EVM Machine Vivad: क्या EVM एक संदिग्ध चुनावी व्यवस्था भर बनकर नहीं रह गई है?

EVM Machine Vivad: क्या EVM एक संदिग्ध चुनावी व्यवस्था बनकर नहीं रह गई है ? महत्वपूर्ण यह नहीं है कि ये सवाल किसने उठाए हैं, महत्वपूर्ण यह है कि EVM की वकालत करते तर्क आपको कितना संतुष्ट कर पाते हैं...

Update: 2023-12-08 13:25 GMT

Evm Clash 

EVM Machine Vivad: क्या EVM एक संदिग्ध चुनावी व्यवस्था बनकर नहीं रह गई है ? महत्वपूर्ण यह नहीं है कि ये सवाल किसने उठाए हैं, महत्वपूर्ण यह है कि EVM की वकालत करते तर्क आपको कितना संतुष्ट कर पाते हैं ! एक मित्र द्वारा प्रेषित तर्क - कुतर्क पर आधारित यह विमर्श एक चिंतन के लिए बाध्य तो करता ही है .....

मेरा आग्रह प्रोसेस की सन्देहहीन पवित्रता (Sanctity beyond doubt) का है।

चुनाव, एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिस पर देश का भविष्य निर्भर है। इसे सिर्फ भरोसे पर नही चलाया जा सकता। प्रोसेस बेरिफायबल होनी जरूरी है। 

वेरिफाई एक ही तरीक़े से हो सकता है- नंगी आंखों से देखकर। EVM मुझे नंगी आंख से कुछ नहीं दिखाता। वह एजम्पशन देता है। एकजाई टोटल देता है। 

याने मशीन में टोटल 100 वोट पड़े, राम को 30- श्याम को 35। लेकिन मेरा वाला वोट किसके बंडल में गिना जा रहा है, नही बताता। 

यही अपारदर्शिता है। लोकतंत्र की सर्वोच्च प्रोसेस, जो मुझ नागरिक का सबसे बड़ा संवेधानिक अधिकार है, किसी अनवेरिफाइड प्रोसेस, गुप्त से होकर क्यूँ गुजरे?? 

अतर्की कहते हैं, कि मुझे आरोप साबित करना चाहिए। मगर मैं क्यो करूँ भाई? इसकी सत्यता तो सरकार को साबित करनी है न.. या इसके समर्थकों को। 

बड़े मजे की बात, पवित्रता की कसम खाने वाले वाले खुद अनक्वालीफाईड हैं। वे भी साबित नही कर सकते कि उनका अपना वोट किस बंडल में गया। इसपे शक करने वाले भी उतने ही अनक्वालीफाईड है। क्वालीफाइड चंद लोग हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्प्यूटिंग की समझ रखते हैं। देश का 0.1% 

मतपत्र के लिए एक, दो, तीन की गिनती करने को पूरा हिन्दुस्तान क्वालीफाइड है। राह चलता वोटर भी, अफसर भी, और काउंटिंग टेबल पर बैठा, किसी पार्टी का अधगंवार एजेंट भी.. लेकिन हम,आप, अफसर और एजेंट देख समझ नही सकते की EVM के सोर्स कोड में क्या लिखा है। टोटल देखते हैं। मशीन के टोटल वोट - टूं sss 1500 ,टूं sss कडिडेट 1- 675 टूं sss कंडिडेट 2 - 173... 

जैसे मोबाइल यूज करने वाले अरबो लोगो को, उसके प्रोग्राम कोडिंग का नही पता, EVM यूज करने वालो को भी अंदर का कुछ नही पता। मशीन हैंडल करने वाले, विविपेट इंस्टाल करने वाले इंजीनियर को भी नही पता। 

जापान से क्या लिखकर आया है, विविपेट इंस्टालेशन के समय 150 वे वोटिंग के बाद कौन सा जादू सक्रिय हो गया ( या नही हुआ) किसी को नही पता। टोटल देखना है, भरोसा करना है।

लेकिन मतपत्र के 50 पन्ने होते, तो काला कुत्ता भी छाप देख देख कर बंडल बना लेता। और एक-दो-तीन कहते हुए उंगलियों पर गिन लेता। एकदम पारदर्शी प्रक्रिया.. 

जिसको वेरिफाई करने के लिए पहली कक्षा पास व्यक्ति भी क्वालीफाईड है। लोकतन्त्र का फैसला सबसे कम पढ़े लिखे की मेधा और भरोसा जीतने वाला होना चाहिए। 

विविपेट की बात करें। पर यह तो और खतरनाक है। घी कनस्तर में घुसा चूहा निकालने के नाम पर,बिल्ली डाल दी गयी है। क्योकि पहले तो मशीन की इंटेलिजेंस को यह नही पता था कि कौन से बटन में कौन सा छाप बैठा है। 

अब उसे यह भी पता है। टेम्परिंग के इच्छुक का काम और आसान हो गया। कुतर्की व्यक्ति, इस सवाल को जल्द से जल्द भाजपा कांग्रेस पर ले जाना चाहता है। 

या फिर..

- तुम्हारे पास सबूत नही। 

- जाओ आंदोलन करो, 

- हार गए तो ठीकरा फोड़ रहे। 

- सड़कों पर उतरो, 

- आधुनिक तकनीक का उपयोग करो.. 

- कांग्रेस ही तो लायी थी। 

- तब कहां थे, 

- फलां फलां फलां जगह तो जीत गए। 

भाई, मुझे केवल पारदर्शिता चाहिए। मेरे वोट की गणना सही बंडल में हुई, इसका विश्वास चाहिए। बस..

यह विश्वास डायरेक्ट चाहिए। याने मुझे इशू किये गए मतपत्र क्रमांक 16380 को जिस पर मैनें नारियल छाप पर ठप्पा लगाया था, वह वोटिंग टेबल पर, नंगी आंख से, नारियल के बंडल में दिखे। जीत हार किसकी, ये सवाल भाड़ में जाये। मतपत्र से भाजपा हार जाएगी, कांग्रेस जीत जाएगी, ऐसा गुमान मुझे भी नही। 

कांग्रेस की हजारों कमजोरियां हैं। वो मतपत्र से भी हार चुकी है। 77 में हारी, 89 में हारी, राज्यो में सैकड़ों बार हारी। लेकिन EVM जैसी अपारदर्शी प्रक्रिया हर पार्टी की जीत हार को शको शुबहे में लाती है। 

भाजपा और मोदी ज्यादा जीत रहे है। वो और उनके समर्थक,अपारदर्शी प्रक्रिया की ढाल बन रहे है। चुनाव आयोग औऱ सुप्रीम कोर्ट ढाल बन रहा है। वह तो विविपेट पर्ची तक को पूर्णतया गिनवाने को राजी नही। 

तो शक और गहराना लाज़िम है। हम क्यो न माने की, मुर्गी देकर, बकरा लेंने का खेल है। कांग्रेस, राहुल या विपक्षी दल इस मुद्दे पर क्या रुख लेते हैं, वह उनका सिरदर्द है। 

मेरा पक्ष इतना है, की प्रक्रिया पारदर्शी हो। और मुझ जैसा, या आप जैसा कोई भी अन क्वालीफाइड व्यक्ति, हर स्टेप में इसे वेरिफाई कर सके, इतना सरल हो। 

मेरा वोट सही जगह गिना जाये, और प्रमाणन योग्य प्रक्रिया से हो। क्या एक नागरिक और वोटर के बतौर मेरी यह मांग नाजायज है? 

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