहरा विधिवत प्रारंभ होता है।

रैला देवी की करुण कथा | Emotional Tale of Raila Devi

काछिन पूजा के बाद रैला देवी की पूजा होती है, जिनका कोई मंदिर नहीं है। मिरगान जाति की महिलाएं इस रस्म को पारंपरिक गीतों के साथ निभाती हैं। रैला देवी से दशहरा के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति मांगी जाती है।

कलश स्थापना और ज्योति कलश | Kalash Sthapana and Jyoti Kalash

बस्तर दशहरा में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। नवरात्र के अवसर पर भक्त दन्तेश्वरी मंदिर और अन्य पंडालों में ज्योति कलश जलाते हैं। इन ज्योतियों को देश ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु जलाने आते हैं।

जोगी बिठाई की अनोखी परंपरा | Unique Ritual of Jogi Bithai

दशहरा के दौरान एक हल्बा जाति का व्यक्ति 9 दिन तक योगासन की मुद्रा में गड्ढे में बैठता है। उसे "जोगी" कहा जाता है। यह परंपरा आज भी सिरहासार में जीवित है। जोगी केवल फलाहार करता है और पूरे पर्व की सफलता के लिए उपवास रखता है।



फूल रथ परिक्रमा | Phool Rath Procession

आश्विन शुक्ल द्वितीया से सप्तमी तक फूल रथ की परिक्रमा होती है। यह रथ फूलों से सजा होता है और हजारों लोग इसे खींचते हैं। यह परिक्रमा भक्तों के उत्साह और आस्था का जीवंत प्रमाण है। पनारा समाज की महिलाएं इस रथ की नजर भी उतारती हैं।

महाष्टमी पूजा और श्रद्धा का संगम | Mahaashtami Puja and Devotion

अष्टमी तिथि पर देवी महागौरी की पूजा होती है। शहर के मंदिरों में हजारों की संख्या में भक्त पूजा और हवन में भाग लेते हैं। मंदिरों में आस्था और भक्ति का वातावरण छाया रहता है।

निशा जात्रा: बलि की रहस्यमयी रस्म | Nisha Jatra: Mysterious Ritual of Sacrifice

अष्टमी की रात को विशेष पूजा होती है जिसमें देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि दी जाती है। बकरा, कुम्हड़ा और मछली की बलि आज भी दी जाती है। यह रस्म रियासत काल से चली आ रही है और श्रद्धालु बड़ी संख्या में इसे देखने आते हैं।

कुंवारी पूजा की दिव्यता | Sacredness of Kanya Pujan

नवमी पर नौ कुंवारी कन्याओं और एक बालक की पूजा होती है। यह पूजन मां दुर्गा के नौ रूपों की प्रतीक होती हैं और उन्हें भोजन कराकर आशीर्वाद लिया जाता है। इस पूजा का धार्मिक और सामाजिक महत्व अत्यधिक है।

जोगी उठाई: साधना का समापन | Jogi Uthai: Completion of Spiritual Practice

नवमी के दिन जोगी की साधना पूर्ण होती है। पूजा के बाद वह गड्ढे से उठता है और अपने स्थान पर पुनः खांडा स्थापित करता है। यह रस्म दशहरे की सफलता की प्रतीक होती है।

मावली परघाव – The Grand Welcome of Goddess Mavli

बस्तर दशहरा के महत्वपूर्ण आयोजन में मावली देवी की अगुवानी एक पवित्र परंपरा है। देवी दंतेश्वरी के निमंत्रण पर मावली डोली में सवार होकर दंतेवाड़ा से जगदलपुर पधारती हैं। इस स्वागत को परंपरागत भाषा में 'परघाव' कहा जाता है। देवी मावली के स्वागत में राजपरिवार, राजगुरु, राजपुरोहित और जनप्रतिनिधि शामिल होते हैं। बस्तर क्षेत्र में मावली के कई मंदिर स्थित हैं जैसे दंतेवाड़ा, नारायणपुर, छोटे देवड़ा, कौड़ानार, मधोता, सिवनी और जगदलपुर। नारायणपुर में मावली देवी के नाम पर विशाल मेला भी आयोजित होता है। मावली को बस्तर अंचल में प्रमुख देवी के रूप में पूजा जाता है और इन्हें विभिन्न नामों से पुकारा जाता है।


भीतर रैनी – The Victory Chariot Ritual of Vijayadashami

विजयादशमी के दिन भीतर रैनी रस्म के अंतर्गत देवी का विजय रथ निकाला जाता है। इस रथ में देवी के छत्र और खड़्ग को प्रतिष्ठित किया जाता है। रथ आठ लकड़ी के विशाल पहियों वाला होता है और इसका निर्माण पारंपरिक तकनीकों से किया जाता है। यह रथ कोड़ेनार और किलेपाल के आदिवासियों द्वारा खींचा जाता है जो इसे अपना पारंपरिक अधिकार मानते हैं। रात को रथ को चोरी से उठाकर कुम्हड़ाकोट ले जाया जाता है, जहां देश के विभिन्न हिस्सों से आए देवी-देवता एकत्र होते हैं। यहां नवाखानी रस्म के तहत देवी को नए अन्न का भोग अर्पित किया जाता है।

काछिन जात्रा – Farewell Ritual of Goddess Kachhin

काछिन जात्रा देवी काछिन को विदाई देने की परंपरा है। भंगाराम चौक स्थित काछिनगुड़ी में देवी की पूजा-अर्चना कर बलि दी जाती है। इसके पश्चात देवी को कृतज्ञता स्वरूप सम्मानित किया जाता है। इस जात्रा में देवी के प्रतीक चिह्नों को साथ लाया जाता है और सिराहा उनके साथ उपस्थित होते हैं। पास के तालाब के समीप विशेष स्थल पर यह आयोजन होता है।

मुरिया दरबार – Tribal Assembly and Governance

मुरिया दरबार की शुरुआत 8 मार्च 1876 को हुई थी। यह दरबार बस्तर के मूल निवासियों – मुरिया आदिवासियों – का प्रतिनिधित्व करता है। दरबार में मांझी, मुखिया, कोटवार और अन्य प्रतिनिधि भाग लेते हैं और अपने क्षेत्रों की समस्याओं पर चर्चा करते हैं। रियासत काल में यह दरबार न्यायिक प्रक्रिया का मुख्य मंच होता था। आज भी यह परंपरा जीवित है और जनता की भागीदारी सुनिश्चित करती है।

कुटुम जात्रा – Farewell to Visiting Deities

दशहरा के समापन से पहले आयोजित कुटुम जात्रा में अन्य ग्राम देवी-देवताओं को विदाई दी जाती है। पूजा-अर्चना, बलि, वस्त्र और भेंट के साथ सम्मानित कर उन्हें बिदा किया जाता है। इस रस्म में राज्य की समृद्धि और सुख की कामना की जाती है तथा आयोजनों के दौरान हुई भूलों के लिए क्षमा मांगी जाती है।

दंतेश्वरी एवं मावली की विदाई – Danteshwari and Mavli's Respectful Departure

दंतेश्वरी और मावली मांई की विदाई दशहरा पर्व का अंतिम और सबसे भावनात्मक चरण होता है। राजपरिवार, राजपुरोहित, राजगुरु, पुजारी और नागरिकगण मिलकर शोभायात्रा के रूप में डोली और छत्र के साथ देवी को विदा करते हैं। पुलिस बैंड की धुनों और सशस्त्र बल की सलामी के बीच देवी को सम्मानपूर्वक विदाई दी जाती है।


श्रम और सहकार का उत्सव – Symbol of Collective Labour and Harmony

बस्तर दशहरा 75 दिन तक चलने वाला विश्व का सबसे लंबा त्योहार है। इसका केंद्रबिंदु विशाल लकड़ी का रथ है जिसे पूरी तरह स्थानीय आदिवासियों द्वारा परंपरागत कौशल से निर्मित किया जाता है। रथ निर्माण और संचालन पूरी तरह ग्रामवासियों में बंटा होता है। यह रथ तकनीकी और सांस्कृतिक दृष्टि से अद्भुत माना जाता है।

भीतर रैनी और बाहर रैनी के अवसर पर रथ की परिक्रमा करवाई जाती है, जिसमें अनुशासन, एकता और सामूहिक श्रम की भावना का परिचय मिलता है। कोड़ेनार-किलेपाल परगना के माड़िया आदिवासी रथ खींचने की जिम्मेदारी निभाते हैं। इस आयोजन में हर आम आदिवासी स्वयं को पर्व का अभिन्न हिस्सा मानता है। यही सहभागिता और समर्पण बस्तर दशहरा को विशिष्ट बनाता है।

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