Chhattisgarh in "Mitan or Mahaprasad" : छत्तीसगढ़ में दोस्ती की अनोखी परंपरा "मितान या महाप्रसाद", दो परिवार बंध जाते हैं पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए रिश्ते में, आइये जानते हैं मितान के बारे में सब कुछ

मितान के माध्यम से दोस्ती रिश्ते में बदल जाती है। फिर दोनों के परिवार एक हो जाते हैं और रिश्ते उसी तरह निभाए जाते हैं जैसे अपने परिवार के रिश्ते। बच्चे अपने पिता के मितान को फूलददा और उनकी पत्नी को फूलदाई बोलते हैं। हर सुख-दुख में दोनों परिवार सहभागी होते हैं।

Update: 2024-05-28 07:22 GMT

छत्तीसगढ़ में दोस्त (मितान) बनाने की अनोखी परंपरा है। मितान के माध्यम से दोस्ती रिश्ते में बदल जाती है। फिर दोनों के परिवार एक हो जाते हैं और रिश्ते उसी तरह निभाए जाते हैं जैसे अपने परिवार के रिश्ते। मितान के बेटे को बेटा, बहू को बहू, भांजा को भांजा और बाकी रिश्तों को वैसा ही माना जाता है। बच्चे अपने पिता के मितान को फूलददा और उनकी पत्नी को फूलदाई बोलते हैं। हर सुख-दुख में दोनों परिवार सहभागी होते हैं।

यह दोस्ती अथवा पहचान को रिश्ते में बदलने के परंपरा है। मितानों के निधन के बाद भी यह रिश्ता खत्म नहीं होता, बल्कि उनकी पीढ़ियां भी इसे निभाती हैं। दो बालक, पुरुष, महिला, बालिका मितान बनते हैं। पुरुष या बालक जब मितान बनते हैं तो उसे मितान या महाप्रसाद नाम दिया जाता है।

देखा जाए तो मितान छत्तीसगढ़ की एक ऐसी परंपरा जिसमें सिर्फ दो लोग ही नहीं बल्कि दो परिवार भी पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए रिश्ते में बंध जाते हैं। आज आधुनिक युग में यह परंपरा एक हद तक लुप्त भी हो गयी है पर छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में लोगों ने आज भी इस परंपरा को जीवित रखा हुआ है।

महिलाएं या बच्चियां जब मितान बनती हैं तो उसे मितानिन, महाप्रसाद, भोजली, गजामूंग, गंगाजल आदि में से कोई एक नाम दिया जाता है। कोई भी किसी से भी मितान बद सकता है। बदना से अर्थ है, तय करना। किसी भी जाति या धर्म के व्यक्ति से मितान बना जा सकता है। 


एक-दूसरे का नाम नहीं लेते

मितान एक-दूसरे का नाम नहीं लेते, मितान, महाप्रसाद संबोधित कर पुकारते हैं। मितान की पत्नी का भी नाम नहीं लिया जाता। जब दो लोग मितान बनते हैं तो दोनों की पत्नियां स्वत: मितानिन हो जाती हैं। बच्चे मितान बनते हैं तो उनके माता-पिता स्वत: मितान हो जाते हैं।

मितान की पत्नी से उसी तरह दूरी बनाकर रखी जाती है जिस तरह छोटे भाई की पत्नी से। मितान के आगे मितानिन सिर पर पल्लू करती हैं और दूरी बनाकर बात करती है। साथ में उठना-बैठना नहीं होता। यानी एक खाट, बेंच पर दोनों एक साथ नहीं बैठ सकते। वाहन में तो एक साथ बैठ सकते हैं, पर एक-दो की आड़ में।



तब बन सकते हैं मितान

देवस्थल के सामने किसी भी अवसर पर मितान बना जा सकता है। सार्वजनिक समारोह अथवा किसी आयोजन, पारिवारिक कार्यक्रम में मितान बना जाता है। कथा स्थल, धार्मिक आयोजन, अखंड रामायण, यज्ञ आदि अवसरों पर मितान बनने पर उसे महाप्रसाद नाम दिया जाता है। नवरात्र में मितान बनने पर उसे महिलाओं के लिए भोजली या जंवारा नाम दिया जाता है। रथयात्रा के दौरान मितान बनने पर महिलाओं के लिए इसे गजामूंग नाम दिया जाता है।

ऐसे बनते हैं मितान

जमीन पर चावल के आटे का चौक पूरकर उस पर दो पीढ़ा रखते हैं। पीढ़े पर मितान बनने वालों को खड़ा किया जाता है। दोनों एक-दूसरे पर दूबी से जल के छींटे मारते हैं। एक-दूसरे को तिलक लगाते हैं, फूल और धुला या पीला चावल छिड़कते हैं। कान पर जहां चश्मे की डंडी बैठती है, वहां फूल, दूबी या जंवारा खोंसकर फूलमाला पहनाते हैं और नारियल भेंटकर गले मिलते हैं। अंत में उन नारियलों को फोड़कर प्रसाद बांटा जाता है।

जब मितान और मितानिन का रिश्ता बदता है तो इसमें परिवारों की भी बड़ी भूमिका होती है। दोनों परिवार वाले एक हाथ से दूसरे हाथ में नारियल लेते और देते हैं। यह वादा किया जाता है कि वह दोनों एक-दूसरे के सुख-दुःख के साथी होंगे। हमेशा साथ रहेंगे। एक-दूसरे के परिवार को अपना मानेंगे। यह बोलकर दोनों लड़के व दोनों लड़कियां 7 बार एक-दूसरे को गले लगाते हैं। इस तरह वह मितान और मितानिन के रिश्ते में बद जाते हैं।

अगर लड़का या लड़की किसी और जाति से भी हैं तो भी मितान-मितानिन का रिश्ता बंध जाता है। रिश्ते का जुड़ाव होने के बाद दोनों परिवारों के बीच नया परिवार बनाया जाता है। इसके बाद मितान की माँ को माँ, पापा को पापा और बहन को बहन आदि परिवार के सदस्यों को मितान के रिश्ते के अनुसार बोला जाता है।


इस जाति के लोग बन सकते हैं मितान

साहू ,यादव ,निषाद ,शर्मा ,वर्मा ,सतनामी, इन सभी जाति के लोग एक दूसरे के साथ मितान का रिश्ता बना सकते हैं। जो राजपूत ,बनिया ,ब्राह्मण ,जाति के लोग होते हैं वह मितान नहीं बनाते हैं।

मितान-मितानिन परंपरा के हैं कई प्रकार




1. गंगाजल – गंगाजल को पवित्रता का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। दो लोग जब मितान बदते हैं तो गंगाजल का आदान-प्रदान कर समाज के सामने मितान बनते हैं।

2. भोजली – भोजली का मतलब है भू में जल होना। इसे उत्तर भारत मे कजलइयाँ कहा जाता है। यह मुख्यतः गेंहूँ के अंकुरित पौधे होते हैं जिसे सावन की शुक्ल अष्टमी को एक-दूसरे को कानों में खोंसकर मितान बदा जाता है। छत्तीसगढ़ में मशहूर अभिवादन वाक्य (बधाई) ‘सीताराम भोजली’ इसी से बना है।

3. जंवारा – इस तरह का मितान नवरात्रि के समय बदा जाता है क्योंकि उसी समय दुर्गोत्सव का जंवारा बोया जाता है। जंवारा का मतलब गेंहूँ के अंकुरित पौधे। इन्हीं पौधों का आदान-प्रदान कर जंवारा मितान बदा जाता है। जंवारा शब्द छत्तीसगढ़ी गीतों में ‘ए मोर/हाय मोर जंवारा’ के रूप में लोगों ने आमतौर पर सुनते हैं।

4. सैनांव – इनमें जब दो व्यक्तियों का नाम एक ही जैसा होता है तो उन दोनों के द्वारा बदे (तय करना) गए मितान परंपरा को सैनांव मितान कहा जाता है।


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