SIR पर सुनवाई के दौरान SC ने कहा : वोटर ल‍िस्‍ट में क‍िसे शामिल करना है और क‍िसे बाहर करना है यह चुनाव आयोग तय करेगा

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह भी माना कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है. इसका अलग से वेरीफ‍िकेशन करना होगा.

Update: 2025-08-13 11:39 GMT

Supreme Court :  वोटर ल‍िस्‍ट में क‍िसे शामिल करना है और क‍िसे बाहर करना है, यह चुनाव आयोग तय करेगा. यह उसके अध‍िकार क्षेत्र में आता है. यह बातें बिहार में वोटर ल‍िस्‍ट के स्‍पेशल इंटे‍ंस‍िव र‍िवीजन (SIR) पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ हुई. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह भी माना कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है. इसका अलग से वेरीफ‍िकेशन करना होगा.

कोर्ट ने इस दलील से भी असहमति जताई कि बिहार में लोगों के पास पहचान प्रमाण के तौर पर मांगे गए ज्यादातर दस्तावेज नहीं हैं. जस्‍ट‍िस सूर्यकांत ने कहा-यह महज भरोसे की कमी का मामला है, बस. इन टिप्‍पण‍ियों को देखें तो साफ लगता है क‍ि सियासी खेल पलट गया है. राहुल गांधी-तेजस्‍वी यादव समेत पूरा विपक्ष दावा कर रहा था क‍ि वोटर कौन होगा, यह तय करने का अध‍िकार चुनाव आयोग के पास है ही नहीं, अब सुप्रीम कोर्ट ने उस दावे पर कैंची चला दी है.


याच‍िकाकर्ताओं के 3 सवाल-कोर्ट के जवाब

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की दलील थी क‍ि ज‍िस प्रक्रिया से एसआईआर क‍िया जा रहा है, उससे लाखों वोटर मनमाने तरीके से वोटर ल‍िस्‍ट से बाहर हो जाएंगे. क्‍योंक‍ि न तो आधार माना जा रहा है, न वोटर आईडी मानी जा रही है और ना ही राशन पेंशन कार्ड मान रहे हैं.

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने 12 जीवित लोगों को मृत दिखाने का मामला रखा, जिस पर कोर्ट ने कहा कि ड्राफ्ट ल‍िस्‍ट में त्रुटि हो सकती है, लेकिन जांच जरूरी है.

सिब्बल ने कहा कि जिन लोगों का नाम 2025 की ल‍िस्‍ट में था, उनका नाम भी SIR में हटा दिया गया. इस पर जस्‍ट‍िस बागची ने कहा, उस वोटर ल‍िस्‍ट में शामिल होना आपको इंटेंसिव र‍िवीजन ल‍िस्‍ट में खुद से शामिल करने का अधिकार नहीं देता.

सिब्बल ने कहा कि सूची में शामिल अधिकांश दस्तावेज बिहार के लोगों के पास नहीं हैं. इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यह सामान्‍य तर्क है. कई ऐसे दस्तावेज हैं जो लोगों के पास होंगे. कुछ न कुछ तो चाहिए होगा यह देखने के लिए कि वे निवासी हैं या नहीं. परिवार रजिस्टर, पेंशन कार्ड आदि मौजूद हैं… यह कहना कि लोगों के पास ये दस्तावेज नहीं हैं, बहुत व्यापक तर्क है.


चुनाव आयोग की 4 दलील

चुनाव आयोग का कहना था क‍ि अनुच्छेद 324 और र‍िप्रजेंटेट‍िव ऑफ प‍ीपुल एक्‍ट 1950 की धारा 21(3) के तहत उसे वोटर ल‍िस्‍ट में संशोधन का पूरा अध‍िकार है.

चुनाव आयोग ने कोर्ट में दलील दी क‍ि तमाम वोटर शहरों में पलायन कर गए हैं. डेमोग्राफी बदल गई है. 20 साल से इस तरह का कोई रिवीजन नहीं हुआ है, जिससे कई तरह की खामियां आ गई हैं, इन्‍हें ठीक करने के ल‍िए एसआईआर करना जरूरी है.

इलेक्‍शन कमीशन ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिया कि बिना नोटिस, सुनवाई और कारण बताए किसी का नाम को अंत‍िम वोटर ल‍िस्‍ट से नहीं हटाया जाएगा. इतना ही नहीं सक्षम अध‍िकारी के सामने अपनी बात रखने का मौका भी दिया जाएगा.

आयोग ने यह भी कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाताओं के पंजीकरण नियम, 1960 के तहत उसे किसी को शामिल न करने के कारण प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं है.

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