Sleep Divorce : अगर आप भी अपने पार्टनर के इन हरकतों से परेशान है तो ले लें ‘स्लीप डिवोर्स’, इससे रिश्ते के साथ सेहत भी होगी मजबूत

Sleep Divorce : पति से दूर अलग बिस्तर या अलग कमरे में सोने की इसी अवधारणा को ‘स्लीप डिवोर्स’ कहा जाता है। स्लीप डिवोर्स से न सिर्फ रिश्ते मजबूत होते हैं, बल्कि सेहत भी सुधरती है।

Update: 2024-08-02 06:58 GMT

Sleep Divorce :  अगर आप भी अपने साथी के खर्राटों या उनके अजीब तरह से सोने के तरीकों से परेशान हैं तो उनसे ‘स्लीप डिवोर्स’ ले लें। घबराइए मत, यह डिवोर्स रिश्ते तोड़ता नहीं, बल्कि उन्हें मजबूत बनाता है।  डिवोर्स शब्द सुनते ही हमारे मन में दो व्यक्तियों के बीच अलगाव होने की छवि उभती है, लेकिन ‘स्लीप डिवोर्स’ में ऐसी कोई बात नहीं।

अलग-अलग सोने का बस यही मतलब है कि आपकी नींद की जरूरतें आपके साथी की जरूरतों से मेल नहीं खाती हैं। इसमें संबंधों में कुछ भी अटपटा नहीं है और यह सामान्य है।  पति से दूर अलग बिस्तर या अलग कमरे में सोने की इसी अवधारणा को ‘स्लीप डिवोर्स’ कहा जाता है।

स्लीप डिवोर्स टर्म का पहली बार प्रयोग कब हुआ, यह ठीक-ठीक कह पाना मुश्किल है। लेकिन 2013 से ही इस टर्म को पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा जा सकता है। अच्छी नींद और सेहत से जुड़े कई हालिया शोधों में भी यह टर्म तेजी से उभरकर सामने आया है। कई विशेषज्ञ अच्छी सेहत को अच्छी नींद से जोड़ते हैं। उनका मानना है कि स्लीप डिवोर्स से न सिर्फ रिश्ते मजबूत होते हैं, बल्कि सेहत भी सुधरती है।

अलग सोने की जरूरत क्यों?




रिलेशनशिप एक्सपर्ट्स अब तक मानते रहे हैं कि साथ सोने से पति-पत्नी का दांपत्य मजबूत होता है तो फिर अलग सोने की जरूरत क्यों? दरअसल, जीवन-साथी से रिश्ते सामान्य होने के बावजूद कभी-कभी अलग बिस्तर पर सोना सुकून भरा होता है। दिन भर काम की थकान अपने बिस्तर पर ही उतरती है। इस समय हम शांति चाहते हैं। अपनी पसंद की मुद्रा, जैसे कि पैर मोड़कर, फैलाकर, करवट बदलकर और बिस्तर पर फैलकर सोना चाहते हैं। लेकिन इससे साथी को परेशानी हो सकती है, जिस वजह से हम सही तरह से सो नहीं पाते। इस कारण या तो नींद नहीं आती या फिर आप गहरी नींद नहीं सो पातीं। इससे स्वास्थ्य से लेकर मानसिक परेशानियां होने लगती हैं। इसलिए अलग सोने की जरूरत महसूस हो सकती है।

क्यों कम सो पाती हैं महिलाएं

आज के समय में स्त्री के कंधों पर घर और बाहर, दोनों की जिम्मेदारी आन पड़ी है। वह सुबह जल्दी उठकर घर के काम निपटाती है। बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, पति का लंच बनाना और अपने ऑफिस की तैयारी करना अमूमन उसी के हिस्से का काम माना जाता है। फिर ऑफिस से लौटकर भी वह देर रात तक काम में लगी रहती है। इसका नतीजा यह होता है कि वह कम घंटे ही सो पाती हैं। वहीं, साथी का अपनी पसंद से सोना, खर्राटे लेना या बिस्तर पर सोते समय हाथ-पैर चलाना उनकी नींद में बाधा डालता है, जिस कारण वह अच्छी नींद नहीं ले पाती है।

संयुक्त परिवारों में पहले से यह चली आ रही  

स्लीप डिवोर्स टर्म भले ही हमारे लिए नया हो, मगर अलग सोने की अवधारणा हमारे लिए नई नहीं है। हालांकि संयुक्त परिवारों में एक उम्र के बाद पति-पत्नी के बिस्तर एक ही कमरे में होने के बावजूद अलग-अलग लगे दिखाई पड़ते हैं, जिसकी अपनी अलग-अलग वजहें हो सकती हैं। साथ ही पुराने समय में हमारी सामाजिक व्यवस्था में घर के पुरुषों, खासकर बड़े-बुजुर्गों का बिस्तर बाहर और महिलाओं, बच्चों का बिस्तर भीतरी आंगन या कमरे में लगता था। यह व्यवस्था आज भी गांवों में देखी जा सकती है। शहरों में भी कई कामकाजी जोड़े अलग-अलग सोना पसंद करते हैं, ताकि वे चैन की नींद ले सकें। कई बार छोटा घर और बच्चों की उपस्थिति भी इसका कारण होती है।

नींद पूरी होना है जरूरी

अधूरी नींद पूरा दिन खराब कर सकती है। नींद पूरी न होने का मतलब है- दिन भर थकान और चिड़चिड़ापन रहना, काम में मन न लगना, काम बेमन से पूरा करना, गलतियां होने की संभावना बढ़ना और कार्यों को पूरा करने में ज्यादा समय लगना। इस तरह हमारी कार्यक्षमता घट जाती है। थकान और आलस के कारण काम समय पर पूरा नहीं हो पाता। वहीं, रात को ली गई पूरी नींद हमें दिन भर तरोताजा रखती है, हमारी कार्यक्षमता में वृद्धि करती है, याददाश्त बढ़ाती है, ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है और हमें अवसाद से भी दूर रखती है। हमेशा से ही डॉक्टर्स भी अच्छी नींद को अच्छी सेहत के लिए आवश्यक बताते आए हैं।

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