Satta king, Satta Result: कौन हैं मटका किंग रतन खत्री? जानिए सट्टेबाजी के बादशाह की कहानी

Satta king | Satta Result | Sattaking | Satta King 786 | Satta Chart: मटका किंग के नाम से मशहूर रतन खत्री एक बार फिर सुर्खियों में हैं। हाल ही में रिलीज हुई कार्तिक आर्यन अभिनीत फिल्म "चंदू चैंपियन" में उनके किरदार ने फिर से लोगों का ध्यान खींचा।

Update: 2024-08-02 02:45 GMT

Satta king | Satta Result | Sattaking | Satta King 786 | Satta Chart: मटका किंग के नाम से मशहूर रतन खत्री एक बार फिर सुर्खियों में हैं। हाल ही में रिलीज हुई कार्तिक आर्यन अभिनीत फिल्म "चंदू चैंपियन" में उनके किरदार ने फिर से लोगों का ध्यान खींचा। रतन खत्री ने भारत में सट्टेबाजी की शुरुआत कर इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

सट्टेबाजी की शुरुआत और सफलता

रतन खत्री सिंधी परिवार से थे और 1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आए। 1962 में मुंबई में उन्होंने सट्टेबाजी का एक नया तरीका शुरू किया, जिसे मटका कहा जाता था। खत्री ने इसे एक बड़े रैकेट में बदल दिया और दशकों तक चलने वाले एक विशाल जुआ नेटवर्क की स्थापना की।

मटका का इतिहास

मटका, जो न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज में कपास की शुरुआती और समापन दरों पर सट्टेबाजी के रूप में शुरू हुआ था, रतन खत्री के प्रभाव में एक बड़े पैमाने पर राष्ट्रव्यापी जुआ नेटवर्क के रूप में विकसित हुआ।

कल्याणजी भगत से लेकर रतन मटका तक का सफर

शुरुआत में खत्री कल्याणजी भगत के अधीन काम करते थे, जो वर्ली मटका के लिए जाने जाते थे। खत्री ने अंततः रतन मटका की स्थापना करके अपना खुद का कारोबार शुरू किया। उनके नेटवर्क में दुनिया भर की मशहूर हस्तियां और हाई-प्रोफाइल लोग शामिल थे, जिनकी वजह से रतन खत्री मटका किंग बन गए।

चुनौतियों से लड़ते हुए बनी पहचान

खत्री का जीवन चुनौतियों से भरा रहा। भारत में आपातकाल के दौरान, उन्हें जेल में डाला गया और 19 महीने तक सलाखों के पीछे रहना पड़ा। इन असफलताओं के बावजूद, वे 1990 के दशक की शुरुआत में अपने रिटायरमेंट तक जुए के क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्ति बने रहे। 2020 में उनका निधन हो गया, और वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो आज भी लोगों को आकर्षित कर रही है।

मटका जुए का तंत्र और बदलाव

मटका जुए के तंत्र में पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। शुरुआत में, इसमें कपास की कीमतों पर दांव लगाना शामिल था, लेकिन 1960 के दशक तक, इसे मटका (मिट्टी के बर्तन) से पर्चियां निकालने सहित रैंडम नंबर चुनने के विभिन्न तरीकों से बदल दिया गया। खत्री विशेष रूप से नंबर निकालने के लिए ताश के पत्तों के उपयोग के लिए जाने जाते थे।

Full View

रतन खत्री की कहानी एक अद्वितीय सफर की कहानी है। उन्होंने सट्टेबाजी के खेल को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया। उनकी विरासत आज भी जीवित है और लोग उनकी कहानी को याद करते हैं।

डिस्क्लेमर: इस लेख का उद्देश्य केवल जानकारी देना है। हम किसी भी प्रकार के सट्टा या जुआ खेलने को प्रोत्साहित नहीं करते हैं।

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