MP में चूहे कर रहे मांसाहार: इंदौर के बाद यहां भी सामने आया 'चूहा कांड', मरीज़ों के पैरों को कुतरा..अस्पतालों में हो रही लापरवाही का कौन है जिम्मेदार?

मध्य प्रदेश के इंदौर के बाद अब जबलपुर के सरकारी अस्पताल में भी लापरवाही का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है..

Update: 2025-09-18 09:26 GMT

(NPG FILE PHOTO)

भोपाल। मध्य प्रदेश के इंदौर के बाद अब जबलपुर के सरकारी अस्पताल में भी लापरवाही का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग में भर्ती दो मरीज़ों के पैरों को चूहों ने बुरी तरह कुतर डाला, जिससे अस्पताल की साफ़-सफ़ाई व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

क्या है पूरा मामला?

जानकारी के अनुसार, हाल ही में कलेक्टर के निरीक्षण के दौरान पाई गई कमियों के बाद भी यह घटना हुई, जहाँ पेस्ट कंट्रोल और सफ़ाई में लापरवाही बरतने पर अधीक्षक को कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे। मानसिक रोग विभाग के रेनोवेशन के कारण मरीज़ों को ऑर्थोपेडिक विभाग में शिफ़्ट किया गया था। रात के समय चूहों ने सिहोरा की रजनी बेन, गोटेगाँव की सरोज मेहरा और उनके बेटे जगदीश मेहरा पर हमला किया। जिससे उनके पैरों पर गहरे घाव हो गए। मरीज़ों के परिजनों ने बताया कि, वार्ड में चूहों की भरमार है, जो रात में मरीज़ों को निशाना बना रहे हैं।

इस घटना के बाद अस्पताल अधीक्षक ने सफ़ाई और पेस्ट कंट्रोल की ज़िम्मेदारी संभालने वाली HLL इंफ़्रा टेक कंपनी पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही मामले की गहन जाँच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है, जो तीन दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।

इंदौर के एमवाय अस्पताल जैसी घटना

आपको बता दें कि, यह पूरा मामला इंदौर के एमवाय अस्पताल में हुई घटना से मिलता-जुलता है, जहाँ कुछ समय पहले चूहों के काटने से दो नवजात शिशुओं की मौत हो गई थी। उस घटना ने इतना तूल पकड़ा था कि, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी इसकी ख़बर प्रकाशित हुई थी और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट को खुद संज्ञान लेना पड़ा था। हाई कोर्ट ने इस मामले में सरकार से विस्तृत रिपोर्ट माँगी थी।

सरकार ने अपनी रिपोर्ट में भले ही कहा कि, बच्चों की मौत चूहों के काटने से नहीं हुई, लेकिन हाई कोर्ट ने सफ़ाई और पेस्ट कंट्रोल एजेंसी एजाइल सिक्योरिटी को नोटिस जारी किया और उसे ब्लैकलिस्ट करने की बात कही। इन घटनाओं के बाद भी केवल जुर्माना लगाना और सुराख़ बंद करना ही काफ़ी नहीं है।

सरकारी अस्पतालों पर उठते सवाल

ये दोनों घटनाएँ केवल चूहों के काटने के मामले नहीं बल्कि यह सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की चौंकाने वाली लापरवाही को उजागर करती हैं। जब एक मरीज़ इलाज के लिए अस्पताल पर भरोसा करता है, तो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना प्रशासन की पहली ज़िम्मेदारी होती है। लगातार हो रही ऐसी घटनाएँ सरकार की स्वास्थ्य नीतियों पर सवाल उठाती हैं। सरकारी अस्पतालों में साफ़-सफ़ाई की व्यवस्था इतनी लचर क्यों है? इसका ज़िम्मेदार किसे माना जाना चाहिए?


लापरवाही का कौन है जिम्मेदार?


विशेषज्ञों का मानना है कि, अस्पतालों में गंदगी और कचरे का ढेर चूहों की संख्या को बढ़ाता है। सरकार भले ही करोड़ों रुपये अस्पतालों के रेनोवेशन और सुविधाओं पर खर्च करे, लेकिन जब तक छोटी-छोटी बातों, जैसे कि साफ़-सफ़ाई और मरीज़ों की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक ऐसी दुखद घटनाएँ होती रहेंगी। इन घटनाओं के बाद, लोगों का सरकारी अस्पतालों पर से विश्वास उठने लगा है।

अब देखना यह है कि, क्या जबलपुर में गठित जाँच समिति और इंदौर में हाई कोर्ट के हस्तक्षेप से कोई बड़ा बदलाव आएगा, या ये मामले भी सिर्फ़ एक ख़बर बनकर रह जाएँगे और मरीज़ों की ज़िंदगी के साथ लापरवाही का सिलसिला जारी रहेगा। ऐसी ही तमाम ख़बरों के लिए बने रहे एनपीजी न्यूज के साथ।

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