SDM की लापरवाही ने कटघोरा में बिगाड़े हालात या फिर पुलिस की निष्क्रियता का लोग भुगत रहे हैं खामियाजा…आखिर कटघोरा में कोरोना पसरने का जिम्मेदार कौन?
कोरबा 13 अप्रैल 2020। ….आखिर क्यों कटघोरा में हालात बिगड़ गये? क्या कटघोरा के अधिकारियों की सुस्ती ने बिगाड़ा खेल? या फिर प्रशासन और पुलिस के बीच कार्डिनेशन का अभाव था? ऐसे सवाल कोरबा के एसपी अभिषेक मीणा के उस बयान के बाद उठे हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि जमातियों के मस्जिद में छुपे होने की जानकारी ही उन्हें 30 मार्च को मिली, जबकि कटघोरा के प्रशासनिक अघिकारियों के पास जमातियों का आंकड़ा 23 मार्च से ही उपलब्ध था। उस दौरान प्रशासन की तरफ से दावा किया भी गया था कि सभी जमाती क्वारंटाईन में हैं। ऐसे में एसपी का ये कहना कि उन्हें 30 मार्च को सूचना दी गयी, कई तरह के सवालों को जन्म दे रहा है।
सबसे पहला सवाल तो यही है कि, अगर एसपी को ही 30 मार्च को सूचना मिली तो, फिर 23 मार्च से 30 मार्च तक जमातियों पर नजर कौन रख रहा था? क्योंकि खबर तो यही है कि कटघोरा की एसडीएम और लोकल पुलिस को इस बात की सूचना थी कि मस्जिद में 16 जमाती रूके हुए हैं। एसपी के बयान से लगता है, कटघोरा की एसडीएम सूर्यकिरण तिवारी और एसडीओपी पंकज पटेल ने पुलिस कप्तान को सूचना देना तक मुनासिब नहीं समझा।
दूसरा सवाल, उस बयान के बाद ये खड़ा होता है कि जब कोरोना के दौरान अंतिम संस्कार में 20 से ज्यादा लोग नहीं हो सकते तो फिर एक जनाजे में बड़ी संख्या में भीड़ कैसे उमड़ गयी। उस जनाजे में 200 के करीब लोग जमा हुए थे, जिसमें कई जिलों से लोग आये थे। एसपी अभिषेक मीणा ने भी माना है कि जनाजे में 55 लोग थे। आखिर, 55 लोग भी वहां कैसे जुट गये।
इन लापरवाही की कितनी बड़ी कीमत इस प्रदेश को चुकानी पड़ी है, ये अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में 24 घंटे के भीतर कोरोना पाजिटिव 13 मरीज कटघोरा के हैं। सिर्फ कटघोरा से 22 से ज्यादा मरीज मिले हैं और वो सिर्फ 9 दिन के भीतर। इस दौरान छत्तीसगढ़ में कटघोरा के अलावा किसी और जगह के एक भी मरीज नहीं हैं।
जलसा और दावत के आरोपी को दे दी क्वारंटाईन की जिम्मेदारी
23 मार्च को एसडीएम सूर्यकिरण तिवारी को कटघोरा में जमातियों के जुटे होने की जानकारी मिली। ये सभी नागपुर के कामठी से 14 मार्च को ही कोरबा आये हुए थे। एसडीएम को कायदे से इसकी सूचना पुलिस अफसरों को देनी थी, ताकि सुरक्षा की निगरानी में सभी को क्वारंटाईन में रखा जा सके, लेकिन पुलिस कप्तान के बयान से साफ है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गयी। इतनी बड़ी लापरवाही का नतीजा ये रहा कि मस्जिम में ठहरे जमाती क्वारेंटाईन नियमों की धज्जियां उड़ाकर कटघोरा में जलसा करते रहे, मय्यतों में घूमते रहे और दावत उड़ाते रहे।
कटघोरा के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की लापरवाही यहीं खत्म नहीं हो जाती, बल्कि उसने जमातियों के टे्व्हल हिस्ट्री खंगालने में भी बड़ी चूक की। लचर इंट्रोगेशन का आलम ये रहा कि जमातियों ने कहा कि वो मरकज में नहीं गये तो बड़ी मासूमियत से अफसरों ने उसे मान लिया। जबकि, बाद में उन्ही जमातियों में एक की ये खबर आयी कि वो दिल्ली के निजामुद्दीन गया हुआ था। लचर एडमिस्ट्रेशन की कड़ी एक नहीं बल्कि काफी लंबी है। जाहिर है, इसका फायद जमातियों ने भी उठाया और इश्तियाक खान जैसे लोगों ने भी। खबर तो ये है कि कटघोरा की एसडीएम ने जमातियों को क्वारंटाईन में रखने की जिम्मेदारी पुलिस को नहीं बल्कि एक समुदाय विशेष के नेता को दे रखी थी, जबकि बाद में खुलासा ये हुआ कि वही नेता जलसा करवा रहा था और दावत में जमातियों को बुलावा भेजवा रहा था।
कोरबा के एसपी समय पर जानकारी नहीं मिलने की बात कर रहे हों, मगर यह भी उतने ही सत्य है कि कटघोरा में जलसा, दावत चलता रहा और कटघोरा की पुलिस हाथ-पर-हाथ धरे बैठी रही। उसे सुध नहीं रहा कि उसके नाक के नीचे जनाजे में इतने सारे लोग जुट गए। जांजगीर, बलौदाबाजार, पेंड्रा जैसे जिले से लोग मैय्यत में हिस्सा लेकर लौट गए और पुलिस सोती रही। उन जिलों के लोगों को अब क्वारंटाईन किया जा रहा है।
कटघोरा के अधिकारियों ने राज्य सरकार के स्टेट को कोरोना फ्री करने की कोशिशों पर पानी फेर दिया। कोरोना प्रबंधन के लिए पूरे देश में राज्य सरकार की तारीफ हो रही थी। और, यह भी सही है कि कटघोरा के केस नहीं आए होते तो 14 अप्रैल को लॉकडाउन समाप्ति के बाद सरकार बंद को लेकर साकारात्मक फैसला ले सकती थी।
बहरहाल, राज्य सरकार और कोरबा का जिला प्रशासन जिस तरह युद्ध स्तर पर कटघोरा के प्रभावित इलाकों में सेम्पलिंग और क्वरंटाईन का काम शुरू किया है, निश्चित तौर पर कटघोरा मुश्किलों से बाहर आ जायेगा, लेकिन उन अफसरों को क्या? जिनकी लापरवाही ने कटघोरा के लोगों को मुश्किलों में डाल दिया।