Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा: अपराध के बाद फरार होना अपने आप में दोष साबित नहीं करता, लेकिन यदि......।

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अपराध के बाद केवल फरार होना ही अपने आप में दोष साबित नहीं होता है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के तहत यह प्रासंगिक आचरण है।

Update: 2025-06-22 10:37 GMT

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Supreme Court: दिल्ली। हत्या के एक मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि अपराध करने के बाद फरार होने मात्र से दोष साबित नहीं होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रासंगिक तथ्य है। इस तरह का कृत्य आरोपी के आचरण को दर्शाता है। और यह उसके दोषी मानसिकता का संकेत देता है।

सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ ही याचिकाकर्ता की निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की हत्या के लिए दोषसिद्धी को यथावत रखा है। याचिकाकर्ता को घटना स्थल से फरार होने के कुछ समय पहले ही मृतक के साथ आखिरी बार देखा गया था। घटना स्थल से किस कारण वह फरार हुआ इसे वह सिद्ध नहीं कर पाया। डिवीजन बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का उदाहरण देते हुए लिखा है कि केवल फरार होना ही दोषी मानसिकता को नहीं दर्शाता। एक निर्दोष व्यक्ति भी घटना के बाद घबरा सकता है और घबराहट में वह वहां से भाग भी सकता है। फरार होने का कृत्य निश्चित रूप से अन्य साक्ष्यों के साथ विचार किए जाने वाला प्रासंगिक साक्ष्य है। कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 8 के तहत एक आचरण है, जो उसके दोषी मानसिकता की ओर इशारा करता है। संदेह की सुई उसकी फरारी से और भी मजबूत होती है। याचिकाकर्ता आरोपी को आखिरी बार हत्या की रात मृतक के साथ देखा गया था और तकरीबन पखवाड़े भर वह फरार रहा। फरारी के दौरान कहां रहा,इसे लेकर भी वह झूठ बोलते रहा है। कोर्ट ने कहा कि हत्या के लिए प्रयुक्त हथियार बंदूक की बरामदगी और अपराध से इसे जोड़ने वाले फोरेंसिक साक्ष्य के साथ-साथ इस आचरण ने अपराध की ओर इशारा करने वाली परिस्थितियों की एक श्रृंखला बनाई।

निचली अदालत के फैसले को रखा बरकरार

सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि अकेले फरार होना अपराध साबित करने के लिए अपर्याप्त है। लेकिन यह तब प्रासंगिक साक्ष्य बन जाता है, जब आरोपी घटना स्थल से अपने फरार होने के लिए कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं देता। याचिकाकर्ता घटना स्थल से भागने को लेकर साफ-साफ कारण नहीं बता पाया। इसके अलावा घटना के पहले मृतक के साथ अंतिम बार देखा जाना,हथियार की बरामदी,हत्या का उद्देश्य। ये ऐसे मामले हैें जो अभियोजन पक्ष के दावों को मजबूती प्रदान करता है। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए याचिकाकर्ता के दोषसिद्धी को बरकरार रखा है।

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