Delhi News: पति से अलग रह रही प्रेगनेंट महिला को 23 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति, जानें HC ने क्यों दिया आदेश
Delhi News: पति से अलग रह रही 31 साल की गर्भवती महिला को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने महिला को 23 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति दे दी है। मामले की सुनवाई करते हुए जज सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि एम्स के मेडिकल बोर्ड ने राय दी है कि भ्रूण सामान्य हालत में है और उसका सुरक्षित गर्भपात कराया जा सकता है।
Delhi News: पति से अलग रह रही 31 साल की गर्भवती महिला को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने महिला को 23 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति दे दी है। मामले की सुनवाई करते हुए जज सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि एम्स के मेडिकल बोर्ड ने राय दी है कि भ्रूण सामान्य हालत में है और उसका सुरक्षित गर्भपात कराया जा सकता है। कोर्ट ने महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह अपने पति से अलग हो गई है और इसलिए वह उसके बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती। जानकारी के मुताबिक महिला ने पति से तलाक के लिए आवेदन दे रखा है। महिला ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के प्रावधानों के तहत कोर्ट से गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी। जिसके बाद अदालत ने एम्स से इस संबंध में एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने को कहा था और पूछा था कि क्या गर्भपात कराना महिला की सेहत के लिए किसी प्रकार से नुकसान पहुंचाने वाला तो नहीं होगा।
याचिका में महिला ने कहा था कि वह अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती। गर्भपात का फैसला करना बहुत कठिन था। हालांकि पति का कहना था कि वह साथ रहने के लिए तैयार था और सुलह की भी कोशिश की। अदालत को ये भी बताया गया कि महिला ने अपने पति के खिलाफ पुलिस की महिला अपराध शाखा में शिकायत दर्ज करा रखी है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, महिला की शादी इसी साल मई महीने में हुई थी। महिला का कहना है कि जून में उसे गर्भावस्था के बारे में पता चला था। उसने याचिका में आरोप लगाया है कि उसकी ससुराल में उसके पति ने शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित किया। याचिका में कहा गया है कि उसके पति ने जुलाई में उसके साथ शारीरिक उत्पीड़न किया। अगस्त में जब गर्भवती थी तब भी प्रताड़ना जारी रही। जिसके बाद पीड़िता अपने माता-पिता के घर आ गईं।
हाईकोर्ट ने दिया SC का हवाला
कोर्ट ने याचिका में महिला के पति को भी एक पक्ष बनाया था। गुरुवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता महिला और उसका पति दोनों कोर्ट में मौजूद थे। पूरे मामले में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि यह प्रत्येक महिला का विशेषाधिकार है कि वह अपने जीवन का मूल्यांकन करे। अदालत की राय थी कि जब एक महिला अपने साथी से अलग हो जाती है तो कई परिस्थितियों में बदलाव आ सकता है। उसके पास बच्चे को पालने के लिए आर्थिक संसाधन का स्रोत निश्चित नहीं रह जाता।